Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ तत्तो निसियाए कप्पणीए, कप्पन्ति सुहमखंडेहिं । अंगं करुणसरेणं, तुह विरसं आरसंतस्स अइसुहुमखंडिए वि हु, पुणो वि मिलिए तणुम्मि सूऐ व्व । भयविहुरो नासन्तो, घेप्पसि तेहिं तुम सहसा तो वज्जकुंभियाए, हेट्ठा पज्जलियतिव्वजलणाए । पक्खिप्पसि पागत्थं, अणिच्छमाणो हढेण तुम तत्थ य अच्वंतं दज्झ-माणदेहो तिसाए अभिभूओ। वाहरसि विरससई, तेसि पुरतो तुम एवं तुब्भे जणणीजणगा, भाया सयणा य बंधवा पहुणो। सरणं ताणं तुज्झे, तुब्भे च्चिय देवया मज्झ ता मुयह खणं एक्कं, पायह सलिलं पसीयह इयाणि । इय भणिए हिट्ठमणा, ते महुरगिराए जंपंति रे! वज्जकुंभियामज्झ-भागओ कड्ढिउं वरागमिमं । पाएह वारि सिसिरं, तहत्ति पडिवज्जिउं अवरे तत्ततउतंबसीसय-रसभरियं भायणं गहेऊणं । सिसिरं ति पयंपंता, पायन्ति तुमं महापावा अह तेण जलणतुल्लेण, दज्झमाणस्स वलियगीवस्स । तुज्झ अणिच्छन्तस्स वि, भेत्तुं संडासएण मुहं निसिरंति तमाकंठं, तो तेण कढिज्जमाणसव्वंगो। मुच्छानिमीलियच्छो, धस त्ति णिवडसि महीवीढे खणलद्धचेयणो असि-वणम्मि सिसिरं ति जायसंकप्पो। वच्चसि तत्थ वि छिज्जसि, पयंडतरुपत्तखग्गेहि तत्तो पुणो वि तेहिं, रंगंततरंगभंगुरावत्ते। वेयरणीनइनीरे, खिप्पसि पज्जलियजलणाभे तत्थ वि विज्जुड्डामर-महल्लकल्लोलपेल्लणवसेण । उब्बुड्डणबुड्डणचलण-खलणवाउलियसव्वंगो जरतरुदलं व कहवि हु, तीए किलेसेण पत्तपरतीरो। अच्छंतो असुरेहि, घेत्तूणं हरिसियंगेहि जोत्तिज्जसि वसभो इव, रहम्मि अच्चन्तभूरिभारम्मि। विज्झसि पइक्खणं कुंत-तिक्खधाराए आराए अह तत्थ परिस्सन्तो, जा गंतुं नेव सक्कसि कहिं पि । ता उग्गमोग्गरेहि, चूरिज्जसि तं महाभाग ! अप्फालिज्जसि वियडे, सिलायले भिज्जसे य कुन्तेहिं । छिज्जसि करवत्तेहिं, पीलिज्जसि चित्तजंतेसु भुंजाविज्जसि णियअंग-मंसखण्डाई जलणपक्काइं। ताडिज्जसि पुणरुत्तं, विचित्तदंडप्पहारेहि असुरविउव्वियगरुयंग-पक्खिअइतिक्खनक्खचंचूहि । पहणिज्जसि करुणसरं, रुयमाणो उड्ढकयबाहू इय नरयउब्भवदुहं, अणुभूयं जं तए नरवरिंद ! । तं सव्वं परिकहिउं, जयपहुणो च्चिय तरन्ति परं एवं सागरमेगं, निवसित्ता भीसणम्मि नरयम्मि। दुक्खाइं असंखाई, विसहिय तत्तो मओ सन्तो तुममुववण्णो भरहे, नयरे रायग्गिहम्मि रोरकुले । पुत्तत्तणेण तत्थ वि, अणेगरोगाउलसरीरो समयाणुरूवभोयण-रोगपडीयारसयणपरिहीणो। अच्चन्तं दीणमणो, भिक्खावित्तीए जीवन्तो तरुणत्तं संपत्तो, तत्थ वि अच्चन्तदुक्खिओ सन्तो। परिचिंतिउं पवत्तो, धी धी मह जीविअव्वस्स जं सरिसे वि हु मणुअत्तणम्मि, तुल्ले अ इंदिअग्गामे । भिक्खाए जियामि अहं, इमे अधण्णा पविलसन्ति एगे वहन्ति सोगं, अज्ज न अम्हेहि किंपि दिण्णं ति। अज्ज न कि पि हु लद्धं, अहं तु एवं किलिस्सामि छड्डिज्जइ धम्मकए, एगेहिं समुद्धरा वि नियरिद्धी । बहुठाणजज्जरं पि हु, न चइज्जइ कप्परं पि मए एगे खिवन्ति चक्, सन्तीसु वि नेव पवरतरुणीसु । संकप्पोवगयासु वि, अहं तु तोसं परिवहामि जच्चकणगच्छवि पि हु, एगे जंपंति असुइयं देहं । रोगसयविहुरियं अप्प-णो य तमहं तु सलहेमि जय जीव नन्द एवं, एगे थुव्वन्ति मागहजणेण । अक्कोसिज्जामि अहं तु, निण्णिमित्तं पि भिक्खगओ परुसं पि पयंपन्ता, जणन्ति एगे जणाण परितोसं । आसीसाउ दिन्तो वि, अद्धचंदं लहामि अहं . इय पउरपावणिहिणो, निहीणचिट्ठस्स रोगविहुरस्स । पव्वज्ज च्चिय उचिया, जम्हा तीए वि किच्चमिणं मलमलिणसरीरत्तं, भिक्खावित्ती य भूमिसयणं च। परवसहीसु निवासो, सया वि सीउण्हसहणं च निक्किचणया खन्ती, परपीडावज्जणं किसतणुत्तं । जम्मसमणन्तरं च्चिय, एयं तु सहावसिद्धं मे एयं च कुणइ सोहं, परमं लिंगिस्स न उ गिहत्थस्स । अणुरूवट्ठाणगया, सच्चं दोसा वि होन्ति गुणा ॥ २३५॥ ।। २३६॥ ॥ २३७॥ ॥ २३८॥ ॥ २३९ ॥ ॥ २४०॥ ॥ २४१ ॥ ॥ २४२॥ ॥ २४३॥ ॥ २४४॥ ॥ २४५ ॥ ॥ २४६॥ ॥ २४७॥ ॥ २४८॥ ॥ २४९ ॥ ।। २५०॥ ।। २५१॥ ॥ २५२॥ ॥ २५३ ॥ ॥ २५४ ॥ ॥ २५५ ॥ ॥ २५६॥ ॥ २५७॥ ॥ २५८॥ ॥ २५९॥ ॥ २६०॥ ॥ २६१॥ ॥ २६२॥ ॥ २६३॥ ।। २६४॥ ॥ २६५ ॥ ॥ २६६॥ ॥ २६७॥ ॥ २६८॥ ॥ २६९ ॥ १. सूत = पारदः,

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 378