Book Title: Sanskrit Bhasha Ke Adhunik Jain Granthkar
Author(s): Devardhi Jain
Publisher: Chaukhambha Prakashan

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Page 18
________________ १६ : संस्कृत भाषा के आधुनिक जैन ग्रंथकार १०. श्री कल्याणबोधिसूरिजी म. १. सामाचारीप्रकरण - टीका ३. नानाचित्त प्रकरण- टीका ५. दुःषमगंडिका- टीका ७. सद्बोधचंद्रोदय - टीका ९. अष्टावक्रगीता - टीका ११. बोटिकोपनिषद् १३. वादोपनिषद् १५. शिक्षोपनिषद् १७. अवधूतगीता-टीका ११. श्रीहितवर्धनविजयजी म. १२. श्री गुणहंसविजयजी म. १३. श्रीरत्नबोधिविजयजी म. १. श्री सुधर्मसागरजी म. दिगंबर परम्परा दिगंबर परंपरा में आगमग्रंथों का स्थान प्राचीन ग्रंथों ने लिया है। प्राचीन ग्रंथों पर प्राचीन टीकाएँ भी लिखी गई हैं। अर्वाचीन ग्रंथकारों ने प्राचीन ग्रंथों पर टीकाएँ लिखी हैं १. पुरुषार्थानुशासन - टीका ३. प्रतिक्रमण - टीका ५. परमार्थोपदेशगुणभूषण - टीका २. श्री प्रणम्यसागरजी म. - २. लोकतत्त्वनिर्णय-टीका ४. उपदेशरत्नकोश - टीका ६. विसंवादप्रकरण- टीका .८. इष्टोपदेश - टीका १०. हितोपनिषद् १२. तत्त्वोपनिषद् १४. वेदोपनिषद् १६. ज्ञानपंचकविवरण- टीका १८. जीवदयाप्रकरण- टीका १. लिंगशीलपाहुड-टीका ३. चैतन्यचन्द्रोदय-टीका सम्यक्त्वरहस्य - टीका सामाचारीप्रकरण- टीका धर्माचार्यबहुमानकुलक- टीका २. रयणसार- टीका ४. श्रावकाचार - टीका २. समाधितंत्र - टीका ४. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय-टीका

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