SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. भूमिका __ जैन ग्रंथों की रचना आत्मसाधना के लिए होती रही है। ग्रंथकार स्वाध्याय करने का उद्देश्य मन में रखकर ग्रंथ लिखते थे। अपनी ज्ञान गरिमा का प्रदर्शन करने का विचार जैन ग्रंथकारों के मन में कभी नहीं था। ग्रंथ का अभ्यास जो भी करेगा उसे आत्मा का तात्त्विक चिंतन करने में मार्गदर्शन मिले यही भाव ग्रंथकारों के हृदय में बना रहता था। श्रमण भगवान् श्री महावीर परमात्मा से लेकर वर्तमान शताब्दी के अंतिम दशक तक ग्रन्थ रचना होती रही है। ग्रंथ रचना चार प्रकार से हुई है १. आगम ग्रंथों की रचना। २. आगम ग्रंथों पर विवरण ग्रंथों की रचना। ३. आगमेतर ग्रंथों की रचना। ४. आगमेतर ग्रंथों पर विवरण ग्रंथों की रचना। उपर्युक्त विभाजन का अपना-अपना महत्त्व है। जो भी ग्रंथ रचना की गई उसे विषय की दृष्टि से चार विभागों में बाँट कर चार अनुयोग बताए गए- द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणानुयोग और धर्मकथानुयोग। द्रव्यानुयोग के ग्रंथों में विश्वव्यवस्था संबंधी तात्त्विक और तार्किक निरूपण होता है। गणितानुयोग के ग्रंथों में ज्योतिष, भूगोल आदि विषयक गणित संबंधी निरूपण होता है। चरणकरणानुयोग के ग्रंथों में जैन धर्म संबंधी आचार पद्धति का निरूपण होता है। धर्मकथानुयोग के ग्रंथों में जैन धर्म विषयक कथाओं का संग्रह होता है। जो भी ग्रंथ रचना होती है उसकी विषय परीक्षा अनुयोग के द्वारा होती है। आगम ग्रंथ, आगम ग्रंथ के विवरण, आगमेतर ग्रंथ, आगमेतर ग्रंथ के विवरण- चार अनुयोग में से किसी एक में अवश्य समाविष्ट हो जाते हैं। १. आगम ग्रंथों की रचना तीर्थंकर भगवान् श्री महावीर परमात्मा के समय में गणधर भगवंतों के द्वारा मूल बारह आगमों की रचना हुई। बारह आगमों को द्वादशांगी भी कहते हैं। आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र, स्थानांगसूत्र, समवायांगसूत्र, भगवतीसूत्र, ज्ञाताधर्मकथासूत्र, उपासकदशासूत्र, अंतकृद्दशासूत्र,अनुत्तरौपपातिकसूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्र, विपाकसूत्र
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy