Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 18
________________ जम्हा नरसुरलच्छी, लब्भइ मणुयत्तमवि य तुडिजोगा । न वि लब्भइ जिणधम्मो, अचिन्तचिन्तामणीकप्पो एवं च रयणनिहिलाभ-संनिभं पाविऊण तं कह वि । जो नेइ विफलमइतुच्छ - विसयवासंगवामूढो सोऽणंतरवारमणवरय-जम्मजरमरणवारिपडिहत्थं । बहुरोगमयरभीमं - भवण्णवं सेवइ वरागो को नाम किर सकण्णो, सुदीहकालं किलिस्सिडं कह वि । पत्तो सुवण्णकोडि, हारति तं कागणी क किंच धम्मत्थकाममोक्खा, चउरो किर होंति एत्थ पुरिसत्था । ताण पुण सेसपुरिसत्थ- हेउभावो वरो धम्मो तं पुणमिच्छत्ततमोह-मोहिओ णो जहट्ठियं जीवो। नाउं सक्को परिपीय-पउरमइरारसो व्व नरो ता भो महास! तुमं, उज्झियमिच्छत्तसव्वकायव्वो । जिणमेक्कं चिय देवं, मुणिणो गुरुणो य सरिऊण पाणिवहमुसावायं, अदत्तमेहुणपरिग्गहारंभं । मुंचसु इमम्मि मुक्के, जीवो मुच्चइ भवभएण न य एत्तोच्चि धम्मो, अण्णो भुवणत्तए वि अत्थि वरो। न य एयविउत्तेणं, मोक्खसुहं लब्भइ कहं पि न य निस्सारस्स, सरीरयस्स एयस्स धुवविणासिस्स । धम्मोवज्जणमेक्कं, मोत्तूणऽवरं फलं अस्थि खरपवणपहयपउमिणि-दलग्गलग्गंबुबिंदु व्व चलस्स । न य धम्मजणणविरहे, किं पि फलं जीवियस्सावि पणिमिमं धम्मज्जणं च, नो सव्वविरतिविमुहेण । काउं तीरइ न य एय- विरहेणं लब्भए मोक्खो न य तदभावे च सुहं, नीसेसकीलेसलेसपरिहीणं । एगन्तियमच्चन्तिय-मणंतमण्णत्थ संभवइ इय एवंविहसोक्खं, मोक्खं जइ वंछसे तुमं लद्धुं । ता जिणदिक्खानावं, घेत्तूण भवण्णवं तरसु इय वुत्ते हरिसवसुच्छलन्त-पुलएण भत्तिपणएण । तुमए गहिया दिक्खा, तस्स समीवे मुणिवरस्स अह पढियसयलसत्थो, सुणिउण मइमूणियसव्वपरमत्थो । छज्जीवरक्खणपरो, गुरुकुलवासम्मि णिवसन्तो विविहतवच्चरणाइं, कुणमाणो गुरुगिलाणबालाणं । उवयारे वट्टन्तो, निंदन्तो पुव्वदुच्चरियं अपुव्वापुव्वगुणज्जणम्मि, अब्भुज्जमं परिवहन्तो । सविसेसपसमपीऊस-पसमियासेसकोहग्गी निग्गहिइंदियवग्गो, चिरकालं पालिऊण पव्वज्जं । कयपज्जन्ताणसणो, देवो जातोऽसि सोहम्मे सा वि सुरसुन्दरी तद्दिणाउ, आरब्भ विहियपव्वज्जा । पुव्वसिणेहवसेणं, तुह देवित्तेण उववण्णा जातोच मए सद्धि, पडिबंधो कोइ तुज्झ अइगरुओ । खणमवि वियोगदुक्खं, असहंताण य गतो कालो चवणसमय तुमए, नीओऽहं केवलिस्स पासम्मि । आपुच्छिओ य भयवं, पुव्वभवे भाविजम्मं च तेणावि गयपमोक्खा, अस्संखसुतिक्खदुक्खपडिबद्धा । पुव्वभवा परिकहिया, इमो य भाविनरिंदभवो तोsहं भणिओ, जोडियकरसंपुडेण ससिणेहं । मा काहिसि वंझमिमं, अपच्छिमं पत्थणं सुहय ! जइया हं नरनाहो, होमि महाविसयसंगवामूढो । गयपमुहभवेहिं तया, तुमए पडिबोहियव्वो ति पावट्ठाणपसत्तो, अपत्तजिणधम्मसास्चारित्तो । मा निवडिस्सामि पुणो वि, दुक्खवसीमासु कुईसु पडिवण्णमिमं च मए, चुओ तुमं एस पत्थिवो जातो। सा पुण देवी भज्जा, कणगवई नाम ह पाएण नेव सुहिणो, सोउं पि हु अहिलसन्ति धम्मगिरं । इय सुदुहट्टस्स मए, तुह सिट्ठी एस वुत्तन्तो ता सोऽहं तुह मित्तो, सो य तुमं ते इमे य पुव्वभवा । जं बहुगुणोववेयं, तं इत्तो कुण महाभाग ! इय कहिए महसेणो, जाईं सरिऊण निरवसेसंपि । मुच्छानिमीलियच्छो, निद्दोवगओ व्व ठाइ खणं अह सिसिरपवणपरिलद्ध-चेयणो भालनिमियकरकमलो। सायरकयप्पणामो, राया तं भणिउमाढत्तो पडिवण्णभरुव्वहणेण, सुहय! तुमए न केवलं सग्गो । समलंकिओ विरायइ, ओइण्णेणेह धरणी वि वि तु पणयवच्छ्ल्लयाए, तुच्छं तिलोयदाणमवि । पच्चुवयारी होहामि, कहमहं तह वि इइ कहसु भणियं सुरेणजइया, जिणपयमूले पवज्जिहिसि दिक्खं । पच्चुवयारी नरवर!, होहिसि निस्संसयं तइया १. ओइण्णेण = अवतीर्णेन, ૧૧ ॥ ३३८ ॥ ॥ ३३९ ॥ ॥ ३४० ॥ ॥ ३४१ ॥ ॥ ३४२ ॥ ॥ ३४३ ॥ ।। ३४४ ॥ ॥ ३४५ ॥ ॥ ३४६ ॥ ॥ ३४७ ॥ ।। ३४८ ।। ॥ ३४९ ॥ ॥ ३५० ॥ ।। ३५१ ॥ ।। ३५२ ॥ ।। ३५३ ।। ॥ ३५४ ॥ ।। ३५५ ।। ॥ ३५६ ॥ ॥ ३५७ ॥ ।। ३५८ ।। ॥ ३५९ ॥ ॥ ३६० ॥ ॥ ३६१ ॥ ॥ ३६२ ॥ ॥ ३६३ ॥ ॥ ३६४ ॥ ॥ ३६५ ॥ ॥ ३६६ ॥ ॥ ३६७ ॥ ॥ ३६८ ॥ ॥ ३६९ ॥ ॥ ३७० ॥ ॥ ३७१ ॥

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