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॥ श्रीः ब्र.प्रा.ग्र. 11॥
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
मूर्ती
ATTO
देवर्धि जैन
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।। श्रीः ।।
प्रकाश
चाखर
CHAUS
"RANASI
OKHAMBH
HAN. VARA
A PRAKASH
CHAUKHAMBHA PRAKASHAN
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11:37: 11
ब्रजरत्नदास प्राच्यविद्या ग्रन्थमाला
*200***
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
लेखक देवर्धि जैन
चौखम्भा
KHAMBHA
प्रकाशन ॐ
PRAKASHAN VARAN
चौखम्भा प्रकाशन
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प्रकाशक: चौखम्भा प्रकाशन
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संस्करण : प्रथम, वि० सं० २०६९
मूल्य : १५५.००
Publisher CHAUKHAMBHA PRAKASHAN
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Edition : First, 2012 . Price : Rs. 155.00
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मुद्रक : चारू प्रिंटर्स, वाराणसी
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प्रस्तावना
पानाश्रिता .
धन्यास्ते सुरभारतीषु रचनैर्यैरर्जितं सद्यशः धन्यास्ते भगवद्वचोऽनुसरणैः शास्त्राणि ग्रथ्नन्ति ये। येषां शक्तिसु शारदा विलसति श्री द्वादशांगी श्रिता
तेषां नाम नमामि पुण्यचरितं प्रत्येकमत्यादरात् ।। ... मनुष्य चिंतन मन में करता है, चिंतन की अभिव्यक्ति के लिए वाणी का उपयोग करता है। साधारण वार्तालाप से ऊपर उठकर मनुष्य, धर्म-विद्या-कला के विषय पर वाणी प्रयोग करता है तब उसे असाधारण भाषा की आवश्यकता महसूस होने लगती है। वाणी प्रयोग भी जब वार्तालाप से एक कदम आगे बढ़कर लेखन की भूमिका तक पहुँचता है तब साधारण भाषा अपने आप छूट जाती है। ___ संस्कृत भाषा भारतवर्ष की एक असाधारण भाषा है। विश्व की पाँच मूल भाषाओं के नाम इस प्रकार हैं- १. आर्य (Aryan), २. द्राविड़ (Dravidian) ३. मुण्डा (Munda), ४. मन्-ख्मेर (Mon-khmer), (५) तिब्बत चीना (TibetoChinese)। भारत में आज मराठी, बंगला, ओड़िया, बिहारी, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, सिन्धी और काश्मीरी भाषाओं का प्रयोग होता है- जो मूलतः आर्य भाषा से उत्पन्न हुई हैं। भारत में और भारत के बाहर प्रयुज्यमान अन्य भाषाओं का संबंध, द्राविड़ आदि मूल भाषाओं से है। पाईअसद्दमहण्णवो ग्रंथ की प्रस्तावना में श्री हरगोविंददास शेठ ने लिखा है कि 'अंग्रेजी आदि सुदूरवर्ती भाषाओं के साथ हिन्दी आदि आर्य भाषाओं का जो वंशगत ऐक्य उपलब्ध होता है, इन अनार्य भाषाओं के साथ वह संबंध नहीं देखा जाता है।'
संस्कृत भाषा आर्य भाषाओं में सबसे प्राचीन मानी जाती है। वैदिक परंपरा में संस्कृत, जैन परंपरा में प्राकृत और बौद्ध परंपरा में पालि, यद्यपि सबसे महत्त्वपूर्ण भाषा मानी जाती है लेकिन भारतीय आस्तिक चिंतनधारा की दृष्टि से अवलोकन करें तो संस्कृत भाषा में भारतीय ग्रंथकारों ने सबसे अधिक ग्रंथ लिखे हैं। वार्तालाप की भाषा संस्कृत हो सकती है या नहीं यह चर्चा चलती रहेगी। लेखन की भाषा के रूप में संस्कृत भाषा सर्वाधिक विद्वप्रिय रही है। .
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४ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
आज भारत के विविध राज्यों की अपनी-अपनी भाषा है, संस्कृत भाषा कोई एक राज्य की नहीं परंतु समूचे राष्ट्र की भाषा है। अंग्रेजी को विश्वभाषा और हिंदी को राष्ट्रभाषा कहा गया है, क्योंकि आदान-प्रदान के लिए वो अपनी-अपनी जगह पर अधिक प्रचलित है। केवल जब ग्रंथसर्जन की बात करें तो संस्कृत का गौरव अपूर्व है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के विषय में संस्कृत साहित्य का जो अवदान है वह अपने आप में अनूठा है। ईसा पूर्व २००० से लेकर आजतक संस्कृत भाषा में महामनीषियों के द्वारा नवसर्जन होता रहा है। प्राचीन संस्कृत ग्रंथकारों के विषय में अनेक इतिहास ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं।
पिछले सौ-डेढ़सौ साल में संस्कृत नवसर्जन की धारा में बहुत सारे नए नाम आए हैं। सभी का सामूहिक परिचय एक साथ उपलब्ध हो ऐसी एक सर्वांगीण किताब बनानी चाहिए। ....
हमनें इस निबंध में आधुनिक जैन ग्रंथकारों का वर्गीकरण करके आधुनिक जैन ग्रंथकारों के योगदान का प्राथमिक परिचय देने का प्रयास किया है। आधुनिक जैन ग्रंथकारों की संख्या १५५ तक पहुंची है। ... छोटे-छोटे लेख, स्तोत्र, अष्टक आदि का समावेश हमने नहीं किया है फिर भी ग्रंथ संख्या ७००के आगे निकल चुकी है। हमें लगता है कि संस्कृत भाषा के अन्य जैन ग्रंथकार भी होंगे जो हमारी जानकारी में नहीं आए हैं। हम उन सभी अज्ञात ग्रंथकारों से क्षमायाचना कर लेते हैं। .. जैन ग्रंथों की प्रधान भाषा प्राकृत है। आधुनिक प्राकृत ग्रंथों का भी हमने इस निबंध में समावेश कर लिया है। संस्कृत भाषा कठिन है, प्राकृत भाषा सरल है फिर भी आधुनिक जैन ग्रंथों की प्रमुख भाषा संस्कृत भाषा दिख रही है क्योंकि ७०१ ग्रंथों में से प्राकृत ग्रंथों की संख्या है केवल ३२ और बाकी के ६६९ ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। __वैदिक धर्म, बौद्धधर्म और अन्य धर्मों के भारतीय एवं विदेशी ग्रंथकारों ने संस्कृत भाषा में जो भी नवसर्जन किया है उसका विशाल सूचीकरण जब होगा तब जैनधर्म के आधुनिक ग्रंथकारों की प्रस्तुत सूची अवश्य उपयोगी सिद्ध होगी। आने वाले समय में हम इन्हीं ग्रंथों का विस्तृत परिचय तैयार करेंगे। " जैनधर्म की चार प्रमुख धाराएँ वर्तमान में प्रसिद्ध हैं- श्वेतांबर मूर्तिपूजक, दिगंबर, स्थानकवासी और तेरापंथी। चारों परंपराओं के आधुनिक संस्कृत साहित्य का सूचीकरण एक साथ पर करना- यह भी शायद जैनसंघ में नया प्रयोग है।
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ५
श्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ, बनारस के पुस्तकालय मे अनेक-अनेक पुस्तकों के अवलोकन और अभ्यास करने के बाद हम यह निबंध लिख पाए हैं।
लेखन कार्य में डॉ. सुदर्शनलाल जैन, डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, डॉ. अशोक कुमार सिंह और विशेषत: श्री ओमप्रकाश सिंह का हार्दिक सहयोग हमें मिला है। डॉ. भागचंदजी जैन (नागपुर), डॉ. कमलेश कुमार जैन, डॉ. सुधा जैन का सहयोग श्लाघ्य रहा है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा के आचार्यश्री शीलचन्द्रसूरिजी, आचार्यश्री मुनिचन्द्रसूरिजी का मार्गदर्शन अविस्मरणीय है। चौखम्भा प्रकाशन के श्री सुरेन्द्र कुमार गुप्त का आदरभाव हम नहीं भूल सकते हैं।
११.१२.२०११
देवर्धि
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अनुक्रम
१. भूमिका
२. आगम संबंधी साहित्य
३. प्रकरण साहित्य : टीकाग्रंथ
४. प्रकरण साहित्य : नूतन रचना
५. कर्म साहित्य
६. व्याकरण साहित्य
७. कोश साहित्य
८. दार्शनिक साहित्य
९. अलंकार साहित्य
१०.
छन्दः साहित्य
११. काव्य साहित्य
१२. अध्यात्मयोग साहित्य
१३. उपदेश साहित्य
१४. कथा साहित्य
१५. उपसंहार
१६. नामसूची
१७. आधार ग्रंथ
पृष्ठ संख्या
७-९
१०-१४
१५-१७
१८-२१
२२-२३
२४-२६
२७-२९
३०-३३
३४
३५
३६-४५
४६-४७
४८-५०
५१-५२
५३-५५
५६ - ६२
६३-६४
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१. भूमिका __ जैन ग्रंथों की रचना आत्मसाधना के लिए होती रही है। ग्रंथकार स्वाध्याय करने का उद्देश्य मन में रखकर ग्रंथ लिखते थे। अपनी ज्ञान गरिमा का प्रदर्शन करने का विचार जैन ग्रंथकारों के मन में कभी नहीं था। ग्रंथ का अभ्यास जो भी करेगा उसे आत्मा का तात्त्विक चिंतन करने में मार्गदर्शन मिले यही भाव ग्रंथकारों के हृदय में बना रहता था। श्रमण भगवान् श्री महावीर परमात्मा से लेकर वर्तमान शताब्दी के अंतिम दशक तक ग्रन्थ रचना होती रही है। ग्रंथ रचना चार प्रकार से हुई है
१. आगम ग्रंथों की रचना। २. आगम ग्रंथों पर विवरण ग्रंथों की रचना। ३. आगमेतर ग्रंथों की रचना। ४. आगमेतर ग्रंथों पर विवरण ग्रंथों की रचना।
उपर्युक्त विभाजन का अपना-अपना महत्त्व है। जो भी ग्रंथ रचना की गई उसे विषय की दृष्टि से चार विभागों में बाँट कर चार अनुयोग बताए गए- द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणानुयोग और धर्मकथानुयोग। द्रव्यानुयोग के ग्रंथों में विश्वव्यवस्था संबंधी तात्त्विक और तार्किक निरूपण होता है। गणितानुयोग के ग्रंथों में ज्योतिष, भूगोल आदि विषयक गणित संबंधी निरूपण होता है। चरणकरणानुयोग के ग्रंथों में जैन धर्म संबंधी आचार पद्धति का निरूपण होता है। धर्मकथानुयोग के ग्रंथों में जैन धर्म विषयक कथाओं का संग्रह होता है। जो भी ग्रंथ रचना होती है उसकी विषय परीक्षा अनुयोग के द्वारा होती है। आगम ग्रंथ, आगम ग्रंथ के विवरण, आगमेतर ग्रंथ, आगमेतर ग्रंथ के विवरण- चार अनुयोग में से किसी एक में अवश्य समाविष्ट हो जाते हैं। १. आगम ग्रंथों की रचना
तीर्थंकर भगवान् श्री महावीर परमात्मा के समय में गणधर भगवंतों के द्वारा मूल बारह आगमों की रचना हुई। बारह आगमों को द्वादशांगी भी कहते हैं। आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र, स्थानांगसूत्र, समवायांगसूत्र, भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथासूत्र, उपासकदशासूत्र, अंतकृद्दशासूत्र,अनुत्तरौपपातिकसूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्र, विपाकसूत्र
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८ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
और दृष्टिवाद- ये बारह मूलभूत आगमग्रंथ हैं। इनमें से आज दृष्टिवाद उपलब्ध नहीं है। ग्यारह अंग आगमग्रंथ की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। दृष्टिवाद की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी ऐसा श्रीप्रभावकचरित्र में लिखा है।
अंगआगमग्रंथों केबादअन्य आगमग्रंथों कीरचना भीहुई।आजपैतालीस आगमग्रंथ उपलब्ध होते हैं। ग्यारह अंग आगमग्रंथ के रचनाकार श्री सुधर्मास्वामीजी म. थे। श्रीदशाश्रुतस्कंध, श्रीकल्पसूत्र एवं श्री व्यवहारसूत्र की रचना श्री भद्रबाहुसूरिजी म. ने की। श्री आतुरंप्रत्याख्यान, श्रीचतुःशरण प्रत्याख्यान की रचना श्री वीरभद्रगणिजी म.ने की। श्री प्रज्ञापनासूत्र की रचना श्रीश्यामाचार्यजी म.ने की। श्री नंदीसूत्रकी रचना श्री देववाचकजी म. ने की। श्री अनुयोगद्वारसूत्र की रचना श्री आर्यरक्षितसूरिजी म. ने की। श्री दशवैकालिकसूत्र की रचना श्री शय्यंभवसूरिजी म.ने की। अन्य आगमग्रंथों के रचनाकार के नाम उपलब्धनहीं हैं। आगमग्रंथों को तीर्थंकरवाणीकाशाब्दिक अवतार माना गया है। जैन धर्म के संख्यातीत ग्रंथों में सर्वाधिक महत्त्व आगमग्रंथों का ही है। २. आगमग्रंथों पर विवरणग्रंथ
