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५. कर्म साहित्य
कर्मसिद्धांत जैन धर्म का विशिष्ट तत्त्वज्ञान है। कर्म विषयक विश्लेषण और विवेचन आगमग्रंथों में उपलब्ध है। कर्मविषयक निरूपण के लिए अनेक आगमेतर ग्रंथों की रचना हुई है।
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा अनुसार - श्री शिवशर्मसूरिजी म., श्रीचंद्रर्षि महत्तर, श्री जिनवल्लभसूरिजी म., श्री देवेन्द्रसूरिजी म. आदि अनेक ग्रंथकारों ने कर्म साहित्य की नूतन रचना की थी।
दिगंबर परंपरा अनुसार श्री नेमिचंद्रजी, श्री चामुंडरायजी, श्री माधवचंद्रजी आदि अनेक ग्रंथकारों ने कर्म साहित्य के नूतन ग्रंथों का सर्जन किया है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने कर्म विषयक नूतन ग्रंथों की रचना की है
श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा प्राचीन ग्रंथों पर टीकाग्रंथ १. श्री नंदनसूरिजी म.
१. चतुर्थ कर्मग्रंथ टीका २. द्वितीय कर्मग्रंथ टीका नूतनग्रंथ रचना १. श्री प्रेमसूरिजी म. १. मार्गणाद्वारविवरणम् २. कर्मसिद्धिः ३. संक्रमकरणम् २. श्री नंदनसूरिजी म. समुद्घाततत्त्वम् ३. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. कर्मप्रवादमीमांसा ४. श्री वीरशेखरसूरिजी म. १. बंधविहाणं
२. बंधविहाणउत्तरपयडिस्थानप्ररूपणा-१ ३. बंधविहाणउत्तरपयडिस्थानप्ररूपणा-२