________________
सम्राट् खारवेल।
[३१ ज्योतिषियोंने उनसे नक्षत्रोंकी स्थिति और चालके विषयमें बहुत कुछ आदान प्रदान किया ! भाग्इंत, साची, अमरावती और मथुराके स्तूप तथा खंडगिरि-उदयगिरिकी गुफायें आडि इस समयकी उत्कृष्ट कलाके नमूने हैं। इस समय देशभरमे सर्वत्र बड़ी सुन्दर और विशाल इमारतें बनी थीं।
(२) रसम्राट श्वारखेल।
(सन् २०७-१६० ई० पूर्व) कर्मभूमिको आदिमे श्री ऋषभदेवजीने भारतको विविध प्रांतोंमें
___ विभक्त किया था। तब उन्होंने वर्तमानके कलिडका ओडीसा प्रांतका नाम 'कलिङ्ग रक्खा था ! ऐल चेदिवंश। कलिङ्गके प्रथम सम्राट् ऋषभदेवजीके पुत्रों
__ मेंमे एक थे । भगवान ऋषभदेवने कैवल्य प्राप्त करके जब देश भरमें सर्वत्र विहार किया था, तब उनका समवशरण कलिङ्ग देशमे भी पहुवा था; जिसके कारण जैनधर्मका वहांपर काफी प्रचार हुआ था। तकालीन कलिङ्गाधिप जैन मुनि होगये थे । और कलिङ्गका शासनभार उनके पुत्रने ग्रहण किया था। परिणामतः कलिङ्गमे कोगलका यह इक्ष्वाक वंश एक दीर्घ कालतक राज्य करता रहा था । ' हरिवंश पुराण' के कथनसे प्रगट है कि उपरांत वीसवें तीर्थकर श्री मुनिसुव्रतनाथजीके तीर्थ में कौशलदेशमें हरिवंशी राजा दक्ष राज्य करता था। उसका पुत्र
१-हरि० ३।३-७ व ११:१४-७१.