Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 138
________________ ११६] संक्षिप्त जैन इतिहास । इन राजाओका जैनी होना संभव है। चालुक्योंके बाद राष्ट्रकूट वंशका अधिकार गुजरातपर हुआ था। वल्लभीमे जब ध्रुवसेन प्रथम ( ५२६-५३५ ई०) राज्य ____कर रहे थे. उस समय श्वेतावर मंप्रदायमें श्वे० आगम ग्रंथोंकी देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण नामक एक प्रख्यात् उत्पत्ति । साधु थे। उन्होंने बल्लभमे वतावर जैन संघको एकत्र किया था और उसमे अंग ग्रंथोका पुनः संशोधन करके उन्हें लिपिबद्ध करदिया। इस समयके बहुत पहले ही श्वतावर संप्रदायका जन्म होचुका था और उसने और भी कितनी ही प्राचीन वातोमे रद्दोबदल किया था जैसे साधुओके भेषमे और मूर्तियोंके निर्माणमे आदि । इस अवस्थामे क्षमाश्रमणके लिये यह अवश्यक था कि वह श्वेतावर जैन सिद्धातको लिपिबद्ध कर देते । ब्राह्मण और बौद्ध तथापि स्वयं दिगम्बर जैनोंके ग्रथ पहले ही लिपिवद्ध होचुके थे । श्वेताबरोंको भी यह ठीक नहीं जंचा कि उनके धर्मग्रंथ पुस्तकरूपमे लिपिबद्ध न हों। वह लिपिबद्ध कर लिये गये और उनमेसे 'जिनचरित्र ' ( महावीर चरित्र) का व्याख्यान आनंदपुरमे राजा ध्रुवसेनके समक्ष हुआ था। इस १-बंप्राजैस्मा०, पृ० १९५-१९६ । २-'कल्पसूत्र' (Jacobi. ed. p. 67 ) लिखा-'समणस्स भगवो महावीरस्स जावसव्व दुक्खप्पहिणस्स नववासस्स यायिम विक्कय-तइ दसमस्सय वासस्सयस्सा अयं असी इमे सवच्चेरकाले गच्छह इति।'-विनय विजयगणि इसकी टीकामें लिखते है:-'बलही पुरम्मि नयरे देवइढिप मुहसवलसहि। पुव्वे मागम लिहिऊ नव सय असी मानुवीराउ ॥ ३-उसू०, भूमिका पृ० १६ ।

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