Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 297
________________ // 116 // // 117 // // 118 // // 119 // // 120 // // 121 // विमलं पि जीवसंखे पइट्ठियं सहइ ताव सीलजलं / विसयाभिनिवेसासुइसंगा कलुसिज्जइ न जाव निम्मलविवेयरयणं तावज्जवि दिप्पए, पयासे वा। विसयप्पसंगपंसू जावज्जवि नावगुंडेइ धम्मं काउमसत्ता विसयपसत्ता निहीणतमसत्ता। अत्ताणं अंत्ताण न मुणंति हियं च न कुणंति सन्नाणमणिफुरंतं पवित्तचारित्तरयणचंचइयं / ओ ! विसयचंडचरडा लुंटती जीवभंडारं सा तुंगिमा स तेओ तं विनाणं गुणा विं ते चेव / सव्वं खणेण नटुं धिरत्थु विसयाभिलासस्स हद्धी अलद्धपुव्वं जिणवयणरसायणं पि घुटेउं / विसयमहाहालाहलहल्लोहलिएहिं उग्गिलियं सुहचरिए अप्पाणं पावा पावासवेसु अप्पाणं / अप्पाणं अप्पाणं (अप्राणं) विसयाण कए कयत्थं ति छुहियं सीहं कुविअंच पन्नगं सुबहुमच्छियं च महुं। आहणइ सो णणज्जो जो विसएसुं कुणइ गिद्धि . उवविसइ स सूलाए पविसइ य जलंतजउहरस्संतो। कुंतग्गम्मि अ नच्चइ करेइ विसएसु जो गिद्धि - अहवा सीहपमुहा हुंति विणासाय तब्भवे चेव / एए पुण हयविसया अणंतभवदारुणविवागा विसए सेवंति जडा अरईदुक्खस्स पसमणनिमित्तं / तं पुण तेहिं दढयरं उच्छलइ घएण जलणु व्व सूरा वि विसयगिद्धा मुहजोआ हुंति महिलियाणं पि / जे पुण ताण विरत्ता ते देवाणं पि पणइपयं 288 // 122 // // 123 // // 124 // // 125 // / // 126 // // 127 //

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