Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 162
________________ १४०] संक्षिप्त जैन इतिहास । सन् १२३८ ई० मे राजा वीरधवलकी मृत्यु होगई । उस घटनामे राज्य भरमे हाहाकार मच गया । अनेक प्रजाजन राजाके साथ ही अपनी जीवनलीला समाप्त करनेको तत्पर हो गये; किन्तु तेजपालके प्रबन्धसे उनकी रक्षा हुई। वीर धवलके वाढ राज्याधिकार पानेक लिये उसके वीरम् और वीसल नामक दोनों पुत्रोंमे अगडा हुआ। वस्तुपालने वीसलका पक्ष लिया और वही राजा हुआ । वीरम जालोर अपने स्वसुरके पास भाग गया, जहा वह योग्वमे माग गया था । वीसलदेवके राज्यकालमे ही दोनों भाइयोंकी अवनति हुई । कहते है कि वीसलके चाचा सिहने एक जैनसाधुका अपमान किया था। वस्तुपाल इस धर्म विद्रोहको सहन न कर सके। उन्होंने मिहकी उंगली कटवाली। वीसलदेवने वस्तुपालके इस दुस्साहसका पुरस्कार प्राणदण्ड दिया । किन्तु इस समय कविवर सोमेश्वरने बीचमे पड कर वस्तुपालकी रक्षा की थी। इस घटनाके कुछ दिनों ही वाद वस्तु. पालका स्वास्थ्य खराव हुआ और वह गर्जेजयकी यात्राको जाते हुए अकेवलिय ग्राममे स्वर्ग लोकके वासी हुये । नेपालके पुत्राने इस स्थानपर एक भव्य मंदिर बनवा दिया था। यह सन् १२९१ की बात है और इसके करीव १० वर्ष बाद तेजपाल भी अपने भाईके साथी बने । वस्तुपालको उस समय लोग राजनीति गुरु कौटिल्यमे कम नहीं मानते थे। उपरोक्त वर्णनसे यह स्पष्ट है कि गुजरातमे जैनधर्मकी प्रधानता प्राचीनकालसे रही है । तथापि सोलंकी राजाओंके राज्यकालमे -सडिजै०, पृ० ५१-६९ । २-इहिको०, भा० १ पृ० ७८६ ।

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