मूलग्रंथ का अर्थविस्तार विवरण के द्वारा होता है। आगमग्रंथों के विवरण चार स्वरूप में लिखे गए हैं- नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य और टीका।
- नियुक्ति की रचना श्री भद्रबाहुसूरिजी म. ने की। आपने दसआगमग्रंथों की नियुक्ति लिखी है। नियुक्ति की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। नियुक्ति पद्यबद्ध रचना है। .... चूर्णि की रचना श्री जिनदासगणि महत्तर, श्री अगस्त्यसिंहसूरिजी म. तथा अन्य
अज्ञात नाम लेखकों के द्वारा हुई है। चूर्णि प्राकृत भाषा में लिखा गया गद्यबद्ध विवरण है। आज आगमग्रंथों की १९ चूर्णि उपलब्ध है।
ः भाष्य की रचना श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, श्री संघदासगणिजी म. के द्वारा हुई है। भाष्य प्राकृत भाषा में लिखा गया पद्यबद्ध विवरण है।
टीका की रचना अनेक लेखकों ने की है। टीका को वृत्ति, विवरण, रहस्यार्थ, विवेचन, विस्तरार्थ, व्याख्या, अवचूरि आदि शब्दों से भी जाना जाता है। सभी शब्दों के कुछ विशेष अर्थ हैं। समानता मात्र इतनी है कि सभी शब्द संस्कृत भाषा में लिखे गए गद्य विवरण के प्रकार विशेष का ही निर्देश करते हैं। .. ३. आगमेतर ग्रंथों की रचना
वीरनिर्वाण संवत् के नवम शतक के बाद आगम रचना नहीं हुई। वीरनिर्वाण संवत के प्रारंभ होने से पूर्व आगमेतर ग्रंथ रचना होने लगी थी। भगवान् श्री
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ९ महावीरस्वामीजी म. के शिष्य श्री गौतमस्वामीजी म. ने पाक्षिकसूत्र, जगचिंतामणिसूत्र की रचना की थी। भगवान् श्रीमहावीरस्वामीजी म. के शिष्य श्री धर्मदासगणि जी म. ने उपदेशमाला की रचना की थी। तब से लेकर शुरू हुई आगमेतर ग्रंथ रचना की परम्परा आज तक जीवंत है। इसलिए आगमेतर ग्रंथों की संख्या अत्यंत विशाल है। ग्रंथकारों के नाम भी विशाल संख्या में है।
४. आगमेतर ग्रंथों के विवरण ग्रंथ
आगमेतर ग्रंथ प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषाओं में लिखे गए हैं। आगमेतर ग्रंथों के विवरण ग्रंथ दो स्वरूप में मिलते हैं- स्वोपज्ञ विवरण और अन्यकृत विवरण । अधिकांश विवरण ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं।
जैन ग्रंथों को विषय की दृष्टि से तेरह विभागों में बाँट कर देखने से हमें ग्रंथों के विविध आयामों का बोध मिलता है।
१. आगम संबंधी साहित्य
३. कर्म साहित्य
५. कोश साहित्य
७. अलंकार साहित्य
९. काव्य साहित्य
११. उपदेश साहित्य
२. प्रकरण साहित्य
४. व्याकरण साहित्य
६. दार्शनिक साहित्य
८. छंद साहित्य
१०. अध्यात्म-योग साहित्य
१२. कथा साहित्य
१३. प्रकीर्ण साहित्य |
इस विषय विभाजन को आदर्श मानकर हम जैन ग्रंथकारों की अर्वाचीन श्रृंखला का परिचय पाने की कोशिश करेंगे। पिछले सौ - डेढ़ सौ साल में जैन ग्रंथकारों ने जो भी संस्कृत-प्राकृत रचना की है उनका नाम निर्देश हम करेंगे। एक-एक ग्रंथ का परिचय लिखने का प्रयास किया जाए तो यह निबंध महानिबंध बन सकता है। हम वह कार्य आने वाले समय में अवश्य करेंगे।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक, दिगंबर, स्थानकवासी और तेरापंथी - ये चार परंपराएँ जैन धर्म की ग्रंथ रचना का आधार स्रोत है। हमने प्रत्येक परम्परा के नाम पाने की कोशिश की है। कोई ग्रंथ या ग्रंथकार का नाम अगर छूट गया हो तो हमें क्षमा करेंगे।
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२. आगम संबंधी साहित्य
__आगम साहित्य की नवरचना हो नहीं सकती। आगम साहित्य की रचना जिस काल में हुई थी उस काल में ग्रंथ कंठस्थ रखने की परंपरा थी। समय-समय के अंतराल में आगम साहित्य का परिष्करण होता गया। __ श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा के अनुसार आगमग्रंथों का विषय परिवर्तन कभी नहीं हुआ है, लेकिन आगमग्रंथों के सूत्रों के पाठ का निर्धारण किया गया है। वीरनिर्वाण संवत् १६० के आस-पास आचार्यश्री भद्रबाहुसूरिजी म. के सानिध्य में आगमग्रंथों के सूत्रों की वाचना रखी गई थी। कंठस्थ आगमग्रंथों की शाब्दिक रचना को सर्वांगीण शुद्ध बनाने का यह प्रथम प्रयास था। भगवान् महावीर के निर्वाण होने के बाद में एक बार बारह वर्ष का दुष्काल आने से आगमग्रंथों का अभ्यासु श्रमण वर्ग भारत के विभिन्न राज्यों में चला गया था। दुष्काल समाप्त होने पर पाटलिपुत्र में सभी श्रमणों का संमेलन हुआ। कंठस्थ आगमग्रंथों में से कुछ ग्रंथों का पाठ टूट चुका है, ऐसा लगने से श्रीभद्रबाहुसूरिजी म. ने सभी आगमग्रंथों के मूल पाठ का निर्धारण किया। आपको सभी आगमग्रंथ कंठस्थ थे। आपके द्वारा निर्धारित सूत्रपाठ सर्वमान्य हुआ।
वीरनिर्वाण संवत् ८२७ से ८४० के मध्यांतर में पुनः एक बार बारह वर्ष का दुष्काल आने से श्रमण वर्ग विभिन्न राज्यों में बिखर गया। दुष्काल समाप्त होने के बाद श्रमण वर्ग के दो संमेलन हुए। एक संमेलन मथुरा में हुआ। मथुरा के संमेलन में अध्यक्ष स्थान श्री स्कंदिलाचार्य ने लिया था। दूसरा संमेलन वल्लभी में हुआ। वल्लभी के संमेलन का अध्यक्ष स्थान श्री नागार्जुनसूरिजी म. ने लिया था। दोनों संमेलन समान समय में हुए लेकिन एक-दूसरे से कोई संपर्क न होने से दोनों की वाचना अलग हुई।
मथुरा की वाचना में श्रमण वर्ग के पास जो भी कंठस्थ आगम साहित्य था उसका पाठ निर्धारण हुआ। कुछ आगम साहित्य नष्ट हो चुका है यह बात भी मथुरा की वाचना में स्पष्ट हुई। मथुरा में आगमग्रंथों के जो पाठ निश्चित हुए उन्हे श्रीस्कंदिलाचार्य के मार्गदर्शनानुसार श्रमण वर्ग ने स्वीकार लिए। वल्लभी में जो वाचना हुई उसमें भी वहाँ उपस्थित श्रमण वर्ग को जो आगम साहित्य कंठस्थ था उसका पाठ-निर्धारण
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ११
हुआ। कुछ आगम साहित्य नष्ट हो चुका है, यह बात वल्लभी की वाचना में भी स्पष्ट हुई। वल्लभी में जो वाचना हुई उसमें कंठस्थ आगमों को लिखा गया था। श्री नागार्जुनसूरिजी म. का मार्गदर्शन मुख्य रहा। __ वीरनिर्वाण संवत् ९६० के आस-पास भी बारह वर्ष का दुष्काल आया। दुष्काल समाप्त होने पर श्रमण वर्ग का संमेलन वल्लभी में हुआ। वल्लभी में यह दूसरा संमेलन था। इस संमेलन के अध्यक्ष थे श्री देवर्धिगणि क्षमाश्रमण। यह वाचना ऐतिहासिक बनी थी। संपूर्ण ग्रंथ साहित्य को अक्षरशः लिखने का निर्णय लिया गया। पुरातन वाचना के अक्षर पाठों का विमर्श हुआ। मथुरा वाचना के पाठों को 'स्कंदिली वाचना' नाम मिला। पुरातन वल्लभी वाचना के पाठों को 'नागार्जुनी वाचना' नाम मिला। द्वितीय वल्लभी वाचना में आगम लेखन हुआ उसमें मथुरा वाचना को मुख्य आधार माना गया था। पाठभेद होने पर विभिन्न पाठों को लिखकर बताया गया कि यह पाठ नागार्जुनी वाचना का है। आगम लेखन के विराट पुरुषार्थ के बाद दो लाभ सिद्ध हुए। एक, आगम पाठों का नया पाठभेद उपस्थित होने की संभावना नामशेष हुई। दो, आगमग्रंथ पुस्तकारूढ़ होने से विस्मरण और विलोप का भय कम हुआ।
वल्लभीपुर में आगम लेखन का कार्य संपन्न हो गया। श्रमण वर्ग को लगा कि कुछ विषय ग्रंथस्थ नहीं है लेकिन परंपरागत क्रम से सिखाए जाते हैं। ऐसे विषयों को ग्रंथबद्ध करने के लिए नूतन ग्रंथ रचनाएं की गईं। __ आगमग्रंथों का लिखित अवतार होने से आगमग्रंथों का वांचन सरल हो गया। जो ग्रंथ गुरुमुख से सुनकर याद रखे जाते थे वो ग्रंथ लिखे गए, इसलिए ग्रंथों का स्वाध्याय व्यापक हो गया। जो कंठस्थ कर सकते थे वो कंठस्थ करके आगमग्रंथों का अभ्यास करते रहे। जो कंठस्थ नहीं कर सकते थे वो वांचन करते रहे। प्राकृत भाषा में विरचित आगमसूत्रों के अर्थ और रहस्यार्थ समझने के लिए विवरणग्रंथ की अपेक्षा विशेषतः महसूस होने लगी। आगम लेखन की विशिष्ट फलश्रुति अब आई। आगमग्रंथों पर समृद्ध टीकाएं लिखने का प्रारंभ हुआ। आगम संबंधी साहित्य की परंपरा में नियुक्ति, चूर्णि और भाष्य का स्थान महत्त्वपूर्ण है। टीकाएँ विशेष स्थान ले सकी क्योंकि लेखन पद्धति उपलब्ध थी। टीकाकारों को विषय-विस्तार के लिए पर्याप्त अवकाश मिला। संस्कृत भाषा के प्रचलन को टीकाओं के द्वारा गति मिली। आगमग्रंथों के टीकाकारों की सूची लंबी है।
विक्रम की आठवीं शताब्दी में श्री हरिभद्रसूरिजी म. ने अनुयोगद्वारसूत्र, नंदीसूत्र, प्रज्ञापनासूत्र, आवश्यकसूत्र, ओघनियुक्तिसूत्र, जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, जीवाजीवाभिगमसूत्र
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१२ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
इतने आगमग्रंथों पर टीकाएँ लिखीं। विक्रम की दसवीं शताब्दी में श्री शीलांकाचार्य ने आचारांग और सूत्रकृतांग पर टीकाएँ लिखी। विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में श्री शांतिसूरिजी म. ने उत्तराध्ययनसूत्र के ऊपर टीका लिखी। विक्रम की बारहवीं शताब्दी में श्री अभयदेवसूरिजी म. ने ज्ञाताधर्मकथासूत्र, स्थानांगसूत्र, समवायांगसूत्र, भगवतीसूत्र, उपासकदशासूत्र, अन्तकृद्दशासूत्र, अनुत्तरौपपातिकसूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्र, विपाकसूत्र, औपपातिकसूत्र और प्रज्ञापनासूत्र के ऊपर टीकाएँ लिखीं। श्रीहेमचन्द्रसूरिजी म. (मलधारी) ने विशेषावश्यकसूत्र, आवश्यकसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र और नंदीसूत्र पर टीकाएँ लिखीं। विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में श्री मलयगिरिसूरिजी म. ने आवश्यकसूत्र, ओघनियुक्ति, चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, जीवाजीवाभिगमसूत्र, ज्योतिष्करंडक, नंदीसूत्र, पिंडनियुक्ति, प्रज्ञापनासूत्र, बृहत्कल्पपीठिका, भगवतीसूत्र का द्वितीय शतक, राजप्रश्नीयसूत्र और व्यवहारसूत्र पर टीकाएँ लिखीं।
अन्य प्राचीन टीकाकारों में श्री द्रोणाचार्य, श्री नमिसाधु, श्री वीरगणिजी म., श्रीचन्द्रसूरिजी म., श्री तिलकाचार्य, श्री क्षेमकीर्तिसूरिजी म., श्री ज्ञानसागरसूरिजी म., श्रीकुलमंडनजी म. आदि नाम मुख्य हैं। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने आगमग्रंथों की टीकाएँ लिखी हैं
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्रीमुक्तिविमलजी म. कल्पसूत्र टीका २. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. भगवतीसूत्र प्रशस्ति टीका ३. श्री कुलचन्द्रसूरिजी म. १. आचारांगसूत्र टीका ___२. सूत्रकृतांग टीका ३. कल्पसूत्र टीका ४. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म. १. ऋषिभाषित टीका २. अंगचूलिका टीका ३. वर्गचूलिका टीका
४. सूत्रकृतांग द्वितीय संग्रहणी टीका
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दिगंबर परंपरा
दिगंबर परंपरा की मान्यता है कि मूल आगमों का विच्छेद हो चुका है, अतः आगम संबंधी साहित्य दिगंबर परम्परा में उपलब्ध नहीं हैं।
स्थानकवासी परंपरा
१. श्री घासीलालजी म.
