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२. आगम संबंधी साहित्य
__आगम साहित्य की नवरचना हो नहीं सकती। आगम साहित्य की रचना जिस काल में हुई थी उस काल में ग्रंथ कंठस्थ रखने की परंपरा थी। समय-समय के अंतराल में आगम साहित्य का परिष्करण होता गया। __ श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा के अनुसार आगमग्रंथों का विषय परिवर्तन कभी नहीं हुआ है, लेकिन आगमग्रंथों के सूत्रों के पाठ का निर्धारण किया गया है। वीरनिर्वाण संवत् १६० के आस-पास आचार्यश्री भद्रबाहुसूरिजी म. के सानिध्य में आगमग्रंथों के सूत्रों की वाचना रखी गई थी। कंठस्थ आगमग्रंथों की शाब्दिक रचना को सर्वांगीण शुद्ध बनाने का यह प्रथम प्रयास था। भगवान् महावीर के निर्वाण होने के बाद में एक बार बारह वर्ष का दुष्काल आने से आगमग्रंथों का अभ्यासु श्रमण वर्ग भारत के विभिन्न राज्यों में चला गया था। दुष्काल समाप्त होने पर पाटलिपुत्र में सभी श्रमणों का संमेलन हुआ। कंठस्थ आगमग्रंथों में से कुछ ग्रंथों का पाठ टूट चुका है, ऐसा लगने से श्रीभद्रबाहुसूरिजी म. ने सभी आगमग्रंथों के मूल पाठ का निर्धारण किया। आपको सभी आगमग्रंथ कंठस्थ थे। आपके द्वारा निर्धारित सूत्रपाठ सर्वमान्य हुआ।
वीरनिर्वाण संवत् ८२७ से ८४० के मध्यांतर में पुनः एक बार बारह वर्ष का दुष्काल आने से श्रमण वर्ग विभिन्न राज्यों में बिखर गया। दुष्काल समाप्त होने के बाद श्रमण वर्ग के दो संमेलन हुए। एक संमेलन मथुरा में हुआ। मथुरा के संमेलन में अध्यक्ष स्थान श्री स्कंदिलाचार्य ने लिया था। दूसरा संमेलन वल्लभी में हुआ। वल्लभी के संमेलन का अध्यक्ष स्थान श्री नागार्जुनसूरिजी म. ने लिया था। दोनों संमेलन समान समय में हुए लेकिन एक-दूसरे से कोई संपर्क न होने से दोनों की वाचना अलग हुई।
मथुरा की वाचना में श्रमण वर्ग के पास जो भी कंठस्थ आगम साहित्य था उसका पाठ निर्धारण हुआ। कुछ आगम साहित्य नष्ट हो चुका है यह बात भी मथुरा की वाचना में स्पष्ट हुई। मथुरा में आगमग्रंथों के जो पाठ निश्चित हुए उन्हे श्रीस्कंदिलाचार्य के मार्गदर्शनानुसार श्रमण वर्ग ने स्वीकार लिए। वल्लभी में जो वाचना हुई उसमें भी वहाँ उपस्थित श्रमण वर्ग को जो आगम साहित्य कंठस्थ था उसका पाठ-निर्धारण