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________________ ९. अलंकार साहित्य रस-अलंकार से समृद्ध रचना को काव्य कहते हैं। अलंकार साहित्य में काव्यतत्त्व का विवेचन होता है। __श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा में श्री हेमचंद्रसूरिजी म., वाग्भट्ट, श्री नरेन्द्रप्रभसूरिजी म., श्री जयमंगलसूरिजी म., मंडनमंत्री, श्री नमिसाधु आदि अनेक ग्रंथकारों ने अलंकारग्रंथों की रचना की है। दिगंबर परंपरा में श्री जिनसेन, पं. आशाधर आदि ग्रंथकारों ने अलंकार ग्रंथों की रचना की है। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने अलंकार साहित्य की रचना की है। श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा १. प्राचीन ग्रंथ पर टीका । १. श्री लावण्यसूरिजी म. काव्यानुशासनटीका २. नूतन ग्रंथ रचना १. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी म. १. काव्यविमर्शः २. साहित्यशिक्षामंजरी ३. साहित्यशिक्षामंजरी-टीका दिगंबर, स्थानकवासी और तेरापंथी परंपरा में संभवतः अलंकार साहित्य की नूतन रचना नहीं हुई है। (अर्वाचीन ग्रंथकारों के द्वारा विरचित अलंकार साहित्य के ग्रंथों की संख्या ४ के आस-पास है।)
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
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