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८. दार्शनिक साहित्य
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धर्मतत्त्व का सूक्ष्म चिंतन करना यह दर्शन है। जैन धर्म के अनुसार स्याद्वाद, सातनय, प्रमाण आदि विषयक तर्कबद्ध चर्चा-दार्शनिक साहित्य में होती है।
श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा अनुसार श्री सिद्धसेन दिवाकरजी म., श्री मल्लवादीसूरिजी म., श्री सिंहगणिजी म., श्री हरिभद्रसूरिजी म., श्रीसिद्धर्षिगणिजी म., श्री अभयदेवसूरिजी म., श्री चंद्रप्रभसूरिजी म., श्री शांतिसूरिजी म., श्री मुनिचंद्रसूरिजी म., श्री वादिदेवसूरिजी म., श्री मलयगिरिसूरिजी म., श्री हेमचंद्रसूरिजी म., श्री रामचंद्रसूरिजीम., श्री रत्नप्रभसूरिजी म., श्री यशोविजयजी म., आदि अनेक ग्रंथकारों ने दार्शनिक साहित्य का नवसर्जन किया।
दिगंबर परंपरा अनुसार श्रीसमंतभद्रजी, श्री अकलंकजी, श्री विद्यानंदजी, श्री माणिक्यनंदीजी, श्री अनंतवीर्यजी म., श्री कनकनंदिजी, श्री प्रभाचंद्रजी, श्री वादिराजजी, श्री वसुनंदिजी, श्री अनंतकीर्तिजी आदि के द्वारा दार्शनिक साहित्य का नवसर्जन हुआ है।
अर्वाचीन ग्रंथकारों ने दार्शनिक साहित्य का नवसर्जन किया है। प्राचीन दार्शनिक ग्रंथों पर टीका
श्वेतांबर परंपरा १. श्री नेमिसूरिजी म. १, सम्मतितर्कव्याख्यानम् २. न्यायालोक-टीका ३. जैनन्यायखंडनखाद्यविवरणम् ४. अनेकान्तव्यवस्था-टीका २. श्री लब्धिसूरिजी म. १. सम्मतितत्त्वसोपानम् २. द्वादशारनयचक्रविषमपदविवेचनम् ३. श्री लावण्यसूरिजी म. १. शास्त्रवार्तासमुच्चय-टीका २. अनेकांतव्यवस्था-टीका ३. जैनतर्कभाषा-टीका ४. नयरहस्य-टीका