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(H-11)
"जल भी जीव होता है" वैज्ञानिक अवधारणा में क्रांति
i) प्राचीन काल की मान्यताएँहमारे ऋषि मुनियों ने खोज करके हजारों वर्ष पूर्व बताया था कि जल भी एक प्रकार का वैसा ही जीव है, जैसा कि वनस्पति (पेड़-पौधे) का जीव होता है। सर जगदीशचन्द बोस ने करीब 100 वर्ष पूर्व अपने यंत्रों द्वारा, विज्ञान जगत को बताया था कि पेड़-पौधों में संवेदनाएँ होती हैं तथा वे एक प्रकार के जीव होते हैं। तब से इन पर बहुत तीव्र गति से खोज होने लगी। सर बोस ने तो पत्थरों में भी जीव की कल्पना की थी, लेकिन उन पर कोई प्रयोग करने के पहले ही उनका देहान्त हो गया था। अतः पता नहीं है कि उन्होंने किस प्रकार के कोषाणुओं की कल्पना अपने मन में संजोयी थी। हो सकता है कि वह किसी भौतिक रवों का अविकसित कोषाणु रूप रहा हो।
ii) शास्त्रानुसार जल के गुण:हमारे शास्त्रों में जलजीव के बारे में भी काफी विस्तृत वर्णन और चिन्तन मिलता है। जैन ग्रन्थों में तो यहाँ तक बताया गया है कि पानी को उबालने से या उसमें राख आदि घोलने से वह पानी निर्जीव (अचित्त) बन जाता है। फिर यही पानी कुछ घंटों बाद, अलग-अलग ऋतुओं में अलग-अलग अवधि में, जिसको कालमर्यादा कहते हैं, वापिस जीव (सचित्त) बन जाता है। यह सब विज्ञान को एक आश्चर्य लगता है। क्या वास्तव में इस क्रियाओं द्वारा पानी सजीव से निर्जीव अवस्था में चला जाता है ? युवा लोगों को प्रेरित करता है कि वे इन तथ्यों के राज की वैज्ञानिकता को उजागर करने का प्रयास करें।
iii) पानी पर वैज्ञानिक शोधः1 जल की काया (शरीर) का वैज्ञानिक ढाँचाः . इसकी वैज्ञानिकता को समझने के लिए पिछले वर्षों में पानी के अणुओं की बनावट का गहन अध्ययन किया गया । पानी के आवेशधारी अणु, पंजभुजी और
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