Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 203
________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा वजैनधर्म। [181 यही कारण है कि जैनाचार्य झट अजैनोंको शुद्ध करके अर्थात् जैनधर्ममें दीक्षित करके उनके यहां आहार जैनधर्मकी व्यवहारिक ग्रहण कर लेते थे। जैनधर्मकी व्यवहारिक उपयोगिता। उपयोगिता भी उस समय नष्ट नहीं हुई थी। राजपूत क्षत्री भी उसे धारण करते हुये अपने जातीय कर्तव्य असि धर्ममें कुछ भी बाधा आती नहीं पाते थे। सच. मुच जैनधर्म राजनीतिमें बाधक है भी नहीं। आत्मरक्षा अथवा धर्म संरक्षणके लिये शास्त्रविद्याका सीखना उस समय वैश्योंके लिये भी आवश्यक था। इस प्रकार साधारणतः उस समयके जैनधर्मका स्वरूप था।

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