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३. प्रकरण साहित्यः टीकाग्रंथ
आगमों में अनेक अनेक विषयों का विश्लेषण है। किसी एक विषय को मुख्य बनाकर नूतन ग्रंथ लिखा जाए उसे प्रकरण कहते हैं। एकाधिक विषय को लेकर नूतन ग्रंथ लिखा जाए वह भी प्रकरण ग्रंथ ही होता है।
प्राचीन ग्रंथकारों ने आगमग्रंथों पर आधारित अनेकविध ग्रंथ लिखे हैं। प्रकरणग्रंथ प्राकृत में भी होते हैं और संस्कृत में भी। प्रकरण ग्रंथों के विषय की गहनता ने प्रकरण ग्रंथ पर टीका लिखने की प्रेरणा दी। प्रकरण ग्रंथों पर प्राचीन टीकाएँ दो स्वरूप में मिलती हैं- स्वोपज्ञ टीका और अन्यकृत टीका। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्राचीन प्रकरण ग्रंथों पर टीकाएं लिखी हैं।
. श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा. १. श्री धर्मसूरिजी म... नवतत्त्वसुमंगला-टीका २. श्री उदयसूरिजी म. . जंबूद्वीपसंग्रहणी-टीका .. ३. श्री लावण्यसूरिजी म...
१. तत्त्वार्थत्रिसूत्रीप्रकाशिका २. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-टीका ४. श्री अमृतसूरिजी म. सर्वज्ञसिद्धि-टीका ५. श्री दर्शनसूरिजी म. तत्त्वार्थविवरणगूढार्थदीपिका ६. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. लग्नशुद्धि-टीका ७. श्री भद्रंकरसूरिजी म. ललितविस्तरा-टीका ८. श्री कुलचंद्रसूरिजी म...
१. विंशतिविंशिका-टीका २. मार्गपरिशुद्धि-टीका ९. श्री यशोविजयजी म.
१. भाषारहस्य-टीका २. षोडशक-टीका ३. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-टीका