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३०] .. संक्षिप्त जन इतिहास । प्रसिद्ध हुआ जानकर जैनाचार्योंने उक्त मतका भी निरूपगा कर दिया । यह भ्रम उपरोक्त दो गक -विजयाक कारण हुआ प्रतीत होता है । अत कहना होगा कि जैन गाथाओका यक गना नहपान है जिसके द्वारा दिगवर आगम लिपिवद्ध हुआ था। वासुदेवके समयमे कुगन-साम्राज्यकी दगा विगड गई थी।
अफगानिस्तान और मध्यागियाक दा साम्राकुशन साम्राज्यका ज्यसे अलग होगए थे। कहते हैं. इसी कालमे पतन।
भारतमे बड़ी भारी महामारी फैली थी।'
जैन शास्त्रामे भी इस महामारीका उल्लेख मिलता है। मथुरामे इसका बहुप्रकोप हुआ बतलाया जाता है। यहा सात चारण ऋद्धिधारी ऋषियोने आकर इस महा-रोगमे नगरको मुक्त किया था। जैन मदिरोंमे आजतक इन महात्माओंकी पूजा -होती है। इस समय मथुरामे जैन धर्मका अभ्युदय भी खूब हुआ
था। कोई अनुमान करता है कि राजा वासुदेव भी जैन धर्मानुयायी होगया था। अन्ततः इन विदेशी राजाओंको गुप्तवंगके क्षत्रियोंने पराजित किया था और उनकी जगह अपना राज्य स्थापित किया था। इस कालमे विद्या और ललितकलाकी खूब उन्नति हुई थी। कात्यायन और पातंजलिके भाष्य इसी कालमे रचे गये। व्याकरणका विकास हुआ, चरक द्वारा रसायन और वैद्यक शास्त्रकी अच्छी उन्नति हुई। जैनोंके वाङ्गमयका उद्धार और वह लिपिवद्ध भी इसी कालमे हआ। यूनानीयों और भारतीयोंका सम्पर्क भी खूब बढ़ा। भारतके
१-भाइ० पृ० ८३. २-सप्तऋषि पूजा देखो. ३-जैसिभा० भा० १ कि० ४ पृ० ११६-१२४.