१. आचारांग टीका
३. स्थानांग टीका
५. व्याख्याप्रज्ञप्ति टीका
७. उपासकदशा टीका
९. अनुत्तरौपपातिक टीका
११. विपाकसूत्र टीका
१३. राजप्रश्नीय टीका
१५. प्रज्ञापना टीका
१७. चन्द्रप्रज्ञप्ति टीका
१९. निरयावलिका टीका
२१. पुष्पिका टीका
२३. वृष्णिदशांग टीका
२५. दशवैकालिक टीका
१७. अनुयोगद्वार टीका
२९. बृहत्-कल्प टीका
३१. दशाश्रुतस्कंध टीक
२. श्री हस्तीमलजी म.
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : १३
१. श्री महाप्रज्ञजी म.
२२. सूत्रकृतांग टीका
४. समवायांग टीका
६. ज्ञाताधर्मकथा टीका
८. अन्तकृद्दशा टीका
१०. प्रश्नव्याकरण टीका
१२. औपपातिक टीका
१४. जीवाजीवाभिगम टीका
१६. सूर्यप्रज्ञप्ति टीका
१८. जंबूद्वीप्रज्ञप्ति टीका
२०. कल्पावतंसिका टीका
२२. पुष्पचूलिका टीका
२४. उत्तराध्ययन टीका
२६. नंदीसूत्र टीका
२८.. निशीथसूत्र टीका
३०. व्यवहारसूत्र टीका
३२. आवश्यकसूत्र टीका
बृहत्-कल्पसूत्र टीका
तेरापंथी परंपरा
श्री आचारांगसूत्रभाष्यम् (प्राकृत)
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१४ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
(आगम संबंधी साहित्य लौकिक भाषा में तो पर्याप्त मात्रा में लिखा गया है। आगमों के टब्बार्थ, अनुवाद, विवेचन आदि साहित्य; गुजराती-हिन्दी-अंग्रेजी आदि भाषा में आज मिलता है। आधुनिक भाषाओं का प्रचार बढ़ने से संस्कृत-प्राकृत भाषाएँ उपेक्षित होने लगी हैं। जहाँ गुजराती-हिन्दी-अंग्रेजी में लिखा गया आगम संबंधी साहित्य अति विशाल संख्या में है वहाँ संस्कृत-प्राकृत भाषा में लिखा गया साहित्य अल्प संख्या में है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और तेरापंथी परंपरा को संमिलित करे तो भी आगमग्रंथों पर लिखी गई टीकाओं की संख्या ४३ के आसपास पहुंचती है।)
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३. प्रकरण साहित्यः टीकाग्रंथ
आगमों में अनेक अनेक विषयों का विश्लेषण है। किसी एक विषय को मुख्य बनाकर नूतन ग्रंथ लिखा जाए उसे प्रकरण कहते हैं। एकाधिक विषय को लेकर नूतन ग्रंथ लिखा जाए वह भी प्रकरण ग्रंथ ही होता है।
प्राचीन ग्रंथकारों ने आगमग्रंथों पर आधारित अनेकविध ग्रंथ लिखे हैं। प्रकरणग्रंथ प्राकृत में भी होते हैं और संस्कृत में भी। प्रकरण ग्रंथों के विषय की गहनता ने प्रकरण ग्रंथ पर टीका लिखने की प्रेरणा दी। प्रकरण ग्रंथों पर प्राचीन टीकाएँ दो स्वरूप में मिलती हैं- स्वोपज्ञ टीका और अन्यकृत टीका। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्राचीन प्रकरण ग्रंथों पर टीकाएं लिखी हैं।
. श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा. १. श्री धर्मसूरिजी म... नवतत्त्वसुमंगला-टीका २. श्री उदयसूरिजी म. . जंबूद्वीपसंग्रहणी-टीका .. ३. श्री लावण्यसूरिजी म...
१. तत्त्वार्थत्रिसूत्रीप्रकाशिका २. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-टीका ४. श्री अमृतसूरिजी म. सर्वज्ञसिद्धि-टीका ५. श्री दर्शनसूरिजी म. तत्त्वार्थविवरणगूढार्थदीपिका ६. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. लग्नशुद्धि-टीका ७. श्री भद्रंकरसूरिजी म. ललितविस्तरा-टीका ८. श्री कुलचंद्रसूरिजी म...
१. विंशतिविंशिका-टीका २. मार्गपरिशुद्धि-टीका ९. श्री यशोविजयजी म.
१. भाषारहस्य-टीका २. षोडशक-टीका ३. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-टीका
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१६ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
१०. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म. १. सामाचारीप्रकरण - टीका
३. नानाचित्त प्रकरण- टीका
५. दुःषमगंडिका- टीका
७. सद्बोधचंद्रोदय - टीका
९. अष्टावक्रगीता - टीका
११. बोटिकोपनिषद्
१३. वादोपनिषद्
१५. शिक्षोपनिषद्
१७. अवधूतगीता-टीका ११. श्रीहितवर्धनविजयजी म.
१२. श्री गुणहंसविजयजी म.
१३. श्रीरत्नबोधिविजयजी म.
१. श्री सुधर्मसागरजी म.
दिगंबर परम्परा
दिगंबर परंपरा में आगमग्रंथों का स्थान प्राचीन ग्रंथों ने लिया है। प्राचीन ग्रंथों पर
प्राचीन टीकाएँ भी लिखी गई हैं।
अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्राचीन ग्रंथों पर टीकाएँ लिखी हैं
१. पुरुषार्थानुशासन - टीका
३. प्रतिक्रमण - टीका
५. परमार्थोपदेशगुणभूषण - टीका
२. श्री प्रणम्यसागरजी म.
- २. लोकतत्त्वनिर्णय-टीका
४. उपदेशरत्नकोश - टीका
६. विसंवादप्रकरण- टीका
.८. इष्टोपदेश - टीका
१०. हितोपनिषद्
१२. तत्त्वोपनिषद्
१४. वेदोपनिषद्
१६. ज्ञानपंचकविवरण- टीका
१८. जीवदयाप्रकरण- टीका
१. लिंगशीलपाहुड-टीका
३. चैतन्यचन्द्रोदय-टीका
सम्यक्त्वरहस्य - टीका
सामाचारीप्रकरण- टीका
धर्माचार्यबहुमानकुलक- टीका
२. रयणसार- टीका
४. श्रावकाचार - टीका
२. समाधितंत्र - टीका
४. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय-टीका
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५. आत्मानुशासन - टीका
३. मूलचन्द्र शास्त्री
१. षोडशकप्रकरण टीका
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : १७
६. बारसाणुवेक्खा - टीका
२. हर्षसूरिप्रबंध - टीका
स्थानकवासी परंपरा
तेरापंथी परंपरा
संभवत: दोनों परंपरा में प्राचीन ग्रंथ रचना न होने से प्राचीन ग्रंथ की टीकाएँ भी नहीं हैं।
2 स.भा.आ. जै.ग.
(अर्वाचीन ग्रंथकारों के द्वारा लिखी हुई टीकाओं की संख्या ४७ के आस-पास है। प्रकरण ग्रंथों के हिंदी - गुजराती - अंग्रेजी आदि भाषा में अनुवाद एवं विवेचन अनेक विद्वानों ने किए हैं।)
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४. प्रकरण साहित्य : नूतन रचना
आगम ग्रंथों की संख्या सीमित हैं। आगम ग्रंथ के आधार पर नूतन ग्रंथों की रचना विशाल संख्या में हुई है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में श्री पादलिप्तसूरिजी म., श्री उमास्वातिजी म., श्री हरिभद्रसूरिजी म., श्री हेमचन्द्रसूरिजी म., श्री चन्द्रप्रभसूरिजी म., श्री नेमिचन्द्रसूरिजी म., श्री मुनिचन्द्रसूरिजी म., श्री जिनवल्लभसूरिजी म., श्री जिनदत्तसूरिजी म., श्री यशोदेवसूरिजी म., श्री विनयविजयजी म., श्री यशोविजयजी म. आदि अनेक ग्रंथकारों ने अपने-अपने समय में नूतन ग्रंथ रचना की थी। __ दिगंबर परंपरा में श्री गुणधर जी, श्री पुष्यदंत-भूतबलिजी, श्री कुंदकुंदाचार्य, श्री उमास्वामिजी, श्री वट्टकेरजी, श्री शिवार्यजी, श्री समंतभद्रजी, श्री देवसेनजी आदि अनेक ग्रंथकारों ने अपने-अपने समय में नूतन ग्रंथ रचना की थी। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने नूतन ग्रंथ रचना की है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्री लब्धिसूरिजी म.
१. तत्त्वन्यायविभाकरः २. तत्त्वन्यायविभाकर-टीका
३. सूत्रार्थमुक्तावलिः ४. सूत्रार्थमुक्तावलि-टीका २. श्री आनंदसागरसूरिजी म. १. तत्त्वार्थपरिशिष्टम्
२. ईर्यापथपरिशिष्टम् ३. दृष्टिसंमोहविचारः
४. द्रव्यबोधत्रयोदशी ५. द्वेषजयद्वादशिका ६. धर्मतत्त्वविचारः ७. धर्मास्तिकायादिविचारः ८. निसर्गदशी ९. नयानुयोगाष्टकम् १०. प्रव्रज्याविधानकुलकम् ११. मंगलविचारः
१२. लोपकपाटीशिक्षा
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१३. विधिविचारः
१५. जैनपूर्णत्वाष्टादशिका
१७. सौख्यषोडशिका
१९. हरिभद्रसूरिसमयदीपिका
२१. परिहार्यमीमांसा
२३. अचित्ताहारद्वात्रिंशिका
२५. अनुक्रमपंचदशिका
२७. आचेलक्यम्
२९. ईर्याद्वापंचाशिका
३१. उत्सर्पणार्थविचारः
३३. उद्यमपंचदशिका
३५. क्रियाद्वात्रिंशिका
३७. क्षायोपशमिकभावविचारः
३९. जयसोमसिक्खा
४१. तात्त्विकविमर्शः
४३. देवायभंजकशिक्षा
४५. पर्युषणापरावृतिः
४७.
पर्षदिकल्पवाचना
.पौषधपरामर्श:
४९. ५१. व्यवहारा-व्यवहारराशि:
५३. श्रमणो भगवान् महावीरः
५५. संलक्षणानि
५७. सामायिकेर्यास्थाननिर्णयः
५९. पंचसूत्रतर्कावतारः
६१. पंचसूत्री
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : १९
१४. सद्धर्माष्टकम्
१६. जमालिमतखंडनम्
१८. सिद्धषट्त्रिंशिका
२०. ज्ञानपद्यावलिः
२२. आराधनामार्गः
२४. अधिगमसम्यक्त्वैकादशी
२६. अर्हत्-शतकम्
२८. मिथ्यात्वविचारः
३०. ईर्यापथिकानिर्णयः
३२. उत्सूत्रभाषणफलम्
३४. उपकारद्वादशिका
३६. क्षमाविंशतिका
३८. चैत्यद्रव्योत्सर्पणम्
४०. ज्ञानपंचविंशतिका
४२. दुष्प्रतिकारविचार:
४४. देवनिर्याणविचारः
४६. पर्युषणाप्रभा
४८. पौषधविमर्शः
५०. वीरविवाहविचारः
५२. श्रमणधर्मसहस्री
५४. श्रुतशीलचतुर्भंगी
५६. संहननानि
५८. हिंसकत्वाहिंसकत्वे
६०. पंचसूत्रवार्तिकम्
६२. आगमोद्धारककृतिसंदोहः,
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२० : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
३. श्री नंदनसूरिजी म. १. प्रतिष्ठातत्त्वम्
३. पर्युषणातिथिविनिश्चयः
४. श्री जगच्चन्द्रसूरिजी म.
१. द्रव्यपरिमाणप्रकरणम्
५. श्री सौम्यज्योतिश्रीजी म.
६. चिन्नास्वामी
८. राजनारायण शर्मा
१. श्री ज्ञानसागरजी म.
१. प्रवचनसारः
२. श्री कुंथुसागरजी म. १. शांतिसुधासिंधुः
३. मुनिधर्मप्रदीपः
५. बोधामृतसार:
७. ज्ञानामृतसारः
९. स्वरूपदर्शनसूर्यः
११. नरेशधर्मदर्पणः
१३. लघुज्ञानामृतसारः १५. . भावत्रयफलदर्शी
३. श्री सुधर्मसागरजी म.
४. पन्नालाल साहित्याचार्य
१. सम्यक्त्वचिंतामणिः
३. सम्यक्चारित्रचिंतामणिः
५. सामायिकपाठः
२. आचेलक्यतत्त्वम्
२. क्षेत्रस्पर्शनाप्रकरणम् अष्टादशसहस्रशीलांगरथमाला
शासनजयपताका
अर्हत्तिथिभास्करः
दिगंबर परंपरा
२. सम्यक्त्वसारशतकम्
२. श्रावक धर्मप्रदीपः
४. मोक्षमार्गप्रदीपः
६. निजात्मशुद्धिभावना
८. लघुबोधामृतसारः
१०. स्वप्नदर्शनसूर्यः
१२. लघुप्रतिक्रमणम्
१४. लघुसुधर्मोपदेशसारः
१६. सुवर्णसूत्रम् सुधर्मध्यानप्रदीपः
२. सद्ज्ञानचन्द्रिका
४. धर्मकुसुमोद्यानम्
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : २१
स्थानकवासी परंपरा १.श्री घासीलालजी म. १. गणधरवादः
२. गृहिधर्मकल्पतरु ३. मोक्षपदप्रकरणम् ४. जैनागमतत्त्वदीपिका ५. सूक्तिसंग्रहः
६. तत्त्वप्रदीपः ७. कल्पसूत्रम्
८. तत्त्वार्थसूत्रम् २. श्री रत्नचन्द्रजी म. . कर्तव्यकौमुदी
- तेरापंथी परंपरा १. श्री तुलसीजी म.
