Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh

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Page 13
________________ ताव पुरिसेण तेणं, दरदलियकवोलमीसि हसिऊणं । नरनाहं मोत्तूणं, थंभियमवरं बलं सयलं राया वि चित्तलिहियं व, पेच्छिउं तं समग्गमवि सेण्णं । परिचिन्तिउं पवत्तो, अच्चन्तं विम्हयाउलिओ अहह ! महापावो कह, एवंविहमंतसत्तिसंजुत्तो। कह वा विबुहनिसिद्धं, अकज्जमेवंविहं कुणइ मण्णे एरिसग च्चिय, ते वि हु थंभाइकारिणो मंता । तेणण्णोण्णाणुगमो, समसीलत्तेण जाओ सिं अहवा किमणेण विचितिएण, सुमरामि थंभणि विज्जं । एयस्स थंभणट्ठा, चिरपढियं सुगुरुमूलम्मि तो सव्वंगनिवेसिय-रक्खामंतक्खरोऽनिलनिरोहं। काउं नासापेरंत-निमियथिरलोयणंबुरुहो पउममयरंदसंदोह-सुंदरुद्दामपसरियमऊहं । थंभणकरपरमक्खर-मारद्धो सुमरिठं राया अह खणमेत्तम्मि गए, तत्तोहुत्तं पलोयए ज़ाव । दरपहसिरेण तेणं, पजंपियं ताव पुरिसेण हे नरवर! जीव चिरं, पुव्वं मंदा गई ममं हुंता । तुह थंभणविज्जाए, संपइ पवणोवमा जाया ता जइ कज्जं भज्जाए अत्थि एज्जाहि सिग्घवेगेण । इय सो पयंपमाणो, तुरियं गंतुं पयट्टो त्ति अहह ! कहं चिरसिक्खिय-विज्जा वि हु विहलिया ममेयाणि । विहलिज्जउ अहव परं, मोत्तूण परक्कम एकं इय चिंतिऊण राया, अविचलचित्तो पवड्ढिउच्छाहो । खग्गसहाओ सहसा, लग्गो तस्साणुमग्गेण एसो वच्चइ राया, एसा देवी इमो य सो पुरिसो। इय जंपिरे जणम्मि, ताणि गयाइं सुदूरपहंपइसमयकसाहयतरल-तुरयलहुभूरिलंघियद्धाणो। थेवंतरेण राया, जाव न तं पावइ मणुस्सं ताव निरब्भा विज्जु व्व, झत्ति देवी अदंसणीभूया । सो वि य पुरिसो थाणु व्व, निच्चलो संठिओ समुहो एगागिणं च तं पेच्छि-ऊण भूमीवई विचितेइ । किं सुमिणमिमं माया व, होज्ज दिट्ठीए बंधो वा अहवा किमणेण विगप्पिएण, इममेव ताव पुच्छामि । अमुणियसीले पुरिसे, पहरिउमवि जुज्जइ न जम्हा तो भणियमणेण सविम्हएण, भो भो अणन्तसामत्थ ! । भज्जा न केवलं चिय, हरिया तुमए मम मणं पि ता कहसु को तुमं? किं, तए कुलं मण्डिय मलिणियं? च । एरिसमाहप्पेणं, अकज्जकरणेण य इमेणं तेणावि ईसि हसिऊण, जंपियं भो नरिंद ! सच्चमिणं । विहियं उभयं पि मए, कुलमइलणमेक्कमेव तए नियगिहिणि पि हु नीसेस-नयरलोगस्स पेच्छमाणस्स । अवगणियावजसेणं, अरक्खमाणेण हीरन्ति इय गुरुयकुलकलंकं, न पेच्छसि अप्पणो तुम मुद्ध! । मह पुण पोरिसवित्ति पि, दोसपक्खम्मि पक्खिवसि अहवा परदोसपलोयणम्मि, जायइ जणो सहस्सक्खो । जच्चंधो व न पेच्छइ, गिरिवरगुरुए वि नियदोसे एवंविहेण तुमए, तह कह वि हु मइलियं कुलं सयलं । जह विमलिज्जइ नो सुकय-जलहरासारवरिसे वि निस्सामण्णपरिक्कम-रहियाणं भद्द ! तुज्झ सरिसाणं । नामुक्कित्तणमेत्तं, वुच्चइ भूमीवइत्तं पि को वा इह तुह दोसो, ते अवरज्झंति इत्थ चिरपुरिसा। असमत्थं पि तुम जे, भूमिपालं पइटुंति को वा तेसिं दोसो, नरिंद ! तुम्हारिसाण कुमईणं । एस च्चिय होइ गई, विसयव्वामोहियमणाणं इय सोच्चा नरनाहो, लज्जामउलंतनयणसरसिरुहो। परिभाविउं पवत्तो, पओससमउ व्व विच्छाओ धी मज्झ जीवियं पोरिसं च, बलबुद्धिपगरिसत्तं च । जेण मए वयणिज्जं, उवणीया पुव्वपुरिसा वि अप्पा न केवलो च्चिय, लहुयत्तं लंभिओ अधण्णेण । लहुईकया महन्तो, सिक्खागुरुणो वि भयवन्तो किं जाएण वि तेणं ? जाएण वि जीविएण किं तेण? । नियपुव्वपुरिसलाघव-लेसम्मि वि जो पयट्टेज्जा सच्चं च विसयमोहिय-मईणमिच्चाइ जं भणियममुणा । कहमण्णहमेवंविह-विडंबणा मज्झ जाएज्जा? तहाहिसत्थस्साविसओऽयं, न मंततंतेसु कुसलया अस्थि । उज्जोगिणो वि मज्झं, किं बलमेत्तो परं होही एवं च संपयं इह, तावसदिक्खा निसेविउं जुत्ता। कह दंसिस्सामि मुहं, नियत्तिउं नयरिलोयस्स इय गरुयविसायपिसाय-वाउलिज्जन्तमाणसो राया। जा मुयइ नेव खग्गं, ता गहियो तेण हत्थम्मि ॥ १६६॥ ॥१६७॥ ॥ १६८॥ ॥१६९॥ ॥ १७० ॥ ॥ १७१ ॥ ॥ १७२ ॥ ॥ १७३॥ ॥१७४॥ ॥ १७५ ॥ ॥१७६ ॥ ॥ १७७॥ ॥ १७८॥ ॥ १७९॥ ॥ १८०॥ ॥ १८१॥ ॥ १८२॥ ॥ १८३॥ ॥१८४॥ ॥ १८५॥ ॥ १८६॥ ॥ १८७॥ ॥ १८८॥ ॥ १८९॥ ॥ १९०॥ ॥१९१॥ ॥ १९२॥ ॥ १९३॥ ॥ १९४ ॥ ।। १९५॥ ॥ १९६॥ ॥१९७॥ ॥१९८॥ ॥१९९॥ ॥ २००॥

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