Book Title: Sanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Author(s): Devardhi Jain
Publisher: Chaukhambha Prakashan

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Page 38
________________ ११. काव्य साहित्य रस- अलंकार से समलंकृत गद्य-पद्य रचना को काव्य कहते हैं। काव्य रचना की प्रवृत्ति ग्रंथकारों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में श्री पादलिप्तसूरिजी म., श्री उद्योतनसूरिजी म., धनपाल, जंबूकवि, श्री रामचंद्रसूरिजी म., अमरचंद्रसूरिजी म., अभयदेवसूरिजी म., श्री उदयप्रभसूरिजी म., वाग्भट्ट, श्री चारित्रसुंदरजी म., श्री देवविमलजी म., श्री मेघविजयजी म., श्री विनयविजयजी म. आदि अनेक ग्रंथकारों ने महाकाव्य और खंडकाव्य की रचना की है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने काव्यसाहित्य का सर्जन किया है १. प्राचीन काव्यों पर टीका श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्री नेमिसूरिजी म. २. श्री लावण्यसूरिजी म. ३. श्री अमृतसूरिजी म. १. सप्तसंधानमहाकाव्य टीका २. शांतिनाथ महाकाव्य टीका - ४. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. १. आर्षभीयचरितमहाकाव्य - टीका २. स्तुतिचतुर्विंशतिका - टीका ४. अनुभूतसिद्धसारस्वतस्तव टीका ६. रामचंद्रद्वात्रिंशिका - टीका ८. गौडीपार्श्वनाथस्तव - टीका ३. मुद्रितकुमुदचंद्र - टीका ५. पंचविंशतिकुसुमांजलि-टीका ७. इन्दुदूत- टीका ९. समस्यास्तव - टीका रघुवंशसर्गद्वय-टीका तिलकमंजरी टीका ४. श्री शुभंकरसूरिजी म. ५. श्री भद्रंकरसूरिजी म. वीतरागस्तव - टीका विजयोल्लास महाकाव्य-टीका

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