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ढूंढेंगे। फ्रिज में पानी स्व-वाष्पीकरण से ठंडा नहीं होता है, जैसा कि मिट्टी के घड़ों में होता है। यदि पानी का बर्तन वायुरोधी रूप से कस कर बंद किया हुआ है, तो उसका पानी ताप चालकता से और विकिरण की प्रक्रिया से ठंडा होता है। आसपास की हवा से भाप संघनित/द्रवित होकर ओस बूंदों के रूप में बर्तन पर जमा होती हैं। यदि बर्तन का ढक्कन वायुरोधी रूप से बंद नहीं है तो आसपास की वायु बर्तन के पानी के सीधे संपर्क में आयेगी। तथा पानी को "मिश्र-पानी" (कहीं सचित्त और कहीं अचित्त) बना देगी। अतः यह श्रावक के पीने के लिए अनुपयुक्त बन जायेगा। (संदर्भ "सुयगडांग सूत्र, 2 श्रुतस्कंध, 3 अध्याय, (पृ.) 112/113 आहार-प्रज्ञा, "ओस बूंद अचित्त पानी के पुद्गल ग्रहण कर, अचित्त योनि में जन्म लेती है'), इस प्रकार अचित्त पानी, सचित्त पानी में बदल जाता है। यदि पानी का बर्तन वास्तव में वायुरोधी रूप से बंद है (हालांकि साधारण श्रावक को इसका विवेकपूर्वक सही निर्णय लेने में कठिनाई होगी) तो वो पानी अचित्त ही रहना चाहिए। लेकिन इस ठंडे पानी के बर्तन को जब बाहर निकाल कर खोला जाता है, तो देखते हैं कि बाहरी सतह पर बहुत सारा पानी ओस बूंदों के रूप में जमा हो जाता है। यह भी संभावना बन सकती है कि अंदर के ठंडे पानी की सतह द्वारा भी, ऐसी ओस बूंदे सोख ली जाय। क्योंकि तापक्रम में बहुत ज्यादा अंतर रहता है। इस प्रकार कुछ ओस की बूंदे उस अचित्त पानी को मिश्र पानी बना देंगी। यह श्रावक के पीने के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। चूँकि कम तापक्रम व उच्च नमी के कारण उबला पानी शीघ्र जीवित बनता है ; अतः फ्रिज के वातावरण में खुला रखा अचित्त पानी, तेज
गति से सचित्त बनता है। प्रश्न 13: धोवन या उबला पानी बनाने से जलकायिक जीव और अन्य त्रस जीव
आखिरकार मर ही जाते हैं। तब इतना आरंभ करने की क्या जरूरत है। उपरोक्त क्रियाओं में हम किसी जीव की रक्षा नहीं करते हैं। अतः इन प्रक्रियाओं को कैसे अहिंसक माना जा सकता है ? तब हमारी अहिंसा की भावना की रक्षा कैसे होती है।
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