Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ // 68 // // 69 // // 70 // // 71 // // 72 // // 73 // संजोगा सवियोगा विसं व विसयावि परिणईविरसा / काओ अ बहुअवाओ रूवं खणभंगुरसरूवं एवं परोवएसं दितस्स जहा महं फुरइ वयणे / तह जइ चित्त ! तुमम्मि वि एवं ता किं न पज्जत्तं ? किं पि हु निप्फज्जंतं पि किं पि निप्फनमिह परं सुक्खं / अकयपि कीरमाणं परं च विहडइ जहा भंडं तहरगन्भाइअवत्थं विवहं पावित्तु पाणिणोऽणेगे। विहडते मुणिउं चित्त ! चिंतेसुं कि पि सुहचितं इक्कं पि तुमं बहुवत्थुचिंतणा चित्त ! पाविसि बहुत्तं / / तह भूयं पुण पत्तिय कस्स न दुक्खस्स होसि पयं! सयलन्नवत्थुचित्तं चइत्तु ता चित्त ! चिन्तसु परं तं / इक्कं पि किं पि.वत्थु जेण परं निव्वुइं लहसि लच्छीहि जइ न मज्जसि न यावि रागाइयाण वसमेसि / रमणिहिं न हिरिज्जसि तरलिज्जसि नेव विसएहिं संतोसेण न मुज्झसि आलिंगिज्जसि य जइ न इच्छाए / पावं च जइ न चिंतसि तह चेव न मुच्छता चत्ता ! जं नियमिय अप्पाणं न रागदोसाइनिग्गहो विहिओ। न य सुहझाणग्गीए दड्डी कमिंधणपबंधो विसएहितो खंचिय धरिओ सारे न इंदिअग्गामो। तं किं न तुज्झ हे चित्त ! मुत्तिसुक्खम्मि वंछा वि? सज्जिज्जंति न करिणो न पक्खरिजंति तुरयघट्टाइं। " नायासिज्जइ अप्पा वावारिज्जइ न खग्गं पि किंतु सुहज्झाणेणं अरिणो रागाइणो हणिज्जति / तह वि तुमं माणस ! कीस परिभवं सहसि तेहितो 284 // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // // 78 // // 79 //
Page Navigation
1 ... 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330