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________________ ५४ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार परिशिष्ट का विशेष महत्त्व होता है। प्रस्तावना में ग्रंथ और ग्रंथकार का ऐतिहासिक परिचय दिया जाता है। संभवतः श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरा के आचार्य श्री आनन्दसागरसूरिजी ने संस्कृत प्रस्तावना लेखन को महत्त्व दिया। आज अनेकानेक ग्रंथों के प्रारंभ में समृद्ध और विषयसम्बद्ध संस्कृत प्रस्तावनाएँ हम पढ़ सकते हैं। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्रस्तावना लेखन का पर्याप्त विकास किया है। अर्वाचीन गद्यकला का अभ्यास करने के लिए प्रत्येक प्रस्तावनाओं का परिशीलन आवश्यक है। ३. मुखपत्र ____ मुद्रणयुग ने वर्तमानपत्र और मुखपत्र की नवीन विभावना दी। विविध विश्वविद्यालय और संस्थानों के द्वारा- विश्वसंस्कृतम्, संभाषण संदेश, सागरिका जैसे संपूर्ण आधुनिक शैली के मुखपत्र प्रकाशित होते हैं। अर्वाचीन जैन ग्रंथकारों में कीर्तित्रयी एक ऐसा नाम (उपनाम) है जिसके द्वारा 'नंदनवनकल्पतरु' नामक मुखपत्र संपादित होता है। इस मुखपत्र में काव्य, नाट्य, निबंध आदि के अनेक लेखकों के नाम मिलते हैं। कृतियों का उच्च स्तर 'नंदनवनकल्पतरु की विशेषता है। अन्य मुखपत्रों में अर्हम सुंदरम् आदि के नाम हैं। अर्वाचीन संस्कृत रचनाओं एवं लेखों का विशाल संपुट, ये मुखपत्र हमें देते हैं। ४. प्रासंगिक स्मृतिग्रंथ भी मुद्रण युग की ही विभावना है। भगवान्, मंदिर, गुरु या व्यक्ति विशेष के लिए अनेक लेखों का संचय होता है स्मृति ग्रंथ में। लेखों के संग्रह में कुछ-कुछ लेख संस्कृत-प्राकृत में लिखे जाते हैं जो गद्य या पद्य में होते हैं। स्तुति, स्तवना, अभिनंदन आदि विषयक रचनाओं का विशिष्ट संकलन स्मृति ग्रंथों में होता है। उपर्युक्त चारों विधाओं की अनेकानेक रचनाएँ अर्वाचीन लेखकों ने की है। प्रत्येक विधा की रचनाओं का स्वतंत्र अभ्यास होना चाहिए। हमने जो यह सूची बनायी है उसे हम पूर्ण नहीं मानते हैं। हमारी दो मर्यादा हैएक, हम प्रत्येक ग्रंथों को देख नहीं पाए हैं। अतः ग्रंथ के विषय का पूर्ण अभ्यास हम कर नहीं पाए। दो, हम प्रत्येक ग्रंथकारों से व्यक्तिगत संपर्क नहीं कर सके हैं. अतः कुछ नाम न हो यह भी हो सकता है, और कुछ नाम में अंतर हो यह भी हो सकता है। हमारी पाठकों से विनंती है कि ग्रंथ और ग्रंथकार के विषय में कोई अव्यवस्था दिखे तो हमें क्षमा करें और सूचना दें। हम सुधारने की कोशिश करेंगे।
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
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