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इन्डो-चैक्ट्रियन और इन्डो पार्थियन राज्य। [११ वहा जाकर बौद्ध धर्मका प्रचार किया था। स्ट्रेवोने लिखा है कि मेनेन्डरने पटल ( मिन्ध ). सुराष्ट्र और सगरडिस ( सागर-द्वीप कच्छ) तक अधिकार कर लिया था। उसके शिके भडौचतक प्रचलिन थे और उसकी सेना राजयूताना तक पहुंची थी। मेनेन्डर वीर होनेके साथ ही गायन भी था । 'लटार्कने उसे एक अन्यन्न न्यायवान राजा लिखा है। वह इतना लोक-प्रिय था कि इसकी मृत्युके पश्चात लोगोंन उसका भस्मावशेष आपसमे बाटकर उसपर स्तूप बनाए थे । मेनेन्डरका अधिकार मथुरा, माध्यमिका (चिनौरके निकट ) और साकेत ( दक्षिणी अवध ) तक होगया था । किन्तु गंगाके आसपास वाले प्रदेशोंमे उसका राज्य अधिक दिनोतक नहीं रहा था । पातन्जलीके महाभाध्यमे यवनों द्वारा साकेत और मध्यमिकाके घेरेका उल्लेख है।
संभवतः यह उलेख मैंनन्दरके आक्रमणको लक्ष्य करके लिखा गया है; क्योंकि यह चढ़ाई पातंजलिके समय हुई थी। जष्टिन मेनेन्डरको भारतका राजा लिवता है। बौद्धग्रन्थ 'मिलिन्द पाह' से पता चलता है कि भिक्षु नागमेनके उपदेशय मेनेन्डरने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया थाः किन्तु बौद्ध होनेके पहले उसका जैन होना बहुत कुछ संभव है। उसने जिन दार्शनिक सिद्धातोपर नागसेनके साथ बहस की थी, वह ठीक जैनोंके अनुसार है। स्वयं मिलिन्द पण्ह' में कथन है कि पांचसौ यूनानियोंने राजा मेनेन्डरमे भगवान महावीरके धर्म द्वारा मनस्तुष्टि करनेका आग्रह किया था और मेनेन्डरने • १-भाप्रारा० भा० २ पृ० १४२-१४३. २-विशेषके लिये देखो 'वीर' वर्ष २पृ० ४४६-४४९.