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संक्षिप्त जैन इतिहास। जिनके निकटसे नहपान राजाने जैन मुनि होकर पटखण्डागम अन्थकी रचना करके उसे ज्येष्ठ शुक्ल पंचमीके दिन अंकलेश मे लिपिबद्ध किया था। इसी कारण यह पवित्र दिन "श्रुतावतार" के नामसे प्रसिद्ध है। श्रीधरसेनाचार्य गिरनारकी चंद्र-गुफामें बिराजमान थे। वहींपर नहपान राजर्षि (भूतबलि मुनि) और सुबुद्धि श्रेष्ठी (पुष्पदन्त मुनि) ने उनसे शास्त्र ज्ञान प्राप्त किया था। ये दोनों ऋषि उस समय वेणातटकपुरके जैन संघमे निवास ही करते थे। गिरनारसे ये दोनों ऋषि कुरीश्वर देशमे पहुंचे थे और वहापर इन्होंने चातुर्मास किया था । पश्चात् दक्षिण भारतकी ओर इनका विहार हुआ था । पुष्पदन्त मुनि अपने भानजे जिन पालितको मुनि बनाकर दक्षिणके वनवास देशको चले गये थे और भूतवलि मुनि दक्षिण मथुराको प्रस्थान कर गये थे। इसी जिन पालितके निमित्तसे षट्खण्डागम ग्रन्थकी रचना हुई थी।
__ श्री इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतार कथाके अनुसार इस घटनाके 'पहले जैनसंघ नन्दि, देव, सेन, वीर (सिह) और भद्र नामक संघोंमे विभक्त होगया था। ये विभाग श्री अर्हद्वलि आचार्य द्वारा किये गये थे। इनमे कोई सिद्धात भेद नहीं है। किन्तु श्रवणबेलगुलके शिलालेख नं० १०८ से प्रगट है कि अकलंकस्वामीके स्वर्गवासके 'पश्चात् सघ देशभेदसे 'सेन', 'नंदि', 'देव' और 'सिंह' इन चार भेदोंमें विभाजित हुआ था। श्री पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार प्रगट
१-श्रुतावतार कथा, पृ० १६-२० २-जैशिसं० भूमिका, पृ० १४५