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________________ ७. कोश साहित्य शब्दों के विविध अर्थ का बोध कोश के द्वारा होता है। प्रत्येक भाषा का स्वतंत्र शब्दकोश होता है। शब्द और अर्थ का संबंध व्याकरण से है। कोश की रचना जिसने की उसके संप्रदाय का नाम कोश के साथ जुड़ जाता है। जैन ग्रंथकारों ने कोश की रचना की है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में- धनपाल, धनंजय, श्री हेमचंद्रसूरिजी म., श्री महेन्द्रसूरिजी म., श्री वल्लभगणिजी म., श्री जिनदेवमुनि, श्री सहजकीर्तिजी म., श्री ज्ञानविमलसूरिजी म., श्री हर्षकीर्तिसूरिजी म., श्री साधुसुन्दरसूरिजी म. श्रीसुधाकलशजी म., श्री अमरचंद्रसूरिजी म. आदि अनेक कोशकार हुए हैं। दिगंबर परंपरा में-श्रीअमरकीर्तिजी, श्रीधरसेनमुनि, श्रीअसग आदि कोशकार हुए हैं। प्राचीन कोश की रचना श्लोकबद्ध होती थी। अकारादिक्रम की योजना का प्रचलन प्राचीनकोशग्रंथों में नहीं है। आधुनिक कोश में श्लोकबद्ध रचना नही है और अकारादिक्रम की वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग है। आधुनिक कोश का संपादन अतिशय श्रमसाध्य होता है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने नूतन कोशग्रंथों का संपादन किया है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्री राजेन्द्रसूरिजी म. १. अभिधानराजेन्द्रकोशः २. पाईयसबंबुही २. श्री आनंदसागरसूरिजी म. १. अल्पपरिचितसैद्धांतिककोशः २. लघुतमनामकोशः ३. श्री मुक्तिविजयजी म. शब्दरत्नमहोदधिः ४. हरगोविंददास शेठ पाईअसद्दमहण्णवो ५. श्री हेमचंद्रसूरिजी म. अभिधानचिंतामणिनाममाला
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
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