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________________ ६. व्याकरण साहित्य प्राकृत और संस्कृत भाषा के सांगोपांग अध्ययन के लिए व्याकरण ग्रंथों की रचना प्राचीन ग्रंथकारों ने की है। श्वेतांबर परंपरा में- श्री बुद्धिसागरसूरिजी म., श्री हेमचंद्रसूरिजी म., श्री मलयगिरिसूरिजी म., श्री मेघविजयजी म., श्री विनयविजयजी म. आदि ग्रंथकारों ने अपने-अपने समय में नूतन व्याकरण ग्रंथों की रचना की थी। दिगंबर परम्परा में - त्रिभुवन, श्री देवनंदिजी, श्री शाकटायनजी आदि ग्रंथकारों ने नूतन व्याकरण ग्रंथों की रचना की थी। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषा के व्याकरण की रचना की है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा प्राचीन व्याकरणों पर टीका १. श्रीचंद्रसागरसूरिजी म. सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका २. श्री लावण्यसूरिजी म. १. सिद्धहेमशब्दानुशासनन्यासअनुपूर्तिः २. न्यायार्थसिंधुतरंगवृत्तिः ३. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. ... १. सिद्धहेमशब्दानुशासनपद्य-टीका २. प्राकृतव्याकरणपद्य-टीका ३. सिद्धहेमशब्दानुशासनप्रशस्तिविवरणम् ४. श्री दर्शनरत्नसूरिजी म. सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका श्री विमलरत्नसूरिजी म. नूतन व्याकरण ग्रंथ की रचना १. श्री नेमिसूरिजी म. १. बृहद् हेमप्रभा २. लघु हेमप्रभा
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
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