Book Title: Sanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Author(s): Devardhi Jain
Publisher: Chaukhambha Prakashan

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Page 10
________________ ८ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार और दृष्टिवाद- ये बारह मूलभूत आगमग्रंथ हैं। इनमें से आज दृष्टिवाद उपलब्ध नहीं है। ग्यारह अंग आगमग्रंथ की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। दृष्टिवाद की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी ऐसा श्रीप्रभावकचरित्र में लिखा है। अंगआगमग्रंथों केबादअन्य आगमग्रंथों कीरचना भीहुई।आजपैतालीस आगमग्रंथ उपलब्ध होते हैं। ग्यारह अंग आगमग्रंथ के रचनाकार श्री सुधर्मास्वामीजी म. थे। श्रीदशाश्रुतस्कंध, श्रीकल्पसूत्र एवं श्री व्यवहारसूत्र की रचना श्री भद्रबाहुसूरिजी म. ने की। श्री आतुरंप्रत्याख्यान, श्रीचतुःशरण प्रत्याख्यान की रचना श्री वीरभद्रगणिजी म.ने की। श्री प्रज्ञापनासूत्र की रचना श्रीश्यामाचार्यजी म.ने की। श्री नंदीसूत्रकी रचना श्री देववाचकजी म. ने की। श्री अनुयोगद्वारसूत्र की रचना श्री आर्यरक्षितसूरिजी म. ने की। श्री दशवैकालिकसूत्र की रचना श्री शय्यंभवसूरिजी म.ने की। अन्य आगमग्रंथों के रचनाकार के नाम उपलब्धनहीं हैं। आगमग्रंथों को तीर्थंकरवाणीकाशाब्दिक अवतार माना गया है। जैन धर्म के संख्यातीत ग्रंथों में सर्वाधिक महत्त्व आगमग्रंथों का ही है। २. आगमग्रंथों पर विवरणग्रंथ मूलग्रंथ का अर्थविस्तार विवरण के द्वारा होता है। आगमग्रंथों के विवरण चार स्वरूप में लिखे गए हैं- नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य और टीका। - नियुक्ति की रचना श्री भद्रबाहुसूरिजी म. ने की। आपने दसआगमग्रंथों की नियुक्ति लिखी है। नियुक्ति की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। नियुक्ति पद्यबद्ध रचना है। .... चूर्णि की रचना श्री जिनदासगणि महत्तर, श्री अगस्त्यसिंहसूरिजी म. तथा अन्य अज्ञात नाम लेखकों के द्वारा हुई है। चूर्णि प्राकृत भाषा में लिखा गया गद्यबद्ध विवरण है। आज आगमग्रंथों की १९ चूर्णि उपलब्ध है। ः भाष्य की रचना श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, श्री संघदासगणिजी म. के द्वारा हुई है। भाष्य प्राकृत भाषा में लिखा गया पद्यबद्ध विवरण है। टीका की रचना अनेक लेखकों ने की है। टीका को वृत्ति, विवरण, रहस्यार्थ, विवेचन, विस्तरार्थ, व्याख्या, अवचूरि आदि शब्दों से भी जाना जाता है। सभी शब्दों के कुछ विशेष अर्थ हैं। समानता मात्र इतनी है कि सभी शब्द संस्कृत भाषा में लिखे गए गद्य विवरण के प्रकार विशेष का ही निर्देश करते हैं। .. ३. आगमेतर ग्रंथों की रचना वीरनिर्वाण संवत् के नवम शतक के बाद आगम रचना नहीं हुई। वीरनिर्वाण संवत के प्रारंभ होने से पूर्व आगमेतर ग्रंथ रचना होने लगी थी। भगवान् श्री

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