१. जैनसिद्धांतदीपिका २. पंचसूत्रम् ३. शिक्षाषण्णवतिः . ४. कर्तव्यषट्त्रिंशिका ५. संघषट्त्रिंशिका (अर्वाचीन ग्रंथकारों ने कुल मिलाकर ११२ के आस-पास नूतन प्रकरण ग्रंथों की रचना की है। हिंदी-गुजराती-अंग्रेजी आदि भाषा में जैन तत्त्वज्ञान विषयक अनेक-अनेक पुस्तक लिखे गए हैं।)
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५. कर्म साहित्य
कर्मसिद्धांत जैन धर्म का विशिष्ट तत्त्वज्ञान है। कर्म विषयक विश्लेषण और विवेचन आगमग्रंथों में उपलब्ध है। कर्मविषयक निरूपण के लिए अनेक आगमेतर ग्रंथों की रचना हुई है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा अनुसार - श्री शिवशर्मसूरिजी म., श्रीचंद्रर्षि महत्तर, श्री जिनवल्लभसूरिजी म., श्री देवेन्द्रसूरिजी म. आदि अनेक ग्रंथकारों ने कर्म साहित्य की नूतन रचना की थी।
दिगंबर परंपरा अनुसार श्री नेमिचंद्रजी, श्री चामुंडरायजी, श्री माधवचंद्रजी आदि अनेक ग्रंथकारों ने कर्म साहित्य के नूतन ग्रंथों का सर्जन किया है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने कर्म विषयक नूतन ग्रंथों की रचना की है
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा प्राचीन ग्रंथों पर टीकाग्रंथ १. श्री नंदनसूरिजी म.
१. चतुर्थ कर्मग्रंथ टीका २. द्वितीय कर्मग्रंथ टीका नूतनग्रंथ रचना १. श्री प्रेमसूरिजी म. १. मार्गणाद्वारविवरणम् २. कर्मसिद्धिः ३. संक्रमकरणम् २. श्री नंदनसूरिजी म. समुद्घाततत्त्वम् ३. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. कर्मप्रवादमीमांसा ४. श्री वीरशेखरसूरिजी म. १. बंधविहाणं
२. बंधविहाणउत्तरपयडिस्थानप्ररूपणा-१ ३. बंधविहाणउत्तरपयडिस्थानप्ररूपणा-२
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : २३
४.
बंधविहाणउत्तरपयडिभूयस्कारादिबंध - १
५. बंधविहाणउत्तरपयडिभूयस्कारादिबंध :- २
६. बंधविहाणउत्तरपयडिभूयस्कारादिबंध :- ३
५. श्री गुणरत्नसूरिजी म.
१. खवगसेढी
२. खवगसेढी टीका
४. बंधविहाणमूलपयडिबंधटीका
३. उपशमनाकरणम्
६. श्री जगच्चंद्रसूरिजी म.
१. बंधविहाणमूलपयडिठिईबंधटीका २ . बंधविहाणउत्तरपयडिठिईबंधटीका
७. श्री विचक्षणसूरिजी म.
बंधविहाणउत्तरपयडिंबंधटीका
८. श्री जितेन्द्रसूरिजी म.
बंधविहाणउत्तरपयडिरसबंधटीका
९. श्री जयघोषसूरिजी म.
बंधविहाणउत्तरपयडिपएसबंधटीका
१०. श्री राजशेखरसूरिजी म. बंधविहाणमूलपयडिपएसबंधटीका
११. श्री जयशेखरसूरिजी म.
बंधविहाणमूलपयडिरसबंधटीका
१२. श्री बुद्धिसागरसूरिजी म. १. कर्मयोगः
२. कर्मप्रकृतिः
दिगंबर-स्थानकवासी-तेरापंथी परंपरा में कर्म विषयक नूतन साहित्य की रचना संभवत: नहीं हुई है।
(अर्वाचीन ग्रंथकारों ने कुल मिलाकर २६ के आस-पास कर्म विषयक नूतन ग्रंथों की रचना की है। कर्म साहित्य संबंधी हिंदी - गुजराती-अंग्रेजी पुस्तकें विशाल संख्या में लिखी गई हैं। )
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६. व्याकरण साहित्य
प्राकृत और संस्कृत भाषा के सांगोपांग अध्ययन के लिए व्याकरण ग्रंथों की रचना प्राचीन ग्रंथकारों ने की है।
श्वेतांबर परंपरा में- श्री बुद्धिसागरसूरिजी म., श्री हेमचंद्रसूरिजी म., श्री मलयगिरिसूरिजी म., श्री मेघविजयजी म., श्री विनयविजयजी म. आदि ग्रंथकारों ने अपने-अपने समय में नूतन व्याकरण ग्रंथों की रचना की थी।
दिगंबर परम्परा में - त्रिभुवन, श्री देवनंदिजी, श्री शाकटायनजी आदि ग्रंथकारों ने नूतन व्याकरण ग्रंथों की रचना की थी।
अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषा के व्याकरण की रचना की है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा प्राचीन व्याकरणों पर टीका
१. श्रीचंद्रसागरसूरिजी म. सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका २. श्री लावण्यसूरिजी म.
१. सिद्धहेमशब्दानुशासनन्यासअनुपूर्तिः २. न्यायार्थसिंधुतरंगवृत्तिः ३. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. ... १. सिद्धहेमशब्दानुशासनपद्य-टीका २. प्राकृतव्याकरणपद्य-टीका
३. सिद्धहेमशब्दानुशासनप्रशस्तिविवरणम् ४. श्री दर्शनरत्नसूरिजी म. सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका
श्री विमलरत्नसूरिजी म. नूतन व्याकरण ग्रंथ की रचना १. श्री नेमिसूरिजी म. १. बृहद् हेमप्रभा
२. लघु हेमप्रभा
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : २५
२. श्री आनंदसागरसूरिजी म. १. सिद्धप्रभा
२. मध्यमसिद्धप्रभा ३. लघुसिद्धप्रभा ३. श्री लावण्यसूरिजी म. १. हेमचंद्रिका
२. धातुरत्नाकरः
दिगंबर परंपरा कोई नूतन व्याकरण ग्रंथ की रचना संभवतः नहीं हुई।
स्थानकवासी परंपरा १. श्री घासीलालजी म. १. आर्हत्-व्याकरणम् २. आर्हत्-व्याकरण-टीका ३. प्राकृतकौमुदी ४. प्राकृतचिंतामणिः ५. न्यायरत्नसारः
६.न्यायरत्नावलिः ७. न्यायरत्नावलि-टीका २. श्री रत्नचंद्रजी म. १. अर्धमागधीव्याकरणम् २. अर्धमागधीव्याकरण-टीका
तेरापंथी परंपरा १. श्री चौथमलजी म. १. भिक्षुशब्दानुशासनम् २.भिक्षुशब्दानुशासन-उणादिवृत्तिः ३. भिक्षुन्यायदर्पणबृहद्वृत्तिः ४. कालूकौमुदी २. श्री महाप्रज्ञजी म. तुलसीमंजरी (प्राकृतव्याकरणम्) ३. श्री चंदनमलजी म..
१. भिक्षुशब्दानुशासनलघुवृत्तिः २.भिक्षुलिंगानुशासनवृत्तिः ४. रघुनंदन शर्मा १.भिक्षुशब्दानुशासनबृहद्वृत्तिः २.भिक्षुलिंगानुशासनम्
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२६ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
५. श्री धनराजजी म.
भिक्षुशब्दानुशासनलघुवृत्तिः
६. श्री सोहनलालजी म.
- तुलसीप्रभाप्रक्रिया
(अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्राकृत संस्कृत भाषा के जो नए व्याकरण ग्रंथ लिखे हैं उनकी संख्या ३४ के आस-पास है। हिंदी - गुजराती - अंग्रेजी में लिखी गई मार्गदर्शिकाएँ भी विशाल संख्या में हैं जो प्राकृत- संस्कृत भाषा का अध्ययन करने में उपयोगी हैं।)
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७. कोश साहित्य
शब्दों के विविध अर्थ का बोध कोश के द्वारा होता है। प्रत्येक भाषा का स्वतंत्र शब्दकोश होता है। शब्द और अर्थ का संबंध व्याकरण से है। कोश की रचना जिसने की उसके संप्रदाय का नाम कोश के साथ जुड़ जाता है। जैन ग्रंथकारों ने कोश की रचना की है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में- धनपाल, धनंजय, श्री हेमचंद्रसूरिजी म., श्री महेन्द्रसूरिजी म., श्री वल्लभगणिजी म., श्री जिनदेवमुनि, श्री सहजकीर्तिजी म., श्री ज्ञानविमलसूरिजी म., श्री हर्षकीर्तिसूरिजी म., श्री साधुसुन्दरसूरिजी म. श्रीसुधाकलशजी म., श्री अमरचंद्रसूरिजी म. आदि अनेक कोशकार हुए हैं।
दिगंबर परंपरा में-श्रीअमरकीर्तिजी, श्रीधरसेनमुनि, श्रीअसग आदि कोशकार हुए हैं।
प्राचीन कोश की रचना श्लोकबद्ध होती थी। अकारादिक्रम की योजना का प्रचलन प्राचीनकोशग्रंथों में नहीं है। आधुनिक कोश में श्लोकबद्ध रचना नही है और अकारादिक्रम की वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग है। आधुनिक कोश का संपादन अतिशय श्रमसाध्य होता है।
अर्वाचीन ग्रंथकारों ने नूतन कोशग्रंथों का संपादन किया है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्री राजेन्द्रसूरिजी म.
१. अभिधानराजेन्द्रकोशः २. पाईयसबंबुही २. श्री आनंदसागरसूरिजी म.
१. अल्पपरिचितसैद्धांतिककोशः २. लघुतमनामकोशः ३. श्री मुक्तिविजयजी म. शब्दरत्नमहोदधिः ४. हरगोविंददास शेठ पाईअसद्दमहण्णवो ५. श्री हेमचंद्रसूरिजी म. अभिधानचिंतामणिनाममाला
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२८ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
(परिशिष्टस्थ-सार्थशब्दानुक्रमः) ६. श्री मुक्तिचंद्रसूरिजी म. शब्दमाला
श्री मुनिचंद्रसूरिजी म. ७. श्री पूर्णचंद्रविजयजी म. अभिधानव्युत्पत्तिप्रक्रियाकोशः श्री दिव्यरत्नविजयजी म... श्री मुनिचंद्रविजयजी म. श्री महाबोधिविजयजी म. ८. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. अनेकार्थसहस्री ९. श्री दीपरत्नसागरजी म.
१. आगमशब्दकोषः २. आगमनामकोषः १०. श्री विनयरक्षितविजयजी म.आगमपद्यानामकारादिक्रमः ११. उदयचंद जैन प्राकृत हिंदीकोश १२. अमृतलाल सलोत संस्कृत धातुकोश
दिगंबर परंपरा १. जिनेन्द्रवर्णीजी
जैनेन्द्रसिद्धान्तकोशः २. वेलणकरजी
जिनरत्नकोशः ३. बी. एल. जैन
बृहज्जैनशब्दार्णवः ४. बालचंद्र सिद्धांतशास्त्री जैनलक्षणावली
स्थानकवासी परंपरा १. श्री घासीलालजी म. १. श्रीलालनाममालाकोषः २. नानार्थोदयसागरकोषः ३. शिवकोषः २. श्री रत्नचंद्रजी म. १. जैनागमकोशः .. २. अर्धमागधीकोशः
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१. श्री चंद्रजी म.
२. श्री कुसुमप्रज्ञाजी म.
३. श्री सिद्धप्रज्ञाजी म.
श्री निर्वाणश्रीजी म.
४. श्री अशोक श्रीजी म.
श्री विमलप्रज्ञाजी म.
श्री सिद्धप्रज्ञाजी म.
श्री कुसुमप्रज्ञाजी म.
