Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 14
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ मोहमहागहगहिओ सहिओ अरईइ धम्मरइरहिओ। विसयवसो वावारस्स मणवयकाए अविसए वि. // 128 // दुलहं चरित्तरयणं खंडियमिक्कसि कहिचि विसयवसो। पावइ दुगुंछिअत्तं जावज्जीवं पि सयलजणे // 129 // आवायमित्तसुहया वि किं पि बहुभाविभवनिमित्तत्ता / विसया सप्पुरिसाणं सेविज्जंता वि दुहजणया // 130 // हा धी विलीणबीभत्थकुच्छणिज्जम्मि रमइ अंगम्मि / किमउव्व एस जीवो दुहं पि सुक्खंति मनंतो // 131 // ता ताण कए दुहसयनिबंधणं कुणइ बहुविहं जीवो। आरंभमहापरिग्गहमओ उ बंधं पि पावाणं // 132 // तो नरयवेयणाओ तिरियगईओ पाउणइ बहुसो। इय जरियजंतुणो मज्जियाइपाणोवमा विसया // 133 // जइ हुज्ज गुणो विसयाण कोइ वि ता न हु जिणिदचक्किबला / दूरुज्झियविसयसुहा धम्मारामे तह रमंता // 134 // ता एयं नाऊणं पसत्थपरमत्थदिट्ठणो होउं। चयह मियं विसयसुहं अपरिमियं भयह पसमसुहं // 135 // जेणमकिलेससाहणमलज्जणायं विवागसुंदरयं / पसमसुहमिमाहितो णताणंतेहिं संगुणियं // 136 // ता सकयत्था इत्थेव गाढपडिबद्धमाणसा धीरा,।' धन्ना ति च्चिय परमत्थसाहगा साहुणो निच्चं // 137 // अणवरयमरणरणरणयभीसण पिच्छिऊण संसारं / चत्तुं विसं व विसमं विसयसुहं जेहिं दूरेणं // 138 // विसयासासंदाणिअचित्ता य अपत्सविसयसुक्खा वि। हिंडंति कंडरीउ व्व तओ मओ घोरसंसारे // 139 // 28e 289
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