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(H-6)
धोवन (अचित्त पानी) बनाने की मान्य विधि
नैसर्गिक क्रिया:
1. भारत में हर सुबह रसोई व पिरंडे के बर्तनों को धोने की प्रथा है। स्टील के
बर्तनों को राख से मांज कर धोया जाता है। जितने बर्तन मांजकर धोना है, उतना पानी एक बाल्टी में लेकर, उस राख से मंजे बर्तनों (गिले) को धोया जाता है। एक अनुपात में रखा यह पानी धोवन के रूप में इकट्ठा हो जाता है। इसको 24-25 मिनट बाद निथार लिया जाता है। या मिट्टी के बर्तनों को पानी से रगड़ कर धोया जाता है। यह धोया हुआ पानी धोवन कहलाता है।
बर्तनों का धोया हुआ पानी अंतर्मुहूर्त बाद अचित्त हो जाता है। 2. रसोई में खाना बनाने वाली आटे की परात, चकला, बेलन आदि भी काम में
लेने के बाद, पानी से धोये जाते हैं। इनका धुला हुआ पानी भी 'धोवन'
कहलाता है। 3. इसी प्रकार अनाज (ऊपर की पॉलिस उतार कर) अच्छे से दोबारा रगड़ कर
धोया जाता है। यह बाद का धुला हुआ पानी या भिगोया हुआ पानी भी धोवन की श्रेणी में आता है। उपरोक्त पानी अनाज को रगड़ कर धोने के कारण, अचित्त बन जाता है। अनाज, दालें आदि सब्जी को जब उबाला जाता है -या तो साधारण खुले बर्तन में अथवा प्रेसर कुकर में - उबलने के बाद उनमें जो अतिरिक्त पानी रह जाता है, उसको निकाल कर फेंक दिया जाता है। यह मांड या उबालने के काम में आया पानी, "गर्म" पानी माना जाता है। इसको अचित्त पानी की श्रेणी में गिना जाता है। उबालने की क्रिया द्वारा बनाया हुआ अचित्त गर्म पानी या अचित्त धोवन पानी को काम में लेने का प्रावधान बताया गया है। ऐसे धोवन पानी को पहले छान कर निथार लिया जाता है। निथारने के बाद साधक इसको अपने उपयोग में लेते हैं। यह निरापद अचित्त पानी की श्रेणी में आता है, क्योंकि रसोई की आवश्यक क्रियाओं से यह गौण (अनुषंगी) उत्पाद के रूप में बनता है !
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