अन्य
१. मोहनलाल बांठिया
१. लेश्याकोश
३. वर्धमानजीवनकोश
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : २९
तेरापंथी परंपरा
आगमशब्दकोशः
एकार्थकशब्दकोशः
निरुक्तकोशः
देशीशब्दकोशः
२. क्रियाको
(अर्वाचीन ग्रंथकारों द्वारा संपादित कोशग्रंथों की संख्या ३१ के आस-पास है। हिंदी - गुजराती-अंग्रेजी भाषा के कोश तो अनेक हैं।)
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८. दार्शनिक साहित्य
-
धर्मतत्त्व का सूक्ष्म चिंतन करना यह दर्शन है। जैन धर्म के अनुसार स्याद्वाद, सातनय, प्रमाण आदि विषयक तर्कबद्ध चर्चा-दार्शनिक साहित्य में होती है।
श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा अनुसार श्री सिद्धसेन दिवाकरजी म., श्री मल्लवादीसूरिजी म., श्री सिंहगणिजी म., श्री हरिभद्रसूरिजी म., श्रीसिद्धर्षिगणिजी म., श्री अभयदेवसूरिजी म., श्री चंद्रप्रभसूरिजी म., श्री शांतिसूरिजी म., श्री मुनिचंद्रसूरिजी म., श्री वादिदेवसूरिजी म., श्री मलयगिरिसूरिजी म., श्री हेमचंद्रसूरिजी म., श्री रामचंद्रसूरिजीम., श्री रत्नप्रभसूरिजी म., श्री यशोविजयजी म., आदि अनेक ग्रंथकारों ने दार्शनिक साहित्य का नवसर्जन किया।
दिगंबर परंपरा अनुसार श्रीसमंतभद्रजी, श्री अकलंकजी, श्री विद्यानंदजी, श्री माणिक्यनंदीजी, श्री अनंतवीर्यजी म., श्री कनकनंदिजी, श्री प्रभाचंद्रजी, श्री वादिराजजी, श्री वसुनंदिजी, श्री अनंतकीर्तिजी आदि के द्वारा दार्शनिक साहित्य का नवसर्जन हुआ है।
अर्वाचीन ग्रंथकारों ने दार्शनिक साहित्य का नवसर्जन किया है। प्राचीन दार्शनिक ग्रंथों पर टीका
श्वेतांबर परंपरा १. श्री नेमिसूरिजी म. १, सम्मतितर्कव्याख्यानम् २. न्यायालोक-टीका ३. जैनन्यायखंडनखाद्यविवरणम् ४. अनेकान्तव्यवस्था-टीका २. श्री लब्धिसूरिजी म. १. सम्मतितत्त्वसोपानम् २. द्वादशारनयचक्रविषमपदविवेचनम् ३. श्री लावण्यसूरिजी म. १. शास्त्रवार्तासमुच्चय-टीका २. अनेकांतव्यवस्था-टीका ३. जैनतर्कभाषा-टीका ४. नयरहस्य-टीका
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५. . सप्तभंगीनयप्रदीप-टीका
४. श्री नंदनसूरिजी म.
५. श्री दर्शनसूरिजी म.
१. सम्मतितत्त्वमहार्णवावतारिका
६. श्री उदयसूरिजी म.
७. श्री अमृतसूरिजी म.
८. श्री शिवानंदविजयजी म.
१. वादमाला - टीका
३. अयोगव्यवच्छेदिकावृत्तिः
९. श्री शुभंकरसूरिजी म. १. जैनतर्क भाषा टीका ३.अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका टीका
१०. श्री न्यायविजयजी म.
११. श्रीचन्द्रगुप्तसूरिजी म. १२. श्री कीर्तियशसूरिजी म.
१३. श्री यशोविजयजी म.
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ३१ ६. नयोपदेशस्वोपज्ञव्याख्यावृत्तिः स्याद्वादरहस्यपत्रविवरणम्
१५. श्री गुणहंसविजयजी म.
१. सिद्धांतलक्षणटीका
१६. श्री राजधर्मविजयजी म.
२. महावीरस्तवकल्पलतिका जैनतर्कभाषा - टीका
स्याद्वादकल्पतावतारिका
२. धर्मपरीक्षाटीप्पणम्
२. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका टीका
प्रमाणपरिभाषा टीका
व्याप्तिपंचकरहस्यविवरणम्
सम्मतितर्कटीका
१. वादमाला टीका
३. स्याद्वादरहस्य टीका
१४. श्री उदयवल्लभविजयजी म. जैनतर्कभाषाविवरणम्
२. न्यायालोकटीका
२. व्याप्तिपंचक- टीका. गूढामृतलीला (व्याप्तिपंचकटीका)
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३२ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
१. श्री नेमिसूरिजी म. १. न्यायसिंधुः
३. सप्तभंगीउपनिषद्
५. स्पृश्यास्पृश्यनिर्णयः
७. अनेकांतोपनिषद्
नूतन ग्रंथ रचना
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा
२. श्री बुद्धिसागरसूरिजी म.
३. श्री न्यायविजयजी म.
१. न्यायतीर्थप्रकरणम्
१३. अनेकांतविभूतिः
४. श्री दर्शनसूरिजी म.
५. श्री नंदनसूरिजी म.
१. जैनसिद्धांतमुक्तावलिः
, जैनतर्कसंग्रहः
३.
२. नयोपनिषद्
४. प्रतिमामार्तंडः
६. अनेकांतत्तत्त्वमीमांसा
१. सप्तभंगीमीमांसा
३. जगत्कर्तृत्वमीमांसा
१०. श्री शीलचंद्रसूरिजी म.
जैनस्याद्वाद उक्तावलिः
२. न्यायकुसुमांजलिः
स्याद्वादबिंदु:
२. जैनसिद्धांतमुक्तावलि - टीका
६. श्री उदयसूरिजी म. १. मूर्तिमंतव्यमीमांसा
७. श्री लावण्यसूरिजी म.
८. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म.
१. जगत्कर्तृत्वनिरासविंशिका २. स्वाध्यायभाष्यम्
९. श्री शिवानंदविजयजी म.
२. मूर्तिपूजायुक्तिबिंदु:
नयगोचरभ्रमनिवारणम्
२. निक्षेपमीमांसा
जैनतर्कसंग्रह-टीका
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११. श्री अभयशेखरसूरिजी म.
१. सप्तभंगीविंशिका ३. निक्षेपविंशिका
३५. नयविशिंका
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ३३
१. दरबारीलालजी पंडित
२. चैनसुखदास न्यायतीर्थ
३. मूलचंद्र शास्त्री
२. सप्तभंगीविंशिका टीका ४. निक्षेपविंशिका - टीका
3 स. भा. आ. जे.ए.
... ६. नयविशिंका- टीका
दिगंबर परंपरा
न्यायदीपिकाटिप्पणम्
जैनदर्शनसारः
न्यायरत्नम्
स्थानकवासी परंपरा
दार्शनिक साहित्य रचना संभवत: नही हुई है।
तेरापंथी परंपरा
१. श्री तुलसीजी म.
२. श्री नत्थमलमुनि ( बागौर)
१. युक्तिवादः
२. अन्योपदेशः
३. श्री कानमलजी म.
तुलसीन्यायप्रवेशिका
(अर्वाचीन ग्रंथकारों ने दार्शनिक साहित्य के जो ग्रंथ लिखे उसकी संख्या ७० के आस-पास है। हिंदी-गुजराती- अंग्रेजी में लिखे गये दार्शनिक ग्रंथों की संख्या विशाल है।)
भिक्षुन्यायकर्णिका
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९. अलंकार साहित्य
रस-अलंकार से समृद्ध रचना को काव्य कहते हैं। अलंकार साहित्य में काव्यतत्त्व का विवेचन होता है। __श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में श्री हेमचंद्रसूरिजी म., वाग्भट्ट, श्री नरेन्द्रप्रभसूरिजी म., श्री जयमंगलसूरिजी म., मंडनमंत्री, श्री नमिसाधु आदि अनेक ग्रंथकारों ने अलंकारग्रंथों की रचना की है।
दिगंबर परंपरा में श्री जिनसेन, पं. आशाधर आदि ग्रंथकारों ने अलंकार ग्रंथों की रचना की है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने अलंकार साहित्य की रचना की है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. प्राचीन ग्रंथ पर टीका ।
१. श्री लावण्यसूरिजी म. काव्यानुशासनटीका २. नूतन ग्रंथ रचना
१. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. १. काव्यविमर्शः
२. साहित्यशिक्षामंजरी ३. साहित्यशिक्षामंजरी-टीका दिगंबर, स्थानकवासी और तेरापंथी परंपरा में संभवतः अलंकार साहित्य की नूतन रचना नहीं हुई है।
(अर्वाचीन ग्रंथकारों के द्वारा विरचित अलंकार साहित्य के ग्रंथों की संख्या ४ के आस-पास है।)
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१०. छन्दः साहित्य
पद्य रचना के विविध प्रकार का परिचय छन्दः साहित्य से होता है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में श्री हेमचन्द्रसूरिजी म. आदि ग्रंथकारों ने छन्दः साहित्य की रचना की है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने छन्दः साहित्य की रचना की है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. प्राचीन ग्रंथ पर टीका
१. श्री लावण्यसूरिजी म. छन्दोऽनुशासन टीका २. नूतन ग्रंथ रचना १. श्री जिनेन्द्रसूरिजी म. छन्दोऽमृतरसः
दिगंबर परंपरा संभवत: नवरचना नहीं हुई है।
स्थानकवासी परंपरा १. श्री घासीलालजी म. वृत्तबोधः
___ तेरापंथी परंपरा संभवतः नवरचना नहीं हुई है।
(अर्वाचीन ग्रंथकारों के द्वारा विरचित छन्दःसाहित्य के ग्रंथों की संख्या ३ के आस-पास है।)
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११. काव्य साहित्य
रस- अलंकार से समलंकृत गद्य-पद्य रचना को काव्य कहते हैं। काव्य रचना की प्रवृत्ति ग्रंथकारों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में श्री पादलिप्तसूरिजी म., श्री उद्योतनसूरिजी म., धनपाल, जंबूकवि, श्री रामचंद्रसूरिजी म., अमरचंद्रसूरिजी म., अभयदेवसूरिजी म., श्री उदयप्रभसूरिजी म., वाग्भट्ट, श्री चारित्रसुंदरजी म., श्री देवविमलजी म., श्री मेघविजयजी म., श्री विनयविजयजी म. आदि अनेक ग्रंथकारों ने महाकाव्य और खंडकाव्य की रचना की है।
अर्वाचीन ग्रंथकारों ने काव्यसाहित्य का सर्जन किया है
१. प्राचीन काव्यों पर टीका
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा
१. श्री नेमिसूरिजी म.
२. श्री लावण्यसूरिजी म.
३. श्री अमृतसूरिजी म.
१. सप्तसंधानमहाकाव्य टीका २. शांतिनाथ महाकाव्य टीका -
४. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म.
१. आर्षभीयचरितमहाकाव्य - टीका २. स्तुतिचतुर्विंशतिका - टीका
४. अनुभूतसिद्धसारस्वतस्तव टीका
६. रामचंद्रद्वात्रिंशिका - टीका
८. गौडीपार्श्वनाथस्तव - टीका
३. मुद्रितकुमुदचंद्र - टीका
५. पंचविंशतिकुसुमांजलि-टीका
७. इन्दुदूत- टीका
९. समस्यास्तव - टीका
रघुवंशसर्गद्वय-टीका
तिलकमंजरी टीका
४. श्री शुभंकरसूरिजी म.
५. श्री भद्रंकरसूरिजी म.
वीतरागस्तव - टीका
विजयोल्लास महाकाव्य-टीका
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ३७
६. श्री मुनिचंद्रसूरिजी म. शालिभद्रमहाकाव्य-टीका __ श्री मुक्तिचंद्रसूरिजी म... ७. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म. प्रार्थनोपनिषद् ८. श्री रत्नबोधिविजयजी म... जयतिहुअणस्रतोत्रवृत्ति ..... ९. रम्यरेणु ..
१. पणिपीयूषपयस्विनी २. वज्रस्वामीचरित-अन्वयः १०. श्री महायशाश्रीजी म. चतुर्विंशति चैत्यवंदना-टीका
२.महाकाव्य की रचनाएँ
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्री सुशीलसूरिजी म. लावण्यसूरि महाकाव्यम् । २. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. , वज्जचरियं (प्राकृत) ३. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म.
. १. सिद्धान्तमहोदधिमहाकाव्यम् २. समतासागरमहाकाव्यम् । ३. भुवनभानवीयमहाकाव्यम्-सकार्तिकम् । ४. श्री मोक्षरतिविजयजी म. रामचंद्रीयमहाकाव्यम् ५. श्री प्रशमरतिविजयजी म. माणिभद्रमहाकाव्यम् ६. श्री रत्नबोधिविजयजी म. समतामहोदधिमहाकाव्यम् ७. नित्यानंद शास्त्री
१. पुण्यचरितमहाकाव्यम्। २. क्षमाकल्याणचरितम् ८. हीरालाल हंसराज विजयानंदाभ्युदयमहाकाव्यम्
दिगंबर परंपरा १. श्री ज्ञानसागरजी म. १.८ १. जयोदयमहाकाव्यम् .. २. वीरोदयमहाकाव्यम्
३. सुदर्शनोदयमहाकाव्यम् ४. समुद्रदत्तचरितमहाकाव्यम्
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३८ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
५. वीरेन्द्रशर्माभ्युदयमहाकाव्यम् २. मूलचंद्र शास्त्री -- लोकाशाहमहाकाव्यम् ३. बालचंद्र शास्त्री स्वर्णाचलमहाकाव्यम् ४. उदयचंद जैन
बाहुबलिमहाकाव्यम्
स्थानकवासी परंपरा १. श्री घासीलालजी म.
१. लोकाशाहमहाकाव्यम् २. शांतिसिंधुमहाकाव्यम् २. श्री देवेन्द्रमुनिजी म. अमरसिंहमहाकाव्यम् ३. श्री मिश्रीमलजी म. १.पांडवयशोरसायनम् (कड़क मिश्री) २. रामयशोरसायनम्
तेरापंथी परंपरा १. श्री नत्थमलमुनि (बागौर) भिक्षुमहाकाव्यम् २. रघुनंदन शर्मा तुलसीमहाकाव्यम्
३. खंडकाव्य की रचनाएँ
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्री लब्धिसूरिजी म. चैत्यवंदनचतुर्विंशतिः २. श्री न्यायविजयजी म. १. वीरविभूतिः
२. महात्मविभूतिः ३. भक्तगीतम्
४. दीनाक्रंदनम् ५. धर्मसूरिश्लोकांजलिः ६. महेन्द्रस्वर्गारोहः
७. भगवत्पंचाशिका ३.श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म.
