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जिनसे हम भी लाभ उठा सकते हैं, जैसे-फव्वारे, ड्रिप आदि । पानी का उपयोगिता - क्षेत्र : पीने के लिए सिंचाई के लिए पशुओं के लिए उद्योग-धंधों में नहाने, कपड़े धोने व फर्श साफ करने में शौचालय में व मनोरंजन में 5. जल में दूषक पदार्थ व उसकी गुणवत्ता : जल में हाइड्रोजन आयन की सांद्रता पी. एच. कहलाती है, जल के लिए यह PH एक महत्त्वपूर्ण मापदंड है। इसके मान में परिवर्तन, जल प्रदूषण का द्योतक है। उदासीन जल का पी. एच. 7 होता है। 0 अंक अधिकतम अम्लीयता का द्योतक है तो 14 अंक अधिकतम क्षारीयता का । अधिक पी. एच. के कारण जल प्रवहन के उपकरण खराब हो जाते हैं। 7 से कम पी. एच. के कारण जीव-जंतु तो खतरे में पड़ते ही हैं, अम्लीयता के कारण मानव जीवन भी असुरक्षित हो जाता है। अतः बरसात के पानी का या कभी-कभी भू-जल का भी शोधन करना आवश्यक होता है। इसका कारण है पानी का गंदलापन या उसमें हानिकारक रसायनों का घुला हुआ होना, ये दूषक पदार्थ पृथ्वी की सतह से, उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थों से या प्रकृति में पाई जाने वाली खदानों से आ मिलते हैं। आर्सेनिक, फ्लोराइड, लौह, अभ्रक, सल्फेट व नाईट्रेट आदि कुछ ऐसे दूषक तत्त्व हैं, जो प्राकृतिक रूप से या उद्योगों के अपशिष्टों से पानी में जा मिलते हैं। अतः उनकी सही जाँच व शोधन करके ही, उस जल को पीने के व अन्य काम में लेना चाहिए । वर्षा ऋतु में बैक्टेरिया, वाइरस तथा अन्य परजीवी पदार्थ भी पानी में जा मिलते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, तथा कई बीमारियों के कारक होते हैं, अतः वर्षा ऋतु में पानी हमेशा छान कर और उबाल कर ही इस्तेमाल करना चाहिए।
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