Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ १४२] संक्षिप्त जैन इतिहास । सुचारु रीतिम न चला सके। कैन् आदि स्थानोके जैनमंदिगको नष्ट करके मुसलमानोंने उनका मनमाने ढंगमे उपयोग किया। यही कारण है कि जैनशिल्यका प्रभाव मुसलमानी शिल्पपर पड़ा हुआ मिलता है।' इस कालमे जैनोका सम्पर्क हिन्दु.मे विशेष हो चला था इस कारण उनके रीतिरिवाजोंका प्रभाव भी उन पर पड़ने लगा था। गुजरातमे दिगम्बर जैन धर्मका अस्तित्व तो स्वयं भगवान ___महावीरके समयमे था। मौर्यकालमे भी दिगम्बर जैनधर्मका वह यहा पर विद्यमान था। गिरनारकी उत्कर्प। प्राचीन गुफायें इसी बातकी द्योतक है। उपगन्त शक और छत्रपगजाओंके समयमे -भी दिगम्बर जैनधर्म यहा प्रधान रहा था। नहपान, रुद्रसिह आदि छत्रसगजा इमी धर्मके अनुयायी थे। राष्ट्रकूट और चालुक्य राज्य कालमे भी दिगम्बर जैनोंकी महत्ता गुजरातमे कम नहीं हुई थी। ईडर और सूरत दिगम्बर जैनधर्मके मुग्व्य केन्द्र स्थान थे । अंकलेश्वर दिगम्बर जैनोका पवित्र तीर्थ स्थान है, जहा जिनवाणी सर्व प्रथम लिपिवद्ध हुई थी। चालुक्य सिद्धराज जयसिहके दरवारमे दिगम्बर और श्वेताम्बरोंका वान होना, इस वातका द्योतक है कि तब तक दिगम्बर जैनोंका महत्व यहा अवश्य ही इतना काफी था कि वह राजाका ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित कर सके थे। किन्तु वादके लिये कांटक देशसे एक दिगम्बराचार्यको बुलाना प्रगट करता १-चार वर्ष ५ पृ० ३०१ । २-हिवि० भा०२ पृ० २९२ । ३-जेहि० भा० ६ अक ११-१२ पृ० २०॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203