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कंकड़ डालकर पानी को रिसाइकिल कर, उससे बगीचे को सींचा या टाइलैट को फ्लश किया जा सकता है। बाथरूम और टाइलैट के पानी को अलग अलग करने के लिए दो अलग पाइप लाइन बिछानी होती है। शोधित पानी को टाइलैट तक ले जाने के लिए अलग पाइप लाइन चाहिए। रसोई के पानी को भी दो भागों में बांटा जा सकता है। दो टब लगाकर, एक में वो पानी, जो जूठन, बैक्टेरिया या साबुन वाला नहीं होता है। जैसे सब्जियाँ, अनाज धोने के बाद का पानी। रसायन लगे अनाज को प्रथम बार धोने वाले पानी को दूसरे टब में डाला जाता है। बाद में धोने व भीगोने के पानी को पहले वाले टब में डाला जाता है। पहले वाले टब में थोड़ी राख डालकर पानी को शोधित किया जा सकता है, जो बाद में पीने के भी काम आ सके । इसे धोवन पानी कहा जा सकता है। दूसरा, जूठे बर्तन मांजने के बाद का पानी, या वो पानी जिसमें जूठे बर्तन धोये गये हो। इसमें तेल, मसाले मिले होते हैं। इसलिए इसका पुनर्शोधन (recycle) करके बगीचे या टोयलेट में फ्लश के लिए काम में लिया जा सकता है। वाहन धोने के पानी को भी इकट्ठा (बाल्टी में) करके पुनर्योधन (recycle) कर सकते हैं। सब्जियों आदि को सीधे नल के नीचे धोने की जगह, किसी बाल्टी, टब आदि बर्तन में धोना चाहिए। बाद में वह पानी धोवन के रूप में तब्दील किया जा सकता है। पानी के प्रति हमारे दृष्टिकोण में आमूल-चूल परिवर्तन करने की घोर आवश्यकता है और शुभस्य-शीघ्रम् । स्कूलों तथा सामाजिक संस्थाओं में जागरूकता बढ़ाने व उपयोग पद्धतियों में सुधार करने के लिए युद्ध स्तर (war-footing) पर कार्य करना चाहिए। समाज में पानी के प्रति सम्मान और दुर्लभता का दृष्टिकोण स्थापित करवाना होगा। दैनिक जीवन में इसकी मितव्ययता की नितांत । आवश्यकता समझते हुए, हर स्तर पर जागरूकता के अभियान चलाने होंगे। इसके साथ-साथ शिक्षण संस्थानों में, मितव्ययता के कीर्तिमान स्थापित करने के लिए, उचित और प्रासंगिक प्रतिस्पर्धाओं का जगह-जगह आयोजन हो। जल संयम के इन सब कार्यक्रमों को स्पष्ट सामाजिक व राजनैतिक प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
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