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________________ संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार : ९ महावीरस्वामीजी म. के शिष्य श्री गौतमस्वामीजी म. ने पाक्षिकसूत्र, जगचिंतामणिसूत्र की रचना की थी। भगवान् श्रीमहावीरस्वामीजी म. के शिष्य श्री धर्मदासगणि जी म. ने उपदेशमाला की रचना की थी। तब से लेकर शुरू हुई आगमेतर ग्रंथ रचना की परम्परा आज तक जीवंत है। इसलिए आगमेतर ग्रंथों की संख्या अत्यंत विशाल है। ग्रंथकारों के नाम भी विशाल संख्या में है। ४. आगमेतर ग्रंथों के विवरण ग्रंथ आगमेतर ग्रंथ प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषाओं में लिखे गए हैं। आगमेतर ग्रंथों के विवरण ग्रंथ दो स्वरूप में मिलते हैं- स्वोपज्ञ विवरण और अन्यकृत विवरण । अधिकांश विवरण ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। जैन ग्रंथों को विषय की दृष्टि से तेरह विभागों में बाँट कर देखने से हमें ग्रंथों के विविध आयामों का बोध मिलता है। १. आगम संबंधी साहित्य ३. कर्म साहित्य ५. कोश साहित्य ७. अलंकार साहित्य ९. काव्य साहित्य ११. उपदेश साहित्य २. प्रकरण साहित्य ४. व्याकरण साहित्य ६. दार्शनिक साहित्य ८. छंद साहित्य १०. अध्यात्म-योग साहित्य १२. कथा साहित्य १३. प्रकीर्ण साहित्य | इस विषय विभाजन को आदर्श मानकर हम जैन ग्रंथकारों की अर्वाचीन श्रृंखला का परिचय पाने की कोशिश करेंगे। पिछले सौ - डेढ़ सौ साल में जैन ग्रंथकारों ने जो भी संस्कृत-प्राकृत रचना की है उनका नाम निर्देश हम करेंगे। एक-एक ग्रंथ का परिचय लिखने का प्रयास किया जाए तो यह निबंध महानिबंध बन सकता है। हम वह कार्य आने वाले समय में अवश्य करेंगे। श्वेतांबर मूर्तिपूजक, दिगंबर, स्थानकवासी और तेरापंथी - ये चार परंपराएँ जैन धर्म की ग्रंथ रचना का आधार स्रोत है। हमने प्रत्येक परम्परा के नाम पाने की कोशिश की है। कोई ग्रंथ या ग्रंथकार का नाम अगर छूट गया हो तो हमें क्षमा करेंगे।
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
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