Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 182
________________ १६०] संक्षिप्त जैन इतिहास । ऊंचा किया था। उनके रचे हुये ग्रन्थ बहुत ही अपूर्व है । उनके ग्रंथामे 'सागारधर्मामृत' विशेष उल्लेखनीय है । 'अध्यात्मरहस्य नामक ग्रन्थ कविराजने अपने पिताकी आज्ञासे बनाया था। उनके पिता धारामे आकर अर्जुनदेवके सन्धिविग्रहिक मंत्री होगये थे। कविराज़के बनाये हुए ग्रंथोंके नाम इस प्रकार है " (१) प्रमेय रत्नाकर (स्याद्वाढ मतका तर्क ग्रंथ), (२) भरतेश्वराभ्युदय काव्य और उसकी टीका. (३) धर्मामृत गाल टीका सहित (जैन मुनि और श्रावकोंके आचारका ग्रन्थ). (४) गजीमनी विप्रलम्भ (नेमिनाथ विषयक खण्डकाव्य), (५) अध्यात्म रहस्य (योगका ), (६) मूलारावना टीका, इष्टोपदेश टीका. चतुविशतिस्तव आदिकी टीका. (७) क्रिया कलाप (अमरकोप टीका). (८) रुद्रटकून काव्यालंकारपर टीका. (९) सटीक सहस्रनाम स्तव. (१०) सटीक जिनयज्ञ कल्प. (११) त्रिषष्ठि स्मृति ( आर्ष महापुराणके आधारपर ६३ महापुरुषोंकी कथा ), (१२) नित्य महोद्योत (जिन पूजन), (१३) रत्नत्रयविधान और (१४) वाग्भटसंहिता (वैद्यक ) पर अष्टाग हृदयाद्योत नामकी टीका । उल्लिखित ग्रन्थामेसे त्रिषष्ठि स्मृति वि० सं० १२९२ मे और भव्य कुमुढचंद्रिका नामकी धर्मामृत शास्त्रपाटीका वि० सं० १३०० मे समाप्त हुई। यह धर्मामृत शास्त्र भी आगाधरने देवपालदेवके पुत्र जैतुगिदेवके ही समयमे बनाया था। __ कविवर अर्हद्दासने आशाधरजीके उपदेशसे जैनधर्म ग्रहण १-विर०, पृ० ९५-११४ । २-भानारा०, भा०१ पृ० १५७ ।

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