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विज्ञान के अनुसार पानी एक तरल द्रव्य है। इसमें कुछ विशेष परिस्थितियों में बी.ओ.डी. (Biological Oxygen Demand) देखी जाती है। इससे यह संभावना हो सकती है कि ऐसे जैविक सक्रिय (Biological active) पानी को सचित्त–पानी की श्रेणी में रख सकें। लेकिन यह शायद पानी में अवस्थित माइक्रो-प्लाज्मा या बेक्टेरिया जीवाणु से संबंधित मुख्य क्रिया है। उस स्थिति में तो यह जल-जीव से परे, बाह्य जीव है।
__ हर विज्ञान के छात्र के मन में सीधा यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जैन विज्ञान में वर्णित वह 'जीव' कैसा हो सकता है जिसकी पानी ही काया है। साधारणतया यह अब तक के 'जीव' की कल्पना से परे की वस्तु लगती है। जैन विज्ञान के अनुसार जलकाय यानी अप्काय के जीव 7 लाख प्रकार के होते हैं। यानि इनकी 7 लाख प्रकार की योनियाँ होती हैं। इनका संस्थान/शरीर पानी के बुबुदे के समान खोखला और गोलाकार होता है। इसका वर्ण लाल होता है।
हमने आधुनिक विज्ञान में अभी तक ऑर्गेनिक कोषाणु आधारित जीव पदार्थ को ही जाना है, समझा है। हम नये क्षेत्र में - अकार्बनिक कोषाणु पर आधारित जीव पदार्थ की संभावना को तलाशने का प्रयास करेंगे। यह गवेषणा/खोज करने का प्रयास करेंगे कि जैन आगम वर्णित वनस्पतिकायिक जीवों के अलावा एकेन्द्रिय जीव, खास कर अपकाय के जीव किस तरह 'जीव/प्राणधारण करते हैं, किस तरह सचित्त बनते हैं? क्या इनके 'जीवित होने का प्रमाण मिल सकता है? जीवित पानी की वैज्ञानिक अवधारणा
हालांकि विज्ञान ने अभी तक जैव-कोषाणु आधारित जीव को ही मान्यता दी है, फिर भी 'जीवन' की दूसरी संभावना या परिकल्पना, अन्य प्रकार के कोषाण के रूप में हो सकती है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जगदीशचन्द्र बोस ने तो वनस्पति के साथ-साथ ‘पत्थर' आदि को भी 'जीव' के रूप में कल्पित किया था। उन्होंने वनस्पति में जीव के लक्षण होना तो साबित कर ही दिया था, लेकिन पत्थर आदि पर प्रयोग करने के पहले ही उनका देहान्त हो गया था। यह पता नहीं है कि उन्होंने किस प्रकार के कोषाणुओं की कल्पना अपने मन में संजोयी थी। हो सकता है कि ये किसी भौतिक रवों का विकसित कोषाणु रूप रहा हो।
पानी की संरचना
विज्ञान केवल इतना जानता है कि पानी को रासायनिक क्रियाओं द्वारा
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