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________________ प्रस्तावना पानाश्रिता . धन्यास्ते सुरभारतीषु रचनैर्यैरर्जितं सद्यशः धन्यास्ते भगवद्वचोऽनुसरणैः शास्त्राणि ग्रथ्नन्ति ये। येषां शक्तिसु शारदा विलसति श्री द्वादशांगी श्रिता तेषां नाम नमामि पुण्यचरितं प्रत्येकमत्यादरात् ।। ... मनुष्य चिंतन मन में करता है, चिंतन की अभिव्यक्ति के लिए वाणी का उपयोग करता है। साधारण वार्तालाप से ऊपर उठकर मनुष्य, धर्म-विद्या-कला के विषय पर वाणी प्रयोग करता है तब उसे असाधारण भाषा की आवश्यकता महसूस होने लगती है। वाणी प्रयोग भी जब वार्तालाप से एक कदम आगे बढ़कर लेखन की भूमिका तक पहुँचता है तब साधारण भाषा अपने आप छूट जाती है। ___ संस्कृत भाषा भारतवर्ष की एक असाधारण भाषा है। विश्व की पाँच मूल भाषाओं के नाम इस प्रकार हैं- १. आर्य (Aryan), २. द्राविड़ (Dravidian) ३. मुण्डा (Munda), ४. मन्-ख्मेर (Mon-khmer), (५) तिब्बत चीना (TibetoChinese)। भारत में आज मराठी, बंगला, ओड़िया, बिहारी, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, सिन्धी और काश्मीरी भाषाओं का प्रयोग होता है- जो मूलतः आर्य भाषा से उत्पन्न हुई हैं। भारत में और भारत के बाहर प्रयुज्यमान अन्य भाषाओं का संबंध, द्राविड़ आदि मूल भाषाओं से है। पाईअसद्दमहण्णवो ग्रंथ की प्रस्तावना में श्री हरगोविंददास शेठ ने लिखा है कि 'अंग्रेजी आदि सुदूरवर्ती भाषाओं के साथ हिन्दी आदि आर्य भाषाओं का जो वंशगत ऐक्य उपलब्ध होता है, इन अनार्य भाषाओं के साथ वह संबंध नहीं देखा जाता है।' संस्कृत भाषा आर्य भाषाओं में सबसे प्राचीन मानी जाती है। वैदिक परंपरा में संस्कृत, जैन परंपरा में प्राकृत और बौद्ध परंपरा में पालि, यद्यपि सबसे महत्त्वपूर्ण भाषा मानी जाती है लेकिन भारतीय आस्तिक चिंतनधारा की दृष्टि से अवलोकन करें तो संस्कृत भाषा में भारतीय ग्रंथकारों ने सबसे अधिक ग्रंथ लिखे हैं। वार्तालाप की भाषा संस्कृत हो सकती है या नहीं यह चर्चा चलती रहेगी। लेखन की भाषा के रूप में संस्कृत भाषा सर्वाधिक विद्वप्रिय रही है। .
SR No.023271
Book TitleSanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevardhi Jain
PublisherChaukhambha Prakashan
Publication Year2013
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size5 MB
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