१. आत्मबोधरसायनम् २. समणधम्मरसायणं-सटीकम् (प्राकृत) ३. मयूरदूतम्--सटीकम् ४. लक्षणविलासः
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ३९
५. संधिविनोदपंचदशी ६. अण्णुत्तिसययं (प्राकृत) ७. अष्टस्मरणपादपूर्तिः ८. आत्मबोधपंचविंशतिका ९. क्रियागुप्तिशतकम् ४. श्री नंदनसूरिजी म.
जैनस्तोत्रभानुः ५. श्री शीलचन्द्रसूरिजी म. १. अलंकारनेमिः २. गुरुगुणसंकीर्तनकाव्यम् ३. चतुर्विंशतिजिनस्तवना ६. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म.
१. परमप्रतिष्ठाकाव्यम् २. प्रेममंदिरस्तोत्रम् ७. श्री भुवनचंद्रजी म. पंचसूत्रकाव्यम् ८. श्री प्रतापविजयजी म. नूतनस्तोत्रसंग्रहः . . ९. श्री यशोविजयजी म.( प्रवर्तक) स्तुतिकल्पलता १०. श्री मोक्षरतिविजयजी म. हस्तगिरिप्रशस्तिः ११. श्री प्रशमरतिविजयजी म.
१. स्मृतिमंदिरप्रशस्तिः २. हेमसंकीर्तनम् १२. श्री राजसुंदरविजयजी म. १. सौम्यवदनाकाव्यम् २. जिनेन्द्रस्तोत्रम् ३. वच्छराजविहारप्रशस्तिः ४. जिनराजस्तोत्रम् ५. अर्हत्स्तोत्रम् १३. श्री हितवर्धनविजयजी म. रामचंद्रः स मे गुरुः १४. श्री प्रशमनिधिश्रीजी म. श्रेयस्करजिनचतुर्विंशतिका १५. नारायणाचार्य कमललब्धिमहोदयकाव्यम्
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ना
४० : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
. . दिगंबर परंपरा १. श्री ज्ञानसागरजी म.
१. मुनिमनोरंजनशतकम् २. भक्तिसंग्रहः । २. श्री विद्यासागरजी म. १. श्रमणशतकम्
२. भावनाशतकम् ३. निरंजनशतकम्
४. परीषहजयशतकम् ५. सुनीतिशतकम्
६.मुक्तकशतकम् ७. तीर्थशतकम्
८.निजानुभवशतकम् ३. मूलचंद्र शास्त्री १. वचनदूतम्
२. अभिनवस्तोत्रम ४. नेमिचंद्र जैन
कषायजयभावना ५. पन्नालाल साहित्याचार्य १. रविव्रतोद्यापनम् । । २. त्रैलोक्यतिलकव्रतोद्यापनम् ३. अशोकरोहिणीव्रतोद्यापनम् ४. वृषभजिनेन्द्रपूजा ६. श्री सुपार्श्वमती माताजी अजितसागरपूजा ७. गोविंदराय शास्त्री
१. कुरलकाव्यम् । । २. बुंदेलखंडगौरवकाव्यम् ८. भुजबली शास्त्री शांतिशृंगारविलासः
स्थानकवासी परंपरा १. श्री घासीलालजी म..
....... १. नवस्मरणानि ' काला : २. सूक्तिसंग्रहः । २. श्री मिश्रीमलजी म.- १. पद्यप्रबंधः ।
(कडकमिश्री) २. मधुरशिक्षाखंडकाव्यम्
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३. श्री मिश्रीमलजी म.
१. मधुकरकाव्यकल्लोलिनी
४. श्री रत्नचंद्रजी म.
५. श्री पुष्करमुनिजी
६. मधुकर शास्त्री
७. कृष्णदत्त शर्मा
१. श्री महाप्रज्ञजी म.
१. अश्रुवीणा
२. श्री नथमलजी म.
१. वैराग्यतरंगिणी
३. श्री चंदनमलजी म.
१. प्रबोधपंचपंचाशिका
३. अनुभवशतकम्
५. वैराग्यैकसप्ततिः
४. श्री छत्रमलजी म.
१. कृष्णशतकम्
३. भिक्षुशतकम्
५. कालूशतकम्
७. तेरापंथशतकम्
९. भिक्षुद्वात्रिंशिका
श्री चंपालालजी म.
१. अणुव्रतशतकम्
५.
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ४१
२. ज्योतिर्धरजयः
भावनाशतकम्
अमरसूरिकाव्यम्
महावीरसौरभम्
आत्मारामीयकाव्यम्
तेरापंथी परंपरा
२. भिक्षुशतकम्
२. जिनचतुर्विंशतिका
२. प्रास्ताविकश्लोकशतकम्
४. आत्मभावद्वात्रिंशिका
६. पंचतीर्थी
२. महावीरशतकम्
४. जयाचार्यशतकम्
६. तुलसीशतकम्
८. देवगुरुद्वात्रिंशिका
१०. तुलसीद्वात्रिंशिका
२. धर्मशतकम्
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४२ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
६. श्री मधुकरजी म.
१. समस्याशतकम्
७. श्री गुलाबचंद्रजी म.
८. श्री दुलीचंदजी म.
१. तुलसीशतकम्
९. श्री नगराजजी म.
१. भिक्षुशतकम्
३. स्तबकम्
१०. श्री राकेशकुमारजी म.
१. नैशंद्विशतकम्
३. एकाह्निकंद्विशतकम्
११. श्री वत्सराज मुनि
१. चतुरायामः
३. श्लोकसंग्रहः
१२. श्री मीठालाल मुनि
१. आषाढ़ भूतिशतकम्
१३. श्री धनराजजी म.
-- २. तुलसीशतकम् शिक्षाशतपदी
२. एकाह्निकशतकम्
२. माथेरानशतकम्
२. श्लोकसहस्री
४. श्लोकसंग्रहः
२. एकाह्निकशतकम्
२. चित्रबंधकाव्यम् एकाह्निकशतकम्
१४. श्री डुंगरमलजी म.
१. पांडवविजयः
३. गुरुगौरवम्
१५. श्री बुद्धमलजी म.
रोहिणेयः
१६. श्री धनराजजी म. (द्वितीय) भावभास्करकाव्यम्
१७. श्री महेन्द्रकुमारजी म.
१. एकाह्निकपंचशती
२. अन्योक्तिसंदोहः
२. भारीमालशतकम्
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ४३
३.चन्दनबालानाटकम् १८. श्री सुखलालजी म.
१. एकाह्निकशतकम् २. उन्निद्रम् १९. श्री मोहनलालजी म.(शार्दूल) कर्करकाव्यम् २०. श्री मोहनलालजी म. १. एकाह्निकशतकम् २. कल्पना ३. कर्बुरकाव्यम् २१. श्री पुष्पराजजी म.
१. अर्धचन्द्रस्य चन्द्रिका २. ध्यानपुष्पम् २२. श्री मोहनकुमारीजी म. श्लोकशतकम् २३. श्री कनकश्रीजी म. पृथ्वीशतकम् २४. श्री फुलकुमारीजी म. हरिश्चंद्रकालिकद्विशतकम् २५. श्री संघमित्राजी म.
१. संस्कृतगीतमाला २. गीतिगुच्छः २६. श्री कमलश्रीजी म.
गीतिगुंफः २७. श्री मंजुलाजी म.
गीतिसंदोहः २८. श्री मालूजी म. एकाह्निकशतकम् २९. श्री जतनकुँवरजी म. एकाह्निकशतकम् ३० श्री मानकुँवरजी म. एकाह्निकशतकम् ३१. श्री सोहनलालजी म. एकाह्निकशतकम् ३२. रघुनंदन शर्मा १. प्राकृतकाश्मीरम्
२. साधुशतकम्
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४४ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
४. गद्य एवं चंपू रचना श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा
संभवतः ग्रंथ रचना नहीं हुई है।
१. श्री ज्ञानसागरजी म.
२. श्री मूलचंद्र शास्त्री
३. श्री बिहारीलाल शर्मा
१. श्री रत्नचंद्रजी म.
२. श्री दयाचंद्रजी म.
१. श्री तुलसीजी म.
१. निबंधनिकुरंबम्
३. कविमाहात्म्यम्
५. किं तत्त्वम्
७. दिशा-संकेताः
२. श्री महाप्रज्ञजी म.
३. श्री चंदनमलजी म.
१. आर्जुनमालाकारम्
धर्मदर्शकविवेकः
दिगंबर परंपरा
दयोदयचंपूः
वर्धमानचंपूः
मंगलायतनम्
स्थानकवासी परंपरा
३.
५. ज्योतिःस्फुलिंगाः
१. मुकुलम्
३. संस्कृतभारतीयाः संस्कृतिश्च
रत्नगद्यमालिका
अमरभारती
तेरापंथी परंपरा
२. सौराज्यम
४. धर्मरहस्यम्
६.
. सर्वमस्ति
८. प्रसंगोपात्तम्
२. निबंधावलिः
४. जयपुरयात्रा
२. प्रभवप्रबोधः
४. निबंधावलिः
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________________
४. श्री बुद्धमलजी म.
१. निबंधसंदोहः
३. स्मितम्
५. भारतीय-संस्कृतिः
५. श्रीचंद्रजी म.
१. अवयवनिबंध:
६. श्री मोहनलालजी म.
१. प्रयासप्रशस्तिः
७. श्री मोहन कुमारजी म.
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ४५
२. आत्ममीमांसाप्रवेशिका
४. उत्तिष्ठ जाग्रत
२. एकाक्षरनिबंध:
२. भारतीय संस्कृतिः निबंधमाला
५.
स्तोत्र साहित्य
अर्वाचीन ग्रंथकारों की चारों परंपरा में स्तोत्ररचना विशाल संख्या में की गई है। स्तोत्र की और स्तोत्रकारों की सूचि बनाना अत्यंत कठिन है। स्वतंत्र पुस्तक के रूप में जो स्तोत्र संग्रह उपलब्ध थे उसका उल्लेख खंडकाव्य में किया गया है। हिन्दीगुजराती-अंग्रेजी आदि पुस्तकों में एक या दो पन्ने के स्तोत्र मिलते हैं। ऐसे स्तोत्रों को रचना जरूर कह सकते हैं लेकिन ये रचनाएँ ग्रंथ नही है, अतः स्तोत्र साहित्य की संपूर्ण या अपूर्ण सूचि हमने बनाई नही है । यह सूचि एक स्वतंत्र निबंध का विषय बन सकती है।
आसपास
(अर्वाचीन ग्रंथकारों नें २६ के आसपास महाकाव्य लिखें है, १३० के. खंडकाव्यों की रचना की है, ३२ के आसपास गद्य काव्यों की रचना की है एवं संख्याबद्ध स्तोत्र काव्यों की रचना की है। हिन्दी - गुजराती - अंग्रेजी आदि भाषाओं में काव्य साहित्य लिखा गया है उसे तो सूचि में बांध भी नही सकते हैं।)
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१२. अध्यात्म-योग- साहित्य
धर्म प्रवृत्ति मे एक हो जाना और विशेष आत्मशुद्धि करना यह अध्यात्म - योग है| अध्यात्म - योग संबंधी मार्गदर्शन आगमशास्त्रों में भी मिलता है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में श्री हरिभद्रसूरिजी म., श्री हेमचंद्रसूरिजी म., श्री हर्षवर्धनोपाध्याय, श्री यशोविजयजी म. आदि ग्रंथकारों ने अध्यात्म - योग विषयक ग्रंथो की रचना की है।
दिगंबर परंपरा में श्री देवनंदि, श्री प्रभाचंद्र, श्री अजितदेव, श्री आशाधर, श्री शुभचंद्र आदि ग्रंथकारों ने अध्यात्म - योग विषयक ग्रंथों की रचना की है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने अध्यात्म - योग विषयक ग्रंथों की रचना की है।
१. प्राचीन ग्रंथ पर टीका
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा
१. श्री नेमिसूरिजी म.
२. श्री भद्रंकरसूरिजी म.
१. अध्यात्मोपनिषत् - टीका
३. श्री शुभंकरसूरिजी म. ४. श्री मित्रानंदसूरिजी म. ५. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म.
१. सत्त्वोपनिषद्
६. श्री यशोविजयजी म.
१. श्री बुद्धिसागरजी म.
