Book Title: Saral Hastrekha Shastra Author(s): Rameshwardas Mishr, Arunkumar Bansal Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh View full book textPage 9
________________ प्रारम्भिक काल में लौटना होगा। आदि काल के मनीषियों का स्मरण करना होगा जिन्होंने विश्व के महान साम्राज्यों सभ्यताओं, जातियों और राजवंशों को नष्ट हो जाने के बाद भी अपने इस भण्डार को सुरक्षित रखा। विश्व इतिहास के प्रारम्भिक काल का अध्ययन करने पर हमें ज्ञात होगा कि हस्त विज्ञान से सम्बन्धित सामाग्री इन्हीं मनिषियों की धरोहर थी। सभ्यता के उस आदिकाल को मानव इतिहास में आर्य सभ्यता के नाम से पुकारा जाता है। हस्त रेखा विज्ञान के मूल विन्दुओं को जांचते-परखते समय हमें प्रतीत होने लगता है कि हाथों की रेखाओं का यह विज्ञान विश्व के पुरातन विज्ञान में से एक है। इतिहास साक्षी है कि भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों की जोशी नामक जाति न जाने किस काल से हस्त रेखा विज्ञान को व्यवहार में लाती रही स्थूल या सूक्ष्म गतिविधि को संचालित करने वाले स्नायु जिनसे ठीक वैसी ही सलवटें या रेखाएँ बनती हैं। उनका निर्माण प्रमुखरूप से गतिशील देशों से होता है। लेकिन सम्भवतः उनमें कुछ अन्य ऐसे तन्तु भी होते हैं जो अर्जित या अतनिहित प्रवृत्तियों के मिश्रित प्रभावों का कम्पनों द्वारा सम्प्रेषण करते हुए और उनका जीवन रेखा के प्रभावित होने वाले भाग से मुख्य रेखा या उसकी शाखा के जोड़ पर क्राश चिह्न बनाते हुए दोनों का सम्बन्ध स्थापित करते हैं। कुछ कोशिकाओं की ऐसी वृत्ति है जिनके कारण उनमें आगामी घटनाओं का प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। शायद कम्पन्न उत्पन्न हो जाता है। कोशिकाओं में उत्पन्न कम्पन्न अपने साथ जुड़े तर्क प्रक्रियाओं में लगे कोणों में कोई गतिविधि तो उत्पन्न नहीं करवा सकता लेकिन उनमें चेतनात्मक कम्पन्न अवश्य जगा देता है और इन कम्पनों का सम्प्रेषण हाथ पर बने विभिन्न आकार-प्रकार के चिह्नों के साथ में अंकित हो जाता है। एक तर्कयुक्त जीवन के रुप में मनुष्य का हाथ विशेष रुप से विकाश की उच्च स्थिति का द्योतक है। उसकी गति से क्रोध प्रेम आदि प्रवृत्तियों का ज्ञान होता है। यह गति स्थूल अथवा सूक्ष्म होती है, इसलिए उससे हाथं पर बड़ी या छोटी सलवटें या रेखाएं बनती है।Page Navigation
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