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________________ १२ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार इतने आगमग्रंथों पर टीकाएँ लिखीं। विक्रम की दसवीं शताब्दी में श्री शीलांकाचार्य ने आचारांग और सूत्रकृतांग पर टीकाएँ लिखी। विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में श्री शांतिसूरिजी म. ने उत्तराध्ययनसूत्र के ऊपर टीका लिखी। विक्रम की बारहवीं शताब्दी में श्री अभयदेवसूरिजी म. ने ज्ञाताधर्मकथासूत्र, स्थानांगसूत्र, समवायांगसूत्र, भगवतीसूत्र, उपासकदशासूत्र, अन्तकृद्दशासूत्र, अनुत्तरौपपातिकसूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्र, विपाकसूत्र, औपपातिकसूत्र और प्रज्ञापनासूत्र के ऊपर टीकाएँ लिखीं। श्रीहेमचन्द्रसूरिजी म. (मलधारी) ने विशेषावश्यकसूत्र, आवश्यकसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र और नंदीसूत्र पर टीकाएँ लिखीं। विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में श्री मलयगिरिसूरिजी म. ने आवश्यकसूत्र, ओघनियुक्ति, चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, जीवाजीवाभिगमसूत्र, ज्योतिष्करंडक, नंदीसूत्र, पिंडनियुक्ति, प्रज्ञापनासूत्र, बृहत्कल्पपीठिका, भगवतीसूत्र का द्वितीय शतक, राजप्रश्नीयसूत्र और व्यवहारसूत्र पर टीकाएँ लिखीं। अन्य प्राचीन टीकाकारों में श्री द्रोणाचार्य, श्री नमिसाधु, श्री वीरगणिजी म., श्रीचन्द्रसूरिजी म., श्री तिलकाचार्य, श्री क्षेमकीर्तिसूरिजी म., श्री ज्ञानसागरसूरिजी म., श्रीकुलमंडनजी म. आदि नाम मुख्य हैं। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने आगमग्रंथों की टीकाएँ लिखी हैं श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. श्रीमुक्तिविमलजी म. कल्पसूत्र टीका २. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. भगवतीसूत्र प्रशस्ति टीका ३. श्री कुलचन्द्रसूरिजी म. १. आचारांगसूत्र टीका ___२. सूत्रकृतांग टीका ३. कल्पसूत्र टीका ४. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म. १. ऋषिभाषित टीका २. अंगचूलिका टीका ३. वर्गचूलिका टीका ४. सूत्रकृतांग द्वितीय संग्रहणी टीका
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
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