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इन्डो वैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य। [२७. चला मानते है।' डा० फ्लीट भी इस मतसे सहमत थे। कनिघम और डुबुयल चष्टनको शक संवतका चलानेवाला प्रगट करने है। सर जॉन मारगल अजस प्रथम (Ages I) द्वारा उसका चलना अनुमान करते है। किन्तु विद्वानोने इन मतोको निस्सार प्रगट कर दिया है। यद्यपि वे मब उमे मन ८ ई०से चला मानने में एक मत है। उधर भारतीय पण्डिनोका पुरातन मन्तव्य शक संवत्के विषयमें यह रहा है कि प्रतिष्ठानपुरके गजा गालिवाहन (सातवाहन) ने शकोंको पगस्त करके इस संवतको चलाया था । जिनप्रभसूरिने 'कल्पप्रदीप ' में लिखा है कि गजा गालिवाहनने गक संवत चलाया था। मातवाहन या गातिकणी उपाधिधारी गजा दक्षिण पैठनके आन्ध्रवंशमे हुये है. जिसका राज्यकाल ई० पूर्व पहली शताब्दिसे ईस्वी नीसरी शताब्दितक रहा था। कतिपय विद्वान् इस वंशके हाल नामक राजाको शकसंवतका प्रवतेक गालिवाहन प्रगट करते है, क्योंकि हाल और गाल शब्द समवाची है। किन्तु मम० कागीप्रसादजी जायसवाल कुन्तल गातकर्णीको गक गालिवाहन संवतका प्रवर्तक सिद्ध करते है। वह बतलान हैं कि शक नामके दो संवत थे। प्राचीन शक संवतका सम्बन्ध कोसे था। वह लगभग
१-चंबई गैजेटियर मा० १ खंड १ पृ० २८. २-जराएसो०, १९१३ पृ० ९२२. ३-काइन्स ऑफ इंडिया पृ० १०४ व इंए. १९२३ पृ० ८२. ४-जमीसो० भा० १८ पृ० ७०. ६-जमीसो० भा० १७ पृ० ३३४. ६-भामारा० भा० १ पृ० ३ व जमीसो०, 'भा० १७ पृ० ३३४-३३५. ७-जमीसो०, भा० १७ पृ० ३३४३३७. ८-जबिमोसो०, भा० १६ पृ० २९५-३००.
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