Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh
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॥ १०१॥ ॥१०२॥ ॥ १०३ ॥ ॥१०४ ॥ ॥१०५ ॥ ॥१०६॥ ॥ १०७॥ ॥ १०८॥
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एक्को च्चिय से दोसो, जं सुगुणड्ढो वि तेण सिट्ठजणो । अकरो चाइयवसणो, अनासदंडो कओ सव्वो तस्स य रण्णो मुहचंद-चंदिमाविजियकोमुइमयंका । निम्मेररूवरायन्त-चारुसिंगारससिरीया उत्तमकुलसंभूया, सुसीलयालंकिया विगयपणया । भत्ता सुगुणाऽऽसत्ता, भज्जा नामेण कणगवई नीसेसकलाकोसल-कलिओ रूवी गुणालओ सोमो । पडिबिंबो इव रण्णो य, अहेसि पुत्तो (उ) जयसेणो सुविसुद्धबुद्धिपगरिस-निच्छियनीसेससंसयत्थेसु । नयगब्भमहत्थपसत्थ-सत्थपरिभावणपरेसु संधिविग्गहजाणाऽऽसणाइ-गुणछक्कपणिहियमणेसु। नियसामिकज्जसाहण-बहुमण्णियजीवियव्वेसु अवरोप्परगाढपरूढ-पणयपरिचत्तविप्पओगेसु । सुकईसु व अपुव्वत्थ-चिंतणच्छिण्णवंछेसु मंतीसु धणंजयजय-सुबंधुपमुहेसु विस्सुयजसेसु । आरोवियरज्जभरो सो य णिवो कीलइ जहिच्छं तहाहिकयाइ मंजुगंजिउब्भडप्पडंतनेउरं, विसंतुलुच्छलंततारहारलट्ठकंठियं, अवंगहारतुट्टदीहकंचिदामसुत्तयं, विचित्तयं पलोयए पणंगणाण नट्टयं कयाइ गाढरुट्ठदुट्ठमत्तहत्थिकंधरं, समारुहित्तु पाणिपल्लवेण धारिअंकुसो। सलीलमाययप्पहेसु काणणेसु कीलिउं, जणोवरोहकायरो समन्दिरै नियत्तए कयाइ भूरिचंचरीयपिज्जमाणदाणयं, गयिंदमंडलि सुवेगयं तुरंगवग्गयं । विसिट्ठमट्ठकट्ठसिट्ठयं सुसंदणुक्करं, पेगिट्ठलद्धसासए महाभडे य पेच्छए कयाइ पुण्णपावबन्धमोक्खजुत्तिजुत्तयं, अणेगभंगसंगयं भवस्सरूवसूयगं । निरंतरं तदत्थदिण्णचित्तउ सविम्हयं, असेसदोसनासयं निसामए य आगमं इय पुव्वभवज्जियभूरि-पुण्णपब्भारपुण्णवंछस्स । वोलेंति वासरा तस्स, राइणो विविहकीलाहिं अह अण्णया कयाई, अत्थाणीमंडवे निसण्णस्स । सव्वेयरतरुणीधुव्व-माणसियचारुचमरस्स दूरदिसागयसामंत-मंडलीपणयचलणकमलस्स । अण्णण्णसेवगजणे, सणियं पक्खित्तचक्खुस्स कंपिरतणुणा सियसिररुहेण, सक्खा जरापणिहिण व्व । कंचुइणा संलत्तं, सिग्घं उवसप्पिऊणेवं जयउ जयउ देवो, माणमीलंतरामा-मुहकुमुयमयंको, सोक्खवल्लीण कंदो। कुवलयदलदीह-रच्छीलच्छीए लीला-लसभुयपरिसत्तो सव्वसंपत्तिजुत्तो विण्णवणिज्जमिमं पहु! पडिहयपडिवक्खलक्ख ! अम्हाणं । अंतेउरट्ठियाणं, सव्वत्तो दिण्णादिट्ठीण परपुरिसपलोयणवाउलाण, कत्तो वि झत्ति संपत्तो। वणवारणो व्व एगो, पुरिसो अनिवारणो भीमो विसों व्व खग्गधेणूए, संगतो गिरिवरो व्व गरुयंऽगो। उब्भडभुयदंडुब्बद्ध-वीरवलओ अखुद्धमणो कणगवईए देवीए, वासभवणम्मिणिययगेहे व्व । नाहो व्व सो पविट्ठो, अवगण्णियकंचुइसमूहो णिसियऽग्गखग्गघाया वि, तत्थ न कमंति वज्जथंभे व्व । दप्पुब्भडा वि सुहडा, तम्मुहपवणेण निवडन्ति करुणाए च्चिय मण्णे, न पहरियं तेण अम्ह पुरिसाणं । अण्णह कयन्तकप्पस्स, तस्स कत्तो भवे खलणा अस्सुयमदिट्ठपुव्वं, इय एरिसकज्जमिहिमावडियं । एत्तो उवरि देवो, आइसइ जयं तयं कुणिमो इय सोच्चा कोवभरुब्भवन्त-भालयलभिउडिभीमेण । पुणरुत्तफुरुफुरन्ता-हरेण तंडवियभमुहेण सामंतसुहडसेणावईसु, निव्वडियपुरिसयारेसु । नवकुवलयदलदीहा, चक्खू खित्ता महीवइणा अह तं कयंतजणणि व, भीसणं पेच्छिऊण सामंता । संखोहवसा जाया, चित्ताऽऽलिहिय व्व सव्वे वि सेणावइसुहडेहि वि, तव्वइयरसवणचत्तमाणेहिं । सुस्समणेहि व संली-णयाए दिण्णं मणो झत्ति राया वि सहं सुण्णं व, पेच्छिउं पाणिकलियकरवालो। धी सेवगाहमा ! विफल-विहियपोरिसफडाडोवा १. प्रकृष्टलब्धस्वाशयान् २. विसो - कृष्णः
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