Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 291
________________ जइ पढमं पि न रज्जसि मुहमहुरवसाणविरसविसएसुं। ता हियय ! तुमं पच्छा वि लहसि न कया वि संतावं // 44 // विसएसु विणा न सुहं विसया वि भवंति बहुकिलेसेहि। ता तब्विमुहं चिंतसु सुहंतरं किं पि हे हियय ! // 45 // अह आवायं विसयाण पिच्छसे जइ तहा विवागं पि। ता चित्त ! एत्तिय तुमं न कयां वि विडंबणं लहसि // 46 // विसतुल्लविरायवंछाई कीस हे हियय ! वहसि संतावं ? / तं किं पि चिंतसु तुमं होइ जओ निव्वुई परमा // 47 // तह विसयासाछिद्देण नाणजणिआ गुणा गलिस्संति। ता ठयसु तं तुमं मूढ ! हियय तेसिं थिरत्तकए // 48 // विसयासावाउलीजणियरओगुंडियं कह न हियय ! / सहजायकरणवग्गस्स लज्जसे भमिरमणिबद्धं . // 49 // कामरसजज्जरे रे तुमम्मि मणकुंभ कम्ममलहरणं / भवसंतावखयकरं न तइ सव्वन्नुवयणजलं // 50 // अह तं पि ठियं कहमवि किं नो पसमइ कसायदाहो ते?। सरसो वि किं न भिज्जइ जो तुह अविवेयमलगंठी? // 51 // हि हियय ! सुंदरा वि हु सद्दा रूवाणि रसविसेसा य / गंधा फासा य वरा ताव च्चिय तरलयं ति तुमं // 52 // जाव न सम्मं अवगाहिओ तए तत्तबोहरयणिल्लो।। सुहसलिलपूरपुत्रो सुअनाणं अगाहमयरहरो / // 53 // किं बहुणा दाणेणं ? किं वा बहुणा तवेण तविएणं? / कट्ठाणुट्ठाणेण वि बज्झेण किमत्थ बहुणा वि? किं व पढिएण बहुणा जइ ता मण ! मुणसिं अप्पणो पत्थं / ता रागाइपयाओ विरमसु रमसु अ अरागपए / 282 // 54 // // 55 //

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