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गंधकोषाणुकेसतह की बनावट
गंध अणुओंकी बनावट के प्रकार
fig la : गंध अणुओं की आकृति का नाक की अंदरूनी सतह की प्रतिमुखी बनावट के अनुरूप, एक जोडी के रूप में बैठ जाना (Snug-fit)
5. स्पर्श गुण जैन विज्ञान 8 प्रकार के स्पर्शों को मानता है, जिन की व्याख्या निम्न प्रकार है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार पदार्थ का हर अणु या परमाणु का अपना विद्युत आवेश, प्रकम्पन व विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र होता है। इनका प्रकटीकरण उनके तापक्रम और विद्युत आवेश, के रूप में दिखाई देता है। ये दोनों, उस अणु/परमाणु के दो स्पर्श जोड़ों के द्योतक हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है, स्पर्श गुण के 4 जोड़े माने गये हैं। उपरोक्त दो जोड़े ज्यादा मूलभूत (बुनियादी) माने जाते हैं। यथा शीत-ऊष्ण और धन-ऋण विद्युत आवेश। इन दो जोड़ों से दूसरे दो स्पर्श जोड़े प्रकट होते हैं, यथा घनत्व से संबंधित 'हल्का-भारी' स्पर्श जोड़ा और कठोरता से संबंधित 'मधुर-कठोर' स्पर्श जोड़ा। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि अणु की प्रकम्पन ऊर्जा (ताप), विद्युत ऊर्जा (आवेश) और उसका विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र (जीवनाधार ऊर्जा), तीनों सम्मिलित रूप से उपरोक्त अंतिम दो स्पर्श-जोड़ों को प्रभावित करते हैं।
5.1 जीवित पानी की स्पर्श इंद्रिय और उसकी वैज्ञानिक व्याख्या पानी के केवल एक ही इन्द्रिय होती है, जिसको स्पर्श-इन्द्रिय कहते हैं। बाकी की चारों इन्द्रियाँ, यानि स्वाद, गंध, चक्षु और श्रोतेन्द्रिय पानी के जीव के नहीं होती है। जैन दर्शन के अनुसार किसी भी प्राणी के 4 से 8 प्रकार की स्पर्श-इंद्रियाँ हो सकती है। जलकायिक जीवों के आठों प्रकार के स्पर्श गुण पाये जाते हैं। यानि जल जीव आठों प्रकार के स्पर्शों का अनुभव करने की क्षमता रखता है। उसकी खुद की स्पर्श इंद्रिय है, जो आस-पास के वातावरण में आठों प्रकार के स्पर्श को पहचानने की, अनुभव करने की क्षमता प्रदान करती है। दूसरी ओर चूंकि वह ऐसे परमाणुओं के स्कंध से योनि रूप बना हुआ है जो स्वयं आठों स्पर्श रखते
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