Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 26
________________ - ~ AAVAN संक्षिप्त जैन इतिहास । जैनधर्मक स्वन्प उसकी प्राचीनता और चौबीस तीर्थङ्कर । उसके नुग्न्य चौवीस नीर्थद्वगे विषयमे बहुत कुछ लिया जाचुका है। उसको यहापर दुहसना व्यर्थ है, किन्तु हालमे चौबीस तीर्थकरोंके विषयमे एक नई गहा खड़ी हुई है-उनके अस्तित्वको काल्पनिक कहा गया है । यदि यह कथन किसी प्रमाणके आधार पर होता-कोरी कल्पना न हेती, तो इसे कुछ महत्व भी दिया जाता. परन्तु यह निराधार है और इससे ऐसी कोई बात प्रगट नहीं होती जिसमे चौबीस नीर्थदूरविषयक मान्यता वाधित हो। प्रत्युत स्वाधीन मादीसे इम जैन मान्यताका समर्थन होता है। भारतीय शिलालेख, वैदिक और बौद्ध साहित्य उसका समर्थन करते हैं यह पहले लिखा जाचुका है। हालसे 'मोइन-जो-डरो के पुरातत्वपर जो प्रकाश पड़ा है, वह उस कालसे अर्थात् आजसे लगभग पाच हजार वर्ष पहले जैन धर्म और उसके साथ जैन तीर्थङ्करोंका अस्तित्व प्रमाणित करता है। वहासे ऐसी नग्न मूर्तियां प्राप्त हुई है, जिनकी आकृति टीक जैन मूर्तियाँ सहश है और उनपर जैन तीर्थकरोंके चिह्न बैल आदि है। एक लेखले स्पष्टत 'जिनेश्वर भगवानका उल्लेख है । १-"जैनजगत में इसी प्रकारका लेख प्रगट किया गया है।२-"संक्षिप्त जैन इतिहास" प्रथम भागकी प्रस्तावना तथा द्वितीय भाग प्रथम खंड पृ.३ 3-5€ A standing Image of Jain Rishabha in Kayotsarga posture. . closely resembles the pose of the standiog derties on the Indus seals etc. etc" -Modern Revear, Aug 1982. 8-मद्रा नं० ४४९ पर 'जिनेश्वर' शब्द अद्रित है। देखो इंटिमा०, भा० ८ इन्डससील्स पृ०.१८

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