Book Title: Saral Hastrekha Shastra
Author(s): Rameshwardas Mishr, Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

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Page 8
________________ हस्तविज्ञान के अध्ययन में और उसे विकसित करने में अनेक दार्शनिक और वर्तमान काल के वैज्ञानिकों ने भी इस ओर ध्यान दिया है। जब हम मनुष्यों की क्रियाशीलता और उसके पूरे शरीर पर प्रभाव के बारे में विचार करते हैं तो यह जानकर आश्चर्य नहीं होता, कि जिन्हे वैज्ञानिकों ने पहले प्रमाणित किया था कि मानव मस्तिष्क और उसके हाथों के बीच जितने भी स्नायु हैं, उतने शारीरिक व्यवस्था में और कहीं भी नहीं हैं। मनुष्य जब हाथों से कुछ करता है तो मस्तिष्क भी सोंचना आरम्भ कर देता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वभाव, संस्कार, प्रकृति और मानसिक स्थिति के व्यक्तियों के हाथों में भिन्न-भिन्न अन्तर होता है। संसार में अनेक आश्चर्यजनक सच्चाइयां हैं, शताब्दियों के कालचक्र ने इस विज्ञान पर धूल जमा दी थी लेकिन मानव के विवेक ने उसे पुनः खोज निकाला और अब इस विज्ञान की सच्चाई पर विश्वास होने लगा है। यह प्रमाणित हो गया है कि हाथ की रेखाएँ एक ऐसा अमिट सत्य है जो व्यक्ति के जीवन और उसकी प्रकृति को स्पष्ट रुप से प्रकट कर देती है। आज भौतिक युग में जो लोग इस विज्ञान की सच्चाई के प्रभाव को जानना चाहते हैं। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि हमें यह विज्ञान शताब्दियों पूर्व प्राप्त हुआ था और वह विज्ञान आज भी अभीष्ट सिद्ध है। हस्त रेखा और भविष्य मानव जाति में कदाचित ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो अपने अतीत का भलीभांति अध्ययन करने के बाद यह अनुभव न करता हो कि उसके विकसित जीवन के कितने वर्ष या कितना भाग उसके अपने और माता-पिता के अनभिज्ञता के कारण बेकार ही बीत चुके हैं। अपने बारे में पूरा-पूरा ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही हम स्वयं को नियन्त्रित करने में सक्षम और समर्थ हो सकेंगे। साथ ही अपनी उन्नति करके मानव जाति की उन्नति कर सकेंगे। हस्त विज्ञान का स्वयं को पहचानने से सीधा सम्बन्ध है। इस विज्ञान की उत्पत्ति पर विचार करने के लिए हमें विश्व इतिहास के

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