१. अध्यात्मगीता
३. आत्मप्रदीपः
५. आत्मदर्शनगीता
अध्यात्मोपनिषद् विवरणम्
२. अध्यात्मसार - टीका
ज्ञानसार- टीका
अध्यात्मबिंदु टीका
२. श्रामण्योपनिषद् अध्यात्मोपनिषत्-टीका
२. नूतन रचना
२. आत्मस्वरुपम्
४. आत्मसमाधिशतकम्
६. परमात्मदर्शनम्
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ४७
७. शुद्धोपयोगः
८.चेतनशक्तिः ९. परब्रह्मनिराकरणम् २. श्री न्यायविजयजी म. १. अध्यात्मतत्त्वालोकः २. अज्झत्ततत्तालोओ (प्राकृत) ३. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. अध्यात्मसारानुगमः ४. श्री प्रशमरतिविजयजी म. संवेगरतिः ५. गिरिश शाह १. योगतत्त्वविवेचनम् २. आत्मतत्त्वसमीक्षणम् ३. नमस्कारपदावलिः ४. आशाप्रेमस्तुतिः
दिगंबर परंपरा संभवतः ग्रंथ रचना नही हुई है।
स्थानकवासी परंपरा संभवत: ग्रंथ रचना नही हुई है।
तेरापंथी परंपरा १. श्री तुलसीजी म. सी. मनोऽनुशासनम् २. श्री महाप्रज्ञजी म. संबोधिः
(अर्वाचीन ग्रंथकारों ने कुल मिलाकर २७ के आसपास अध्यात्म ग्रंथ लिखे हैं। हिंदी-गुजराती-अंग्रेजी आदि भाषा में गद्य-पद्य नवरचना विशाल संख्या में हुई है।)
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१३. उपदेश साहित्य
धर्म का आचरण करने के लिये प्रेरित करने वाले सरल-सरस ग्रंथों का उपदेश साहित्य में समावेश होता है।
श्वेतांबर परंपरा में श्री धर्मदासमणिजी म., श्री हरिभद्रसूरिजी म., श्री जिनदत्तसूरिजी म., श्री देवभद्रसूरिजी म., श्री मुनिसुंदरसूरिजी म. आदि ग्रंथकारों ने उपदेश विषयक ग्रंथों की रचना की है।
दिगंबर परंपरा में श्री गुणभद्र, श्री प्रभाचंद्र, श्री अमृतचंद्र आदि ग्रंथकारों ने उपदेश विषयक ग्रंथों की रचना की है।
अर्वाचीन ग्रंथकारों ने उपदेश विषयक ग्रंथों की रचना की है।
श्वेतांबर परंपरा
१. श्री बुद्धिसागरजी म.
१. महावीरगीता
३. कृष्णगीता
५. प्रजासमाजकर्तव्यम्
७. सुदर्शनाप्रबोधः
९. ज्ञानदीपिका
११. दयाग्रंथः
२. श्री लावण्यसूरिजी म.
श्री न्यायविजयजी म.
१. आत्महितोपदेशः
३. जीवनहितम्
५. जीवनभूमिः
७. उपदेशसारः
३.
२. प्रेमगीता
४. संघकर्तव्यम्
६. चेतकप्रबोधः
८. श्रेणिकसुबोधः
१०. शोकविनाशकग्रंथः
१२. जीवनप्रबोधः
देवगुर्वष्टकम्
२. जीवनपाठोपनिषद्
४. जीवनामृतम्
६. कल्याणमार्गमीमांसा
८. कल्याणभावना
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________________
९. दीक्षाधिकारद्वात्रिंशिका
११. आश्वासनम्
४. श्री लब्धिसूरिजी म.
५. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म.
६. श्री दर्शनसूरिजी म.
१. पर्युषणकल्पलता
७. श्री रामचंद्रसूरिजी म.
१. जीवनसाफल्यदर्शनम् (अनुवाद) २. सुखं धर्मात् (अनुवाद)
३. शुभाभिलाषा (अनुवाद)
८. श्री जयंतसेनसूरिजी म.
१. महावीर उक्तवान्
९. श्री नयवर्धनसूरिजी म. १०. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म. १. शमोपनिषद्
११. अमृत पटेल
१. श्री सुधर्मसागरजी म.
२. श्री जवाहरलाल शास्त्री
१. श्री पुष्करमुनि
१. अहिंसाष्टकम्
३. जपपंचकम्
५. महावीरषट्कम्
७. श्रावकधर्माष्टकम्
९. भारतवर्षपंचकम्
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ४९
१०. विद्यार्थीजीवनरश्मिः
स.भा.आ.जै.रा
वैराग्यरसमंजरी
आराधनाशतकम्
२. पर्युषणकल्पप्रभा
२. त्याग - निधयः
साध्वाचारसमुच्चयः
२. देशनोपनिषद्
सूक्ति: कलापूर्णगुरोः शिवाय
दिगंबर परंपरा
षट्कर्मोपदेशमाला
जिनोपदेशशतकम्
स्थानकवासी परंपरा
२. सत्यपंचकम्
४. ब्रह्मचर्यपंचकम्
६. गुरुदेवस्मृत्यष्टकम्
८. मौनव्रतपंचकम्
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________________
तेरापंथी परंपरा १. श्री चंदनमलजी म. -- णीईधम्मसूत्तीओ (प्राकृत)
(अर्वाचीन ग्रंथकारों ने कुल मिलाकर ४८ के आस-पास उपदेशग्रंथ लिखे हैं। हिंदी-गुजराती-अंग्रेजी आदि भाषा में उपदेशसाहित्यलिखा गयाहैवह तो बेहिसाब है।)
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________________
१४. कथा साहित्य
ऐतिहासिक और काल्पनिक कथा के द्वारा विशेष प्रेरणा कथाग्रंथ देते हैं।
श्वेतांबर परंपरा में श्री संघदासजी म., श्री हरिभद्रसूरिजी म., श्री उद्योतनसूरिजी म., श्री धनेश्वरसूरिजी म., श्रीसिद्धर्षि, श्री नेमिचंद्रसूरिजी म., श्री देवभद्रसूरिजी म. आदि ग्रंथकारों ने कथा साहित्य की रचना की है।
दिगंबर परंपरा में श्री हरिसेन, श्री पुष्पदंत आदि अनेक ग्रंथकारों ने कथा साहित्य की रचना की है।
अर्वाचीन ग्रंथकारों कथा साहित्य की रचना की है
श्वेतांबर परंपरा
१. श्री मुक्तिविमलजी म.
पोषदशमीमाहात्म्यकथा
२. श्री अजितसागरसूरिजी म. भीमसेननृपचरित्रम्
३. श्री तिलकविजयजी म.
मानतुंगमानवतीचरितम्
४. श्री जिनजयसागरसूरिजी म. जिनकृपाचंद्रसूरीश्वरचरितम्
५. श्री लब्धिसूरिजी म.
१. मेरुत्रयोदशी कथा
६. श्री कस्तूरसूरिजी म.
१. उसहणाहचरियं (प्राकृत)
३. पाई अविन्नाणकहा (प्राकृत)
७. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. १. रूपसेनचरित्रम्
२. शुकराज - कथा
२. सिरिचंदरायचरियं (प्राकृत)
२. रणसिंहचरित्रम्
४. वीरबलविनोदद्वात्रिंशिका
३. श्रीपाल चरित्रम्
८. श्री भुवनचंद्रजी म.
९. श्री राजरत्नसूरिजी म. १०. श्री कल्याणकीर्तिविजयजी म.
सामरविहंगम: (अनुवाद)
कथाकल्पवल्ली
हेमचंद्राचार्यः
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५२ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
११. श्री कीर्तित्रयी हास्यमेव विजयते १२. श्री हेमचंद्रसूरिजी म. --समतासागरचरितम् . १३. श्री प्रशमनिधिश्रीजी म.......
१. महोदयचरितम् (अनुवाद) २. हेमभूषणचरितम् (अनुवाद) -
दिगंबर परंपरा १. श्री कुंथुसागरजी म. शांतिसागरचरित्रम् २. भुजबली शास्त्री भुजबलीचरितम्
स्थानकवासी परंपरा ...... .. १. श्री घासीलालजी म... लक्ष्मीधरचरित्रम् ....
तेरापंथी परंपरा १. श्री तुलसी जी म. कथाकोषः २. श्री महाप्रज्ञजी म. १. कथाव्यूहः
२. रत्नपालचरितम् । ३. श्री पुष्पराजजी म. कथानिकुंज ४. श्री बुद्धमलजी म. १. कथापेटकम् २. अत्तकहा (प्राकृत) ५. श्री चंदनमलजी म..
१. रयणवालकहा (प्राकृत) २. जयचरिअं (प्राकृत) ६. श्री विमलकुमारजी म. १. ललियंगचरिअं (प्राकृत) २.वंकचूलचरिअं (प्राकृत) ३. देवदत्ताचरियं (प्राकृत) ४. सुबाहुचरिअं (प्राकृत) ५. मियापुत्तं (प्राकृत) ६. पएसिचरियं (प्राकृत) ७. श्री कन्हैयालालजी म. वंकचूलचरितम् ८. श्री मीठालालजी म.. कथासंग्रहः
अर्वाचीन ग्रंथकारों ने ३९ के आस-पास कथाग्रंथ लिखे हैं। हिंदी-गुजरातीअंग्रेजी भाषा में अगणित कथाग्रंथ हैं।
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१६. उपसंहार
अर्वाचीन ग्रंथकारों के समक्ष कुछ और भी साहित्य प्रणाली है जो प्राचीन ग्रंथकारों के समक्ष नहीं थी
१.महानिबंध
२. प्रस्तावना
३. मुखपत्र
४. प्रासंगिक १. निबंध
किसी एक विषय के अनेक आयाम का गहन अभ्यास करने के बाद निबंध लिखा जाता है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने कुछ निबंध भी लिखे हैं। निबंध को प्रमाण-पत्र मिलने के बाद महानिबंध कहा जाता है। १. दरबारीलाल कोठिया
१. जैनप्रमाणमीमांसाया:स्वरूपम् २. आत्मा अस्ति न वा । ३. जैनदर्शने करुणाया:स्वरूपम् २. दयाचंद्र साहित्याचार्य विश्वतत्त्वप्रकाशकः स्याद्वादः ३. नेमिचंद्र ज्योतिषाचार्य संस्कृतगीतिकाव्यानुचिंतनम् ४. श्री जिनमणिसागरसूरि साध्वीव्याख्याननिर्णयः ५. बुद्धिमनिगणि
१. कल्याणकपरामर्शः २. पर्युषणपरामर्शः उपरोक्त निबंधों के अतिरिक्त और भी निबंध होंगे परन्तु हमारी जानकारी में उपर्युक्त नाम ही हैं। २. प्रस्तावना प्राचीन ग्रंथकारों ने हस्तलेखन किया। हस्तप्रत में प्रथम पत्र से ही ग्रंथ का प्रारंभ हो जाता था, परंतु आज मुद्रण युग है। मुद्रित पुस्तक में प्रस्तावना, अनुक्रमणिका,
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५४ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
परिशिष्ट का विशेष महत्त्व होता है। प्रस्तावना में ग्रंथ और ग्रंथकार का ऐतिहासिक परिचय दिया जाता है। संभवतः श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा के आचार्य श्री आनन्दसागरसूरिजी ने संस्कृत प्रस्तावना लेखन को महत्त्व दिया। आज अनेकानेक ग्रंथों के प्रारंभ में समृद्ध और विषयसम्बद्ध संस्कृत प्रस्तावनाएँ हम पढ़ सकते हैं। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्रस्तावना लेखन का पर्याप्त विकास किया है। अर्वाचीन गद्यकला का अभ्यास करने के लिए प्रत्येक प्रस्तावनाओं का परिशीलन आवश्यक है। ३. मुखपत्र ____ मुद्रणयुग ने वर्तमानपत्र और मुखपत्र की नवीन विभावना दी। विविध विश्वविद्यालय
और संस्थानों के द्वारा- विश्वसंस्कृतम्, संभाषण संदेश, सागरिका जैसे संपूर्ण आधुनिक शैली के मुखपत्र प्रकाशित होते हैं। अर्वाचीन जैन ग्रंथकारों में कीर्तित्रयी एक ऐसा नाम (उपनाम) है जिसके द्वारा 'नंदनवनकल्पतरु' नामक मुखपत्र संपादित होता है। इस मुखपत्र में काव्य, नाट्य, निबंध आदि के अनेक लेखकों के नाम मिलते हैं। कृतियों का उच्च स्तर 'नंदनवनकल्पतरु की विशेषता है। अन्य मुखपत्रों में अर्हम सुंदरम् आदि के नाम हैं। अर्वाचीन संस्कृत रचनाओं एवं लेखों का विशाल संपुट, ये मुखपत्र हमें देते हैं। ४. प्रासंगिक
स्मृतिग्रंथ भी मुद्रण युग की ही विभावना है। भगवान्, मंदिर, गुरु या व्यक्ति विशेष के लिए अनेक लेखों का संचय होता है स्मृति ग्रंथ में। लेखों के संग्रह में कुछ-कुछ लेख संस्कृत-प्राकृत में लिखे जाते हैं जो गद्य या पद्य में होते हैं। स्तुति, स्तवना, अभिनंदन आदि विषयक रचनाओं का विशिष्ट संकलन स्मृति ग्रंथों में होता है।
उपर्युक्त चारों विधाओं की अनेकानेक रचनाएँ अर्वाचीन लेखकों ने की है। प्रत्येक विधा की रचनाओं का स्वतंत्र अभ्यास होना चाहिए।
हमने जो यह सूची बनायी है उसे हम पूर्ण नहीं मानते हैं। हमारी दो मर्यादा हैएक, हम प्रत्येक ग्रंथों को देख नहीं पाए हैं। अतः ग्रंथ के विषय का पूर्ण अभ्यास हम कर नहीं पाए। दो, हम प्रत्येक ग्रंथकारों से व्यक्तिगत संपर्क नहीं कर सके हैं. अतः कुछ नाम न हो यह भी हो सकता है, और कुछ नाम में अंतर हो यह भी हो सकता है। हमारी पाठकों से विनंती है कि ग्रंथ और ग्रंथकार के विषय में कोई अव्यवस्था दिखे तो हमें क्षमा करें और सूचना दें। हम सुधारने की कोशिश करेंगे।
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संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ५५
इस निबंध से आधुनिक जैन संस्कृत, प्राकृत ग्रंथकारों का नाम परिचय जरूर मिलेगा। इस निबंध से जो निष्कर्ष निकलता है वह इस प्रकार हैग्रंथ प्रकार
संख्या १. आगम विषयक ग्रंथ २. प्राचीन प्रकरणकी टीकाएँ। ३.नूतन प्रकरण रचनाएँ ४. कर्म विषयक रचनाएँ ५. व्याकरण ग्रंथ ६. कोश ७. दार्शनिक ग्रंथ ८. अलंकार ग्रंथ ९. छंदःग्रंथ १०. प्राचीनकाव्य टीका ११. महाकाव्य १२. खंडकाव्य १३. गद्यकाव्य १४. अध्यात्मग्रंथ १५. उपदेशग्रंथ १६. कथाग्रंथ
१७. निबंध
कुलग्रंथ
*
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आधुनिक संस्कृत जैन ग्रंथकार नाम सूची
परंपरा
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
नाम
१. अजितसागरसूरि
२. अभयशेखरसूरि
३. अमृत पटेल
४. अमृत सलोत
५. अमृतसूरि
६. अशोक श्री
७. आनंदसागरसूरि
८. उदयचंद जैन
९. उदयसूर
१०. उदयवल्लभविजय
११. कनक श्री
१२. कन्हैयालालजी
कमलश्री
१३.
