Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 17
________________ अह विहिवसेण दिव्वो-सहाइविरहे वि सो णिरायंको । जाओ संतो सयणे, मोयाविय बहुपयारेहिं पवज्जं पडिवण्णो, गुणसागरसूरिणो सयासम्मि । छट्ठट्ठमाइदुक्कर - तवचरणपरो य विहरित्था इय भो महायस ! तए, मह विसरिसरूवयं समुद्दिस्स । पुटुं जं तं सिद्धं, सव्वं पि मए जहावित्तं एवं सोच्चा महसेण - राय ! तुमए विचितियं तइया । धी धी अणज्जकज्जा - सत्तं पुरिसत्तणं मज्झ बुद्धीवि हु, निवडउ वज्जासणी गुणगिरम्मि । सत्थत्थपारगत्तं पि, जाउ पायालमूलम्मि पविसदरी उत्तम - कुलजम्मसमुब्भवो य अभिमाणो । नीई वि वराई पुरिस-पवरमवरं अणुसरेउ जो वंतमिमं तेणं, पुरिसप्पवरुत्तमंगरयणेण । सेविउमहं समीहामि, सारमेओ व्व निल्लज्जो सो घणो कयपुण्णो, सफलं तस्सेव माणुसं जम्मं । सरयणिसायरधवला, पत्ता तेणं चिय पसिद्धी णियकुलनहयलचंदो, सो च्चिय कणगप्पभो परं एक्को । लीलाए जेण दलिओ, घोरमहामोहपडिवक्खो हे पावहियय ! एवंविहाण, पुरिसाण सुणिय सच्चरियं । पररमणीपरिभोगे, सुमुणिणिसिद्धे कहं रमसि जाउ वि लडहलायण- पुण्णसव्वंगियाउ पयईए। सोहग्गसमुग्गाओ, मणहरसव्वंगचेट्ठाओ पयईए च्चिय सद्दाइ-विसयसुंदेरसीमभूमीओ। दीसंतकंतसव्वंग-संगिसिंगारगरुईओ वम्महनिहीसु तासु वि, मा मण ! तं रमसु णिययरमणीसु । पवणपकंपिरपिप्पल-पत्तसमुत्तालचित्तासु अण्णं च जाणसि तुच्छमिह सुहं, जाणसि दुक्खं पि मेरुगिरिगरुयं । जाणसि य चलं जीयं, जाणसि तुच्छाओ लच्छीओ जाणसि अथिरा नेहा, जाणसि खणभंगुरं समत्थमिमं । तह वि हु गिहवासं कीस ? जीव ! नो चयसि एत्ताहे इय निरवग्गहवेरग्ग-मग्गपडिलग्गचित्तपसरेण । आबद्धकरयलंजली, भणिया सा ससिमुही तुम ! तुमं जणी तुज्झ पई जो य सो ममं जणगो । जस्सुद्धरिओऽहमकिच्च - कूवया चरियरज्जूए तो यह विरागो, वट्टइ संसारिएसु किच्चेसु । तुममऽवि महाणुभावे ! पइमग्गं अणुसरेज्जासु जेण खरपवणताडिय-पल्लवचलमाउयं चला लच्छी । तडितरलं तारुण्णं विसया वि विसं व दुहजणगा पियजणजोगो वि वियोग- विहुरिओ रोगभंगुरं गत्तं । अक्कमइ पइखणं परम- दारुणा वेरिणि व्व जरा अणुसासिऊण एवं, तीए गेहाओ झत्ति नीहरिओ । तेणं चिय मग्गेणं, गतो तुमं णिययभवणम्मि तत्थ य ठियस्स तुज्झ संसारासारयं र्णियंतस्स । वेयालियपुत्तेणं, पढिया एक्का इमा गाहा जह कि पि कारणं पा - विऊण जायइ खणं विरागमई। तह जइ अवट्टिया सा, हवेज्ज ता किं न पज्जत्तं एयं च तुमं सोच्चा, सविसेससमुल्लसंतसुहभावो । जाए पभायसमए, अलहन्तो मंदिरम्मि रई कइवयजणपरियरिओ, वणलच्छिं पेच्छिउं विणिक्खन्तो । अह एगत्थुज्जाणे, चारणसमणो तए दिट्ठो जो पसत्थगुणरयणमण्डणो, मोहमल्लदढदप्पखण्डणो । देहकंतिभूसियदिसामुहो, पावलोगसंगतिपरंमुहो जो मग्गनिग्गहियमाणसो, कम्मवेरिजयपयडसाहसो । सोमयाए जणचित्तरंजणो, महिगतो व्व छणहरिणलंछणो अइविसिट्ठसुहलेससंगओ, भव्वलोयपायडियमग्गओ । कोहमाणभयलोहवज्जिओ, नेव वाइनिवहेण निज्जिओ एक्कचलणनिमियंगभारओ, सूरसंमुहकयऽच्छितारओ। सेलरायसिहरं व निच्चलो, काउस्सग्गगतो सत्तवच्छलो तं विगुण- मुणिं पेच्छिउं वियसियच्छो । पाएसु तुमं पडिओ, एवं भणिउं पवत्तो य भयवं ! सिवमग्गुवदंसणेण मम संपयं कुण पसायं । तुह पयजुयचिन्तामणि- पलोयणं होउ मा विहलं एवं भणि पारा - विऊण उस्सग्गमुग्गकरुणाए । जोगो त्ति कलिय तेणं, भणियं भो भव्व ! निसुणेसु एत्थं अणोरपारे, संसारे दुक्खलक्खपउरम्मि । पाविज्जइ मणुयत्तं, जीवेहिं कहवि तुडिजोगा तत्थ वि आरियदेसो, देसे वि हु वरकुलाइसामग्गी । तत्थ वि सोहग्गोवरि-मंजरिसरिसो य जिणधम्मो १. णियंतस्स पश्यतः, ૧૦ ॥ ३०४ ॥ ।। ३०५ ।। ॥ ३०६ ॥ ॥ ३०७ ॥ ॥ ३०८ ॥ ॥ ३०९ ॥ ॥ ३१० ॥ ॥ ३११ ॥ ॥ ३१२ ॥ ॥ ३१३ ॥ ॥ ३१४ ॥ ।। ३१५ ॥ ॥ ३१६ ॥ ॥ ३१७ ॥ ॥ ३१८ ।। ॥ ३१९ ॥ ॥ ३२० ॥ ॥ ३२१ ॥ ॥ ३२२ ॥ ॥ ३२३ ॥ ॥ ३२४ ॥ ॥ ३२५ ॥ ॥ ३२६ ॥ ॥ ३२७ ॥ ॥ ३२८ ॥ ॥ ३२९ ॥ ॥ ३३० ॥ ॥ ३३१ ॥ ॥ ३३२ ॥ ॥ ३३३ ॥ ॥ ३३४ ॥ ॥ ३३५ ॥ ॥ ३३६ ॥ ॥ ३३७ ॥

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