Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 5
________________ और यह ७ वां ग्रन्थ संक्षिप्त बैन इतिहास तृतीय भाग-प्रथम खंड (बा० कामताप्रसादजी कृत) प्रकट किया जाता है जो 'दिगंबर जेन' पत्रके ३० वें वर्षके ग्राहकों को भेट बांटा जा रहा है तथा जो 'दिगंबर जैन' के ग्राहक नहीं हैं उनके लिये कुछ प्रतियां विक्रयार्थ भी निकाली गई हैं । भाशा है कि बहुत खोज व परिश्रमपूर्वक तैयार किये गये ऐसे ऐतिहासिक ग्रन्थोंका जैन समाजमें शीघ्र ही प्रचार होजायगा। इस ऐतिहासिक ग्रन्थ के लेखक बा० कामताप्रसादजीका दि० जैन समाजपर अनन्य उपकार है, जो वर्षोंसे मतीव श्रमपूर्वक प्राचीन जैन साहित्यको खोजपूर्वक प्रकाशमें कार।। ___ यदि जैन समाजके श्रीमान् शास्त्रदानका महत्व समझें तो ऐसी कई स्मारक ग्रन्थमालायें निकल सकती हैं और हजारों तो क्या लाखों अन्य भेट स्वरूप या लागत मूल्यसे प्रकट होसकते हैं, जिसके लिये सिर्फ दानकी दिशा ही बदलनेकी मावश्यक्ता है। पब द्रव्यका उपयोग मंदिरोंमें उपकरण भादि बनवानेमें या प्रभावना बंटवाने में करनेकी भावश्यक्ता नहीं है लेकिन द्रव्यका उपयोग विद्यादान और शास्त्रदानमें ही करनेकी भावश्यक्ता है। निवेदकवीर सं• २४६३ । मूलचन्द किसनदास कापडिया, बाश्विन वदी ३ ) प्रकाशक। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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