१४. कल्याणकीर्तिविजय
१५. कल्याणबोधिसूरि
१६. कस्तूरसूरि
१७. कानमलजी
१८. कीर्तित्रयी
१९. कीर्तियशसूरि
२०. कुलचंद्रसूरि
"
"
"
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तेरापंथी
श्वेतांबरमूर्तिपूजक
दिगंबर
"
"
तेरापंथी
"
"
श्वेतांबरमूर्तिपूजक
श्वेतांबरमूर्तिपूजक
"
तेरापंथी श्वेतांबरमूर्तिपूजक
"
ܙܙ
ग्रंथ संख्या
६
६७
४
१
३१
३
१
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________________
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ५७
: परंपरा
ग्रंथ संख्या
.
तेरापंथी दिगंबर स्थानकवासी श्वेतांबरमूर्तिपूजक
2 ..
२१. कुसुमप्रज्ञाजी ... २२. कुंथुसागरजी २३. कृष्णदत्त शर्मा २४. गिरीश शाह २५. गुणरत्नसूरि २६. गुणहंसविजयजी म. २७. गुलाबचंद्रजी २८. गोविंदराय २९. घासीलालजी ३०. चिन्नास्वामी ३१. चंदनमलजी ३२. चंद्रगुप्तसूरि ३३. चंद्रसागरसूरि ३४. चंपालालजी ३५. चैनसुखदास ३६. चौथमलजी ३७. छत्रमलजी ३८. जगच्चंद्रसूरि ३९. जतनकुंवरजी ४०. जयघोषसूरि ४१. जयशेखरसूरि ४२. जयंतसेनसूरि ४३. जवाहरलाल शास्त्री
तेरापंथी दिगंबर स्थानकवासी श्वेतांबर मूर्तिपूजक तेरापंथी श्वेतांबर मूर्तिपूजक
mory ~
१
~
~
~
~
-
तेरापंथी दिगंबर तेरापंथी तेरापंथी श्वेतांबर मूर्तिपूजक तेरापंथी
४
-
-
-
-
दिगंबर
-
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________________
५८ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
नाम
परंपरा
ग्रंथ संख्या
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
दिगंबर श्वेतांबर मूर्तिपूजक दिगंबर तेरापंथी श्वेतांबर मूर्तिपूजक तेरापंथी स्थानकवासी दिगंबर
४४. जितेन्द्रसूरि ४५. जिनजयसागर ४६.जिनमणिसागर ४७. जिनेन्द्र वर्णी ४८. जिनेन्द्रसूरि ४९. ज्ञानसागर ५०. डुंगरमल ५१. तिलकविजय ५२. तुलसी ५३. दयाचंद्र ५४. दरबारीलाल पंडित ५५. दरबारीलाल कोठिया ५६. दर्शनसूरि ५७. दर्शनरत्नसूरि ५८. दुलीचंदजी ५९. देवेन्द्रमुनि ६०. धनराजमुनि (प्रथम) ६१. धनराजमुनि (द्वितीय) ६२. धर्मसूरि ६३. धर्मधुरंधरसूरि ६४. नगराज मुनि ६५. नत्थमलजी
तेरापंथी
स्थानकवासी तेरापंथी
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
७
तेरापंथी
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________________
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ५९
नाम
परंपरा
ग्रंथ संख्या
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
दिगंबर
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
६६. नयवर्धनसूरि ६७. नंदनसूरि ६८. नारायणाचार्य ६९. नित्यानंद शास्त्री ७०. नेमिचंद्र जैन ७१. नेमिचंद्र ज्योतिषाचार्य ७२. नेमिसूरि ७३. न्यायविजय ७४. पन्नालाल साहित्याचार्य ७५. पुष्करमुनि ७६. पुष्पराजजी ७७. पूर्णचंद्रविजय ७८. प्रणम्यसागर ७९. प्रतापविजय ८०. प्रशमरतिविजय ८१. प्रशमनिधिश्री ८२. प्रेमसूरि ८३. फुलकुमारीजी ८४. बालचंद्र शास्त्री ८५. बिहारीलाल शर्मा ८६. बुद्धमल ८७. बुद्धिमनि गणि
दिगंबर स्थानकवासी तेरापंथी श्वेतांबर मूर्तिपूजक दिगंबर श्वेतांबर मूर्तिपूजक
तेरापंथी दिगंबर
तेरापंथी
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________________
६० : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
नाम:
८८. बुद्धिसागरसूरि
८९. बी. एल. जैन
९०. भद्रंकरसूरि
९१. भुजबली शास्त्री
९२. भुवनचंद्रजी
९३. मधुकरजी
९४. मधुकर शास्त्री
९५. महाप्रज्ञजी
९६. महायशाश्री
९७. महेन्द्र कुमारजी
९८. मालूजी
९९. मानकुंवरजी
१००. मंजुलाजी
१०१. मित्रानंदसूरिजी
१०२. मिश्रीमलजी (प्रथम)
१०३. मिश्रीमलजी (द्वितीय)
१०४. मीठालाल मुनि
१०५. मुक्तिविजयजी
१०६. मुक्तिविमलजी
१०७. मुनिचंद्रसूरि
१०८. मूलचंद्र शास्त्री
१०९. मोक्षरतिविजय
परंपरा
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
दिगंबर
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
दिगंबर
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
तेरापंथी
स्थानकवासी
तेरापंथी
ܙܐ
तेरापंथी
x4
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श्वेतांबर मूर्तिपूजक
स्थानकवासी
"
तेरापंथी
"
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
दिगंबर
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
ग्रंथ संख्या
२४
४
२
१.
११
४
२
७
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________________
नाम
११०. मोहन कुमारजी
१११. मोहनलाल बांठिया
११२. मोहनलालजी
११३. मोहनलालजी शार्दूल
११४. यशोविजय (प्रथम)
११५. यशोविजय (द्वितीय)
११६. युगचंद्रसूरि
११७. रघुनंदन शर्मा
११८. रत्नचंद्रजी
११९. रत्नबोधिविजयजी
१२०. रम्यरेणु
१२१. राकेश कुमारजी
१२२. राजधर्मविजयजी
१२३. राजनारायण शर्मा
१२४. राजरत्नसूर
१२५. राजशेखरसूरि १२६. राजसुंदरविजय १२७. राजेन्द्रसूरि
१२८. रामचंद्रसूरि
१२९. लब्धिसूरि
१३०. लावण्यसूरि
१३१. वत्सराजमुनि
१३२. विद्यासागरजी
संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ६१
परंपरा
ग्रंथ संख्या
तेरापंथी
"
"
"
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
ܐܐ
"
तेरापंथी स्थानकवासी
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
ܙܙ
तेरापंथी
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
ܐܐ
ܐܙ
ܙܐ
14
24
"
14
"
""
"
तेरापंथी
दिगंबर
5
५
२
३
१०
१७
m
८
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________________
६२ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
नाम
१३३. विमल कुमारजी १३४. विचक्षणसूरि
१३५. विनयरक्षितविजयजी
१३६. वीरशेखरसूरि
१३७. वेलणकर
१३८. शिवानंद विजय
१३९. शीलचंद्रसूरि
१४०. शुभंकरसूरि
१४१. श्रीचंद्रजी
१४२. संघमित्राजी
१४३. सिद्धप्रज्ञाजी
१४४. सुखलालजी
१४५. सुधर्मसागर
१४६. सुपार्श्वमती
१४७. सुशीलसूरि
१४८. सौम्यज्योतिश्री
१४९. सोहनलालजी
. हरगोविंददास शेठ
१५०.
१५१. हस्तिमलजी
१५२. हितवर्धनविजय
१५३. हीरालाल हंसराज
१५४. हेमचंद्रसूरि (प्रथम)
१५५. हेमचंद्रसूरि (द्वितीय)
परंपरा
तेरापंथी
"
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
"
दिगंबर
ܐܙ
"
ܙܙ
तेरापंथी
"
ܐܙ
ܐܐ
दिगंबर
ܙܙ
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
ܙܙ
तेरापंथी
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
स्थानकवासी
श्वेतांबर मूर्तिपूजक
77
"
ܐܐ
ग्रंथ संख्या
६
१
६
४
५
२
१
२
७
१
२
१
४
१
१
१
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________________
१७. आधार ग्रंथ
१. संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास
लेखक- जगन्नाथ पाठक, प्रकाशक- उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ। २. संस्कृत काव्य विकास में बीसवीं शताब्दी के जैन मनीषियों का योगदान
लेखक- नरेन्द्र सिंह राजपूत, सांगानेर। ३. स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास
लेखक- डॉ. सागरमल जैन एवं डॉ. विजय कुमार प्रकाशक- पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी। ४. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
प्रकाशक- पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी। ५. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास,
लेखक- मोहनलाल दलीचंद देसाई प्रकाशक- ओमकारसूरि ज्ञानमंदिर, सूरत ६. जैन ग्रंथ और ग्रंथकार
लेखक- फतेहचंद बेलानी प्रकाशक- जैन संस्कृति संशोधन मंडल, बनारस। ७. संस्कृत का अर्वाचीन समीक्षात्मक काव्यशास्त्र
लेखक- अभिराज राजेन्द्र मिश्र प्रकाशक- विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी
Page #66
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________________
६४ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार
८. जैन साहित्य सूचीपत्र -
संपादक- रत्नत्रयविजयजी म. . . प्रकाशक- रंजनविजयजी जैन पुस्तकालय
मालवाड़ा, जि. जालोर राजस्थान । ९. तेरापंथ का संस्कृत और प्राकृत साहित्य : उद्भव और विकास
लेखक- गुलाबचन्द्रजी 'निर्मोही' .. । प्रकाशक- जैन विश्वभारती, लाडनूं
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Page #68
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________________ ग्रन्थ परिचय संस्कृत भाषा में नवरचना करना एक विरल प्रवृत्ति होती है। जैनधर्म की चार प्रमुख परम्परा में कुल मिलाकर 700 के आसपास संस्कृत ग्रंथों की रचना हुई है। इन ग्रंथों के विषय में जानकारी पाने के लिये यह किताब उपयोगी है। देवर्धि जैन अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थाः शिशुपालवधम् (काव्य)। माघ कृत। वल्लभ देव कृत 'संदेह विषौषधि' तथा मल्लिनाथ कृत 'सर्वकषा' टीका द्वय (का. 69) काव्यमीमांसा (काव्य)। राजशेखर कृत। नारायण शास्त्री खिस्ते कृत 'काव्यमीमांसा चन्द्रिका' टीका-हिन्दी टीका-आचार्य शेषराज शर्मा (का. 86) काशिका (व्याकरण)। वामन और जयादित्य कृत पाणिनीय व्याकरण की टीका। नारायण ___मिश्र कृत हिन्दी टीका एवं भूमिका, नोट्स। सम्पूर्ण (1-2 भाग) (का. 37) हरविजयम् (काव्य)। राजानक रत्नाकर विरचित। राजानक अलक कृत टीका सहित। पं. दुर्गाप्रसाद एवं काशीनाथ पाण्डुरङ्ग परव सम्पादित (का. 223) परिभाषेन्दुशेखरः (व्याकरण)। नागेशभट्ट कृत। बेनीमाधव शास्त्री कृत ___ 'शास्त्रर्थकला' टीका। राजनारायण शास्त्री कृत नोट्स आदि (का. 137) नलचम्पूः अथवा दमयन्तीकथा (चम्पू)। त्रिविक्रम भट्ट कृत। चण्डपाल कृत विषमपद' टीका-कैलाशपति त्रिपाठी कृत हिन्दी टीका (का. 98) मृच्छकटिकम् ।महाकविशूद्रक कृत। (नाटक) गङ्गा-संस्कृत हिन्दी व्याख्या युक्त - डॉ. गङ्गासागर राय। (चौ.सं.भ. 14) हिन्दी दशरूपक (नाट्य)। धनञ्जयकृत। धनिककृत दशरूपावलोक संस्कृत टीका तथा प्रदीप हिन्दी व्याख्या डॉ० केशवराव मुसलगाँवकर।। (चौ.सं.भ. 27) ANASI चौखम्भा प्रकाशन CHAUKHAMBHA PRAKASHAN पोस्ट बाक्स नं. 1150 के. 37/116, गोपाल मन्दिर लेन, गोलघर (समीप मैदागिन) वाराणसी - 221001 (भारत) टेलीफोन : 0542-2335929, 6452172 E-mail : c_prakashan@yahoo.co.in Chaukhambha Prakashan Registration Na A-77539