Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05 Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 9
________________ ७-सं० जैन इतिहास (ती० भाग प्रथम खंड) ... ११) ८-प्राचीन जैन इतिहास ३ग माग (मूलचन्द वत्सल कृत) १) ०-०न इतिहास (ती० माग ती० खंड) ... १) १०-मादर्श जैन चयां (बा. कामताप्रसादजी) ... ।) ११-जन तक माय (धाकृत व अनुवादक पं. स्वतंत्रजी) ) और यह • वा प्रज्य मंक्षिप्त जम इतिहास मा० ३ खंड पांनां पाठकोक मने जो दिगम्बर जैन के ४३ वें वर्षके ग्रारको क भेट दिया जा ... नया इमकी कुल प्रतियां विक्रया भी निकाली गई। म ऐतहानिक प्रायं लबक श्री पा. कामता प्रसादजी जन ( अलग ) ने इस भाग ६०० वर्ष पहले का अर्थात् सन् १३००१४.. के समयका श्री विजयनगर (दक्षिण) साम्राज्य जिममें कई जन गजा भी गये है उनका निहाम २८ अग्रंजी व हिन्दो प्रन्योंसे संकलन किया जो कार्य अतीव कठिन है और आप ऐसा कार्य ऑनररी तोसे ही काम कर है अत: अकयह संवः भतीव धन्यवादक पात्र व अनुकरणीय है। जन प्रम में दान नो बनाता है २कन उममें विद्यादान व शस्त्रदानकी विशेष अवश्याना अनः द कनकी दिशा-बदलनेको भावश्यक्ता है अनः दानकी रकमका उपयोग विद्यादान नया इस प्रकारको ग्रंथमाला निकालकर ही त्याची शास्त्रदानको ही व्यवस्था करनी चाहिये । भाया है हमारे पाठक सनिवेदन ध्यान देखेंगे। निवेदकसुरत-बीर सं० २४७६ । मूलचंद किमनदास कापड़िया, , वैशाख सुदी । ता. २२-४-५. -काशक -Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 171