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१०२] संक्षिप्त जैन इतिहास। थे। उस समय यहा ललितकलाओंकी शिक्षाका खासा प्रवन्ध था और यहाकी कलाका प्रभाव विदेशोंकी कलापर भी पड़ा था।' गुप्तकालमे भारतीय व्यापारकी भी खूब उन्नति हुई थी। जैन
श्रेष्टी दूर दूर देशोमे व्यापार करते थे। उस समयके व्यापारी। पश्चिमीय देशोसे यह व्यापार खूब बढ़ा था।
रोमके जहाज दक्षिण भारतमे आते थे और मसाले, इत्र, हाथीदात, बढ़िया वस्त्र, पत्थर आदि लेजाते थे। मित्र देशका अलेकजन्डिया नगर तव भी इस भारतीय व्यापारका केन्द्र था । वहा भारतीय व्यापारी मौजूद थे। देशमे तव व्यापारके कई मार्ग थे । एक तो मौर्य राजाओंके कालकी सडक पाटलिपुत्रकी पश्चिमोत्तर सीमातक जाती थी। दूमरी मच्छलीपट्टनसे भड़ौचको जाती थी। भडौच प्रसिद्ध बन्दरगाह था। रोमके विद्वान् लिनीका कथन है कि रोमसे प्रतिवर्ष लाखों रुपया भारतको जाता था । जावा आदि पूर्वीय देशोंके साथ भी व्यापार होता था। इसका सम्बन्ध खासकर कलिङ्ग देशसे था। मध्य-ऐशियामे एक हूण नामकी जाति रहती थी। इस
जातिने भारतपर आक्रमण किया था और हूण-राज्य। उसके सरदार तोरमाणने सन् ५१० के
लगभग भारतमे अपना राज्य स्थापित किया था, यह पहले कह चुके है। उसके बाद उसका पुत्र मिहिरकुल हूणोंका राजा हुआ । वह बढ़ा अत्याचारी शासक था । कहते है
१-भाइ० पृ०९५-९६। २-जमीसो० भा० १८ पृ० ३१०। ३-भाइ० पृ० ९७। ४-इंहिका० भा० १ पृ० ३१५॥