Book Title: Saptabhangivinshika Author(s): Abhayshekharsuri Publisher: Divya Darshan Trust View full book textPage 4
________________ श्री सुमतिनाथाय नमः मिरज के मनोरथ १५-७-२७-QG- दवाखानों की नगरी... मिरज... कर्नाटक राज्य की सरहद पर महाराष्ट्र का प्रसिद्ध शहर है मिरज । यहां प्रभु वीर का २५०० वा निर्वाण वर्ष वि. सं. २०३० अधिक भाद्रपद सुद पांचम गुरुवार ता. २२-०८-१९७४ को श्री संघ की स्थापना हुई । रेलवे स्टेशन से ५ मिनट के रस्ते पर, बस स्टेन्ड के सामने मौके की जगह पर शिखरबद्ध जिनालय का खातमुहूर्त व शिलान्यास दि. १७-११-१९७८ को हुआ। एक छोटा संघ होते हुए भी उल्लासपूर्वक साहसपूर्व कडी महेनत लगाकर तन-मन-धन एक करके जिनालय का निर्माण किया गया । पहले प. पू. आ. श्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा. के वरदहस्तों से अहमदनगर में अंजनशलाका की गई पंचधातु की प्रतिमा तथा श्री सिद्धचक्रजी का गट्टा वि. सं. २०४१ मागसर सुद ६ बुधवार २८-११-८४ को धामधुम से मिरजनगर में प्रवेश कराया । नूतन जिनालय के 'मूलनायक श्री सुमतिनाथ भगवान् आदि की अंजनशलाका प. पू. आ. श्री विजय जयशेखर सू. म. सा. के वरदहस्तों से सांगली जवाहर सोसायटी में कराई, और मिरज में वि. सं. २०४५ महासुद-१३ शनीवार ता. १८-२-८९ को प्रवेश कराया गया । उन्हीं आचार्य भगवंत की पावन निश्रा में १० दिन का भव्य जिनेन्द्रभक्तिमहोत्सव के साथ प्रभुजी की प्रतिष्ठा जेठ सुद-९ वि. सं. २०५१ बुधवार ता. ७-६-१९९५ को उल्लासपूर्वक हुई । वि. सं. २०५६ में गुरुदेव पू. जयशेखर सू. म. सा. की पावन निश्रा में उपधान तप की आराधना एवं श्री सूरिमंत्र महापूजन हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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