Book Title: Samyaktva Vimarsh
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 17
________________ पृष्ठ संख्या १६७ ७७ ७८ २०० ७६ २०१ २०२ २०२ . ० ० ८२ २०३ २१३ २१५ ८४ २१६ ८६ २२० ८८ २२४ २२७ विषय लोकोत्तर धर्मगत मिथ्यात्व कुप्रावनिक मिथ्यात्व न्युन-करण मिथ्यात्व अधिक-करण मिथ्यात्व विपरीत मिथ्यात्व अक्रिया मिथ्यात्व अज्ञान मिथ्यात्व अविनय मिथ्यात्व आशातना मिथ्यात्व मिथ्याश्रुत का पठन-पाठन सम्यक्त्व परम दुर्लभ है सम्यग्दर्शन का महत्व विज्ञान भूमिका की दशा श्रद्धालुओ का परम आधार तत्त्वार्थ श्रद्धा पहले से चौथा कब ? सत्रह पापो के सद्भाव में भी ज्ञान भी अज्ञान इतना महत्व क्यों ? अपरिवर्तनीय सम्यग्दृष्टि का निर्णय स्व-पर विवेक सजातीय विजातीय आगमो में आत्म-लक्षी विधान आत्मदर्शन और सम्यग्दर्शन केवलज्ञान के समान इस अनमोल रत्न की रक्षा करो सम्यक्त्व महिमा ९० २२६ २३४ १४ २३६ २३७ ९७ २३६ २४१ २४५ २४८ ६६ १०० १०१ २५८ १०२ २६७ २७६ २८४ १०